पर्यटकों का गोवा से अधिक पसंदीदा स्थान बना  काशी

अगर कोई यह मानता है कि सबसे अधिक टूरिस्ट समुद्र के किनारे के तटों पर या फिर आकाश को छूते पहाड़ों में सैर करने को आते हैं तो उन्हें एक बार फिर सोचना होगा। मतलब यह है कि अब न तो सबसे अधिक  टूरिस्ट गोवा आ रहे हैं, न फिर शिमला, नैनीताल, कश्मीर, हिमाचल या किसी अन्य हिल स्टेशन पर। आज के दिन सबसे ज्यादा टूरिस्ट को अपनी तरफ आकर्षित करने लगा है वाराणसी। आईसीआईसीआई के एक सर्वे से पता चला है कि पिछले साल 2022 में वाराणसी में 7.02 करोड़ टूरिस्ट पहुंचे। गोवा के हिस्से में लगभग मात्र 85 लाख टूरिस्ट। यूं तो वाराणसी में लगातार खूब टूरिस्ट पहले से ही आते थे पर 2015 के बाद तो स्थिति वाराणसी के पक्ष में पूरी तरह से पलट गई। इस लिहाज से गेम चेंजर साबित हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे (अब स्मृति शेष) का धर्म नगरी वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में 2015 में भाग लेना। गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, हमारी भारतीय सनातन संस्कृति की वाहक भी है। 
इस लिहाज से जापान के प्रधानमंत्री के स्वागत में काशी में गंगा आरती का आयोजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौलिक और व्यापक सोच का परिचय देने वाला था। गंगा आरती महज एक पूजाविधि नहीं है। मोदी-आबे ने गंगा आरती में भाग लेकर दुनिया में भारत की खोई हुई या यूं कहें कि तिरस्कृत कर दिये गये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने अपनी जगह बनाई थी। बीते 60 सालों की राजनैतिक सत्ता ने इस छवि को नजरअंदाज कर एक उपभोगी देश की छवि के रूप में भारत को दुनिया के सामने पेश किया था। संस्कृति के नाम पर ताज के मकबरे को ही खूब भुनाने की कोशिश की गयी। लेकिन गंगा की ‘ब्रांडिंग’ तो सही माने में भारत के लिए आत्मगौरव का क्षण था। टूरिज्म क्षेत्र के जानकार कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और जापान के प्रधानमंत्री आबे के गंगा आरती में भाग लेने के बाद सारे देश में वाराणसी को लेकर एक नई तरह की सकारात्मक सोच विकसित होने लगी। इसी का नतीजा है कि वाराणसी में देश-दुनिया के टुरिस्ट पहले से कहीं अधिक संख्या में पहुंचने लगे। वाराणसी के चाहुर्मुखी विकास ने पर्यटकों को भरपूर आकर्षित किया।
 काशी का गोवा को पीछे छोड़ना सामान्य बात नहीं है। आमतौर पर तो यही माना जाता था कि गोवा से ज्यादा टूरिस्ट कहीं जा ही नहीं सकते। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यह कॉरिडोर सिर्फ एक भव्य इमारत नहीं है, बल्कि यह हमारी आध्यात्मिक परम्परा और गतिशीलता का प्रतीक है। यही नहीं यह काशी की आर्थिक समृद्धि में नए चैप्टर को जोड़ने का काम करेगा। अगर उन्होंने यह बात कही थी तो आंकड़े उसे प्रमाणित भी कर रहे हैं।
 काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान पुनर्वास का मुद्दा भी उठा था। विपक्ष लगातार इस बात को उठा रहा था कि आम लोगों को उजाड़ा जा रहा है। लेकिन जिन 300 संपत्तियों का अधिग्रहण किया गया था उससे जुड़े लोगों का पुनर्वास हो चुका है। भरपूर मुआवजा मिला है सो अलग।
काशी में श्रद्धालुओं को आकर्षित करने के अलावा पर्यटकों की सुविधा का भी खास ख्याल रखा जाता है। काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण के बाद श्रद्धालुओं की संख्या में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। काशी पूरे देश में उत्तर प्रदेश डॉमेस्टिक टूरिज्म का हब बन गया है।
इसके साथ ही काशी की यात्रा करने वाला हरेक शख्स बौद्ध पर्यटक केंद्र सारनाथ को जाता ही है। भगवान बुद्ध ने बोधगया में आत्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात पहला प्रवचन यहां ही दिया था। उन्होंने जहां प्रवचन दिया था वहां पर धामेक स्तूप है। इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने 500 ईसवी में करवाया था। हालांकि कोविड के कारण बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों से काशी में उड़ानें नहीं आ रहीं हैं, पर अब श्रीलंका, थाईलैंड, साउथ कोरिया, जापान और शेष बौद्ध देश के नागरिक यहां आने लगे हैं। काशी से लेकर सारनाथ तक घूमते हुए रोज सैकड़ों विदेशी टूरिस्ट नज़र आते हैं। जाहिर है इनमें ज्यादातर बौद्ध देशों के ही होते हैं। इन सभी क्षेत्रों की देखरेख आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की तरफ से की जाती है। हम आमतौर पर सरकारी महकमों को उनकी काहिली के कारण कोसते हैं। लेकिन इस जगह को आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया बेहतरीन तरीके से व्यवस्थित कर रही है। बीते सावन के दिनों में काशी भर गया था टूरिस्टों से। आंकड़ों के मुताबिक सावन महीने में करीब 2.5 से 3 लाख पर्यटकों का रोजाना काशी में आगमन हुआ। कहना न होगा कि बड़ी संख्या में पर्यटकों के आने से काशी की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है। स्थानीय लोगों को रोज़गार के भी अवसर उपलब्ध हुए हैं। काशी आने वाले सबसे ज्यादा श्रद्धालु और पर्यटक काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन, वाराणसी के घाटों की गंगा आरती करने, नमो घाट और सारनाथ का भ्रमण करने के लिए पहुंचते हैं। वाराणसी में अनेक प्रकार के फेस्टिवल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी समय-समय पर आयोजित किया जाता है। मुझे कुछ समय पहले मेरे ईस्ट अफ्रीकी देश केन्या के मित्र स्टीफन मुंगा कह रहे थे कि वे अपनी आगामी भारत यात्रा के समय काशी ज़रूर जाना चाहेंगे। मैंने उनकी काशी के प्रति दिलचस्पी की वजह पूछी तो कहने लगे कि भारत को समझने के लिए काशी को देखना ज़रूरी लगता है। वैसे बाबा विश्वनाथ का दर्शन कौन नहीं करना चाहेगा?
हां, यह ठीक है कि काशी ने गोवा, केरल और देश के बाकी प्रमुख पर्यटन स्थलों-राज्यों को पीछे छोड़ दिया है, पर्यटकों को अपनी तरफ खींचने के स्तर पर, लेकिन देश के पर्यटन उद्योग से जुड़े सभी लोगों को अपने-अपने क्षेत्रों को विकसित करना होगा। भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन को बढ़ावा देना लाभदायक होगा।
 बेशक अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद उत्तर प्रदेश का टूरिज्म 10 गुना तक बढ़ सकता है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अयोध्या में 30,000 करोड़ रुपये से आधारभूत सुविधाओं के विकास की परियोजनाओं पर कार्य कर रही हैं। कुछ समय पहले देश भर के टूर ऑपरेटर्स की वार्षिक बैठक को संबोधित करते हुए  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि घरेलू पर्यटकों की पसंद के मामले में इस समय उत्तर प्रदेश देश में पहले स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में धार्मिक, आध्यात्मिक, ईको टूरिज्म के सभी बड़े केंद्र मौजूद हैं। जब अयोध्या में 2024 तक श्रीराम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा तो वहां 10 गुना से 50 गुना पर्यटन बढ़ने का अनुमान है। कृष्ण जन्मभूमि का कोरिडोर तैयार होने पर यही हाल मथुरा-वृंदावन का होने वाला है। अयोध्या हर सनातनी की आस्था का केंद्र है जहां भव्य मंदिर का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। इसके अलावा राज्य में रामायण, कृष्ण और बौद्ध सर्किट को व्यावहारिक धरातल पर उतारने का प्रयास युद्धस्तर पर चल रहा है।