दिलीप कुमार की पारो यानी  सुचित्रा सेन

अनेक अभिनेत्रियों की दिलीप कुमार के साथ काम करने की इच्छा कभी पूरी न हो सकी, लेकिन सुचित्रा सेन एक ऐसी अदाकारा रहीं जिन्हें अपनी पहली ही हिंदी फिल्म ‘देवदास’ (1955) में अभिनय सम्राट के साथ काम करने का अवसर मिला और वह भी पार्वती या पारो की कालजयी भूमिका में। इस फिल्म ने सफलता के नये झंडे गाड़े, सुचित्रा सेन की अदाकारी को भी चौतरफा प्रशंसा मिली। लेकिन इस कामयाबी और 25 वर्ष से अधिक के करियर के बाद जब 1978 में उनकी फिल्म ‘प्रोनॉय पाषा’ फ्लॉप हुई तो वह स्क्रीन से रिटायर होकर 36 साल तक एकांतवास व गुमनामी का जीवन व्यतीत करती रहीं। यह उनके जीवन का अजीब फैसला (या मज़बूरी) थी, क्योंकि 1970 में अपने पति देबनाथ सेन के निधन के बाद भी उन्होंने एक्टिंग करना नहीं छोड़ा था। उन्होंने जब अचानक एक्टिंग छोड़ने का निर्णय लिया तो उस समय वह राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘नटी बिनोदिनी’ कर रही थीं, कुछ दिनों की शूटिंग भी हो चुकी थी, लेकिन उनके फैसले के कारण फिल्म को बीच में ही बंद करना पड़ा। अपने रिटायरमेंट के दौरान वह जानबूझकर जनता की निगाहों से दूर रहती थीं (इसलिए उनकी तुलना अक्सर ग्रेटा गार्बो से की जाती है) और अपना समय रामकृष्ण मिशन में लगाती या अपने घर में ‘बंद’ रहतीं। 
सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल, 1931 को बेलकुची उपज़िला (सिराजगंज ज़िला या अब बांग्लादेश का राजशाही) के गांव भंगा बाड़ी में रोमा दासगुप्ता के रूप में हुआ था। उनके पिता कोरुनामोय दासगुप्ता पबना नगरपालिका में सेनेटरी इंस्पेक्टर थे। उनकी मां इंदिरा देवी गृहणी थीं। वह कवि राजनिकंता सेन की पोती थीं। पबना गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। 1947 के देश विभाजन में उनका परिवार पश्चिम बंगाल में आ गया, जहां मात्र 15 वर्ष की आयु में उनकी शादी एक रईस उद्योगपति आदिनाथ सेन के बेटे देबनाथ सेन से कर दी गई। एक्टर मुनमुन सेन उनकी बेटी हैं और रायमा सेन व रिया सेन उनकी नवासी हैं। सुचित्रा सेन का फिल्मी करियर 1952 में उत्तम कुमार (जिनके साथ उन्होंने अपनी 60 में से 30 फिल्में कीं) के साथ फिल्म ‘शेष कोथाय’ के साथ शुरू हुआ। यह फिल्म कभी रिलीज़ नहीं हुई, लेकिन उनके ससुर व पति ने हमेशा उनके फिल्मी करियर को प्रोत्साहित किया, जोकि इस लिहाज़ से सफल कहा जा सकता है कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में पुरस्कार पाने वाली सुचित्रा सेन पहली भारतीय अभिनेत्री हैं। उन्हें 1963 के मास्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘सात पके बंधा’ के लिए सिल्वर प्राइज मिला था। उन्हें 1972 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। लेकिन 2005 में उन्होंने दादासाहेब फाल्के अवार्ड लेने से इंकार कर दिया था; क्योंकि वह जनता के सामने नहीं आना चाहती थीं। वैसे 2012 में पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें ‘बंगा विभूषण’ से अवश्य सम्मानित किया। फिल्मों में 1952 से 1978 तक सक्रिय रहने के बाद सुचित्रा सेन का 82 वर्ष की आयु में 17 जनवरी, 2014 को कोलकाता में निधन हो गया।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर सत्यजीत रे फिल्म ‘देवी चौधरानी’ बनाने चाहते थे। सुचित्रा सेन ने डेट्स की समस्या से इस फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया और रे ने वह फिल्म कभी नहीं बनायी। सुचित्रा सेन ने राज कपूर के साथ भी फिल्म करने से इंकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें भारत के सबसे बड़े शो मैन का ‘व्यक्तित्व पसंद नहीं आया’। दरअसल, सुचित्रा सेन पुरुषों में सुंदरता नहीं देखती थीं बल्कि गहन वार्ता के लिए इंटेलिजेंस की तलाश करती थीं। उन्होंने राज कपूर के ऑफर को तुरंत ठुकरा दिया। वह उनके घर पर लीड रोल का ऑफर लेकर गये थे और उसे ऑफर करते हुए अचानक सुचित्रा सेन के पैरों के पास बैठ गये गुलाबों का गुलदस्ता देते हुए। सुचित्रा सेन ने ऑफर तुरंत ठुकरा दिया- ‘मुझे उनका व्यक्तित्व पसंद नहीं आया। उनका व्यवहार मेरे पैरों के पास बैठना, एक पुरुष के शयानेशान नहीं था।’ लेकिन ‘आंधी’ के अपने सह-कलाकार संजीव कुमार से सुचित्रा सेन की अच्छी दोस्ती थी- ‘वह अच्छे व्यक्ति व अच्छे एक्टर थे। जब भी कोलकाता आते तो मुझसे कांटेक्ट करते व मेरे घर पर मिलने के लिए आते।’
सुचित्रा सेन उत्तम कुमार के बहुत करीब थीं, जिससे दोनों के प्रेम की अफवाह उड़ी। लेकिन वास्तव में वह आध्यात्मिक दृष्टि से एक-दूसरे के करीब थे, उनका प्लेटोनिक लव इस संसार से ऊपर का था। 
उनमें कोई रोमांटिक संबंध नहीं था, एक दूसरे के लिए सम्मान व केयर थी। सुचित्रा सेन का उत्तम कुमार के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव था। बाेंग सुंदरी सुचित्रा सेन अपने समय से बहुत आगे की हस्ती थीं। महिलाएं उनके साड़ी स्टाइल की कॉपी करती थीं। उनका ज्वेलरी चयन भी परफेक्ट था। उनके पास साड़ियों का ज़बरदस्त कलैक्षन था और वह अपनी हर साड़ी लुक में स्वप्न सुंदरी लगती थीं, विशेषकर प्रिंटेड साड़ी में। उनका विशिष्ट साड़ी ड्रेप फैशन बन गया था। फिर 50 के दशक में भी उन्होंने स्विमसूट पहनने का साहस दिखाया और कयामत ढा दी।   
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर