मां का सपना

आशु अभी दो वर्ष का ही था, कि उसके पिता उसकी मां को रोते-‘बिलखते छोड़ स्वर्ग सिधार चुके थे। उसकी मां अधिक पढ़ी लिखी नहीं थी। पिता की मौत के बाद वह किसी कारखाने में मजदूरी करने लगी।
जब आशु चार वर्ष का हुआ तो उसकी मां ने उसका दाखिला एक पब्लिक स्कूल में करवा दिया। अब आशु के खर्चे काफी बढ़ गए थे मगर उसकी मां जैसे-तैसे करके उसके सब खर्चे पूरे करती।
वह आशु को पढ़ा लिखा कर बढ़ा आदमी बनाना चाहती थी। आशु की ज़रूरतें दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी। अब वह खुद रूखी-सूखी खाकर गुजारा कर लेती मगर आशु को हमेशा अच्छा खाने को देती व अच्छे वस्त्र पहनाती।
जब आशु ने पांचवीं कक्षा में प्रवेश लिया। वह कुछ समझदार हो चुका था। उसे अब मां के जगह-जगह से सिले वस्त्र, टूटी चप्पलें देखकर आत्मग्लानि होने लगी थी। वह सोचता, मां उसे कितने अच्छे वस्त्र पहनने को देती है पर वह खुद...।
एक दिन वह मां से बोला, ‘मां तुम अपने लिए अच्छे कपड़े क्यों नहीं खरीदतीं-टूटी चप्पलें ही पहने रहती हो। आखिर क्यों?’
‘बेटा! तुम पढ़-लिख कर बड़े अफसर बन जाओगे न, तब मैं खूब अच्छे वस्त्र पहना करूंगी।’ 
‘नहीं मां। मैं भी आपके साथ काम पर जाऊंगा।’
‘अरे नहीं मेरे बच्चे! तुम्हें तो अभी पढ़ना है। तुम्हारी उम्र अभी काम की नहीं है।’ वह उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए बोली।
आशू चुप हो गया।
वह रातभर कुछ सोचता रहा। अगले दिन स्कूल से लौटते समय वह एक दुकानदार के पास गया व बोला, ‘अंकल, क्या आपको नौकर की ज़रूरत है।’
दुकानदार ने उसे सिर से पांव तक देखा व बोला, ’क्या तुम नौकरी करोगे लेकिन।’
‘हां अंकल, मैं स्कूल से लौटकर आपका काम कर दिया करूंगा।’ दुकानदार ने कुछ सोचते हुए सहमति दे दी।
आशु बहुत खुश हुआ। अब वह रात को ही घर लौटता। दोपहर को दुकानदार उसे खाना दे देता था। 
मम्मी के यह पूछने पर कि वह इतनी देर कहां रहता है तो वह यही कहता कि किसी दोस्त के पास खेलने चला जाता है। 
दुकानदार आशु के काम से बहुत खुश था। आशु बहुत ही तन्मयता से हर काम निबटाता था। अब वह स्कूल जाते वक्त भी दुकान की सफाई करने लगा।
जब महीना पूरा हुआ तो दुकानदार ने उसे पांच सौ रुपए दिये। आशु बहुत खुश हुआ।
वह दौड़ता हुआ मां के पास गया व मां की झोली में वे पैसे रख दिए।
उसकी मां की आंखों में आंसू आ गए। उसने आशु को गले से लगा लिया।
आशू और भी अधिक मेहनत करने लगा। वह रात को पढ़ाई करता व हर वर्ष कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता। अंतत: मां का सपना पूरा हुआ व आशु बड़ा होकर आई.ए.एस. ऑफिसर बन गया। (उर्वशी)