स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बोतलबंद पानी

पहले की तुलना में आज आदमी की जीवनशैली में आमूल चूल परिवर्तन आ गये हैं। बढ़ती जनसंख्या के साथ धरती के संसाधनों पर भी बहुत बोझ बढ़ा है। सर्वविदित तथ्य है कि जब जनसंख्या बढ़ती है तो पर्यावरण प्रदूषण में भी निश्चित ही बढ़ोतरी होती है। आज पहले के ज़माने की तुलना में अधिक चिकित्सा सुविधाएं होने के बावजूद स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिल रही है। कारण प्रदूषण ही है।
जल को ही लीजिए। जल सभी प्राणियों के जीवन के लिए एक बहुत ही आवश्यक तत्व है। आज बढ़ती जनसंख्या के बीच बड़े शहरों से लेकर गांव तक में बोतलबंद पानी का उपयोग होने लगा है। आज बाज़ार में बोतलबंद पानी के अनेक ब्रांड उपलब्ध हैं, लेकिन क्या हमने कभी इस बारे में थोड़ा-सा भी चिंतन किया है कि बोतलबंद पानी हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक ही भी या नहीं। बिना विचार किए कहीं से भी बोतलबंद पानी खरीद लिया जाता है और धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। वास्तव में जल प्रदूषण और इससे बढ़ती स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं ने भारत में मिनरल वॉटर के कारोबार के दायरे को विशाल किया है और शायद यही कारण है कि आज देश भर में बोतलबंद पानी की खपत बढ़ी है। मेट्रो सिटीज़ में तो यह खपत बहुत अधिक है, क्योंकि वहां पर गांवों की तरह पेय जैसे विकल्प विरले ही उपलब्ध होते हैं।
बाज़ार ने आम जन पानी के विकल्प दिए हैं, लेकिन ये सुविधाजनक पानी के विकल्प हमारी ज़िंदगी में कहीं न कहीं ज़हर घोल रहे हैं। अध्ययन बताते हैं कि बोतलबंद पानी अनुमान से कहीं ज्यादा हानिकारक है। पानी की हर बूंद में प्लास्टिक के लाखों कण घुले होते हैं जो पानी के साथ हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक से बोतलबंद पानी में मौजूद प्लास्टिक के कणों की गिनती की। प्रोसेडिंग्स आफ  नेशनल एकेडमी ऑफ  साइंसेज नामक संस्था ने यह खुलासा किया है। इसमें एक नई टेक्नॉलजी की मदद ली गई है जिसे स्टिमलेटेड रमन स्कैटरिंग माइक्रोस्कोपी कहा जाता है। पहले तो यह महीन से महीन प्लास्टिक टुकड़ों को खोजती है, फिर इनकी गिनती भी करती है। स्टडी में बताया गया है कि एक लीटर बंद बोतल पानी में औसत 2.4 लाख प्लास्टिक के कण मिले हुए हैं। यह आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए क्योंकि यह हाल तब है जब इस स्टडी में शीर्ष दस ब्रांडेड कम्पनियों की पानी की बोतलों को शामिल किया गया है। रिसर्चर्स के अनुसार दुकानों में बिकने वाले बोतलबंद पानी में प्लास्टिक के 10 से 100 गुना बारीक टुकड़े या नैनोकण हो सकते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि उन्हें माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखना भी संभव नहीं होता। शोध में बताया गया है कि इनका आकार मनुष्य के बाल की औसत चौड़ाई का लगभग 1,000वां हिस्सा होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि पाचन तंत्र से लेकर फेफड़ों और ब्लड स्ट्रीम तक एक टिश्यू से दूसरे टिश्यू को आसानी से पार कर सकते हैं। इस तरह से यह सिंथेटिक केमिकल धीरे-धीरे पूरी बॉडी में फैल कर कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने चिंता जतायी है कि प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण नाल के जरिये अजन्मे बच्चे के शरीर में भी पहुंच सकते हैं। बोतलबंद पानी का लगातार इस्तेमाल शरीर में प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाने के समान है। वैश्विक स्तर पर देखें तो हर साल 11,845 से 1,93,200 माइक्रो प्लास्टिक कण इन्सान निगल जाता है। इन कणों का सबसे बड़ा साधन बोतलबंद पानी है। बहरहाल, कहना गलत नहीं होगा कि बाज़ार ने मानव को अनेक सस्ते विकल्प तो दिये हैं, लेकिन साथ ही बीमारियों के लिये भी उर्वरा ज़मीन तैयार कर दी है। ऐसे में सफर करते समय प्लास्टिक की बोतल के पानी का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए। स्टील की बोतल या अन्य विकल्प अपनाये जा सकते हैं, लेकिन फिर भी यदि बोतलबंद पानी का उपयोग करना भी पड़े तो बोतलबंद पानी व बोतल की क्वालिटी पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए। चाहिए तो यह कि जब कभी भी पानी खरीदा जाए या फ्रिज में रखा जाए तो उसके लिए शीशे की बोतल का इस्तेमाल किया जाए। हालांकि शीशे की बोतल के साथ इस बात का ख्याल ज़रूर रखना चाहिए कि उसे समय-समय पर गर्म पानी से धोते रहना चाहिए। इससे हम बैक्टीरिया से होने वाले रोगों से बचे रहेंगे। बोतलों में स्टील और तांबा अन्य विकल्प हैं। बहरहाल, कहना गलत नहीं होगा कि आज कहीं न कहीं प्लास्टिक की बोतलों में पाये जाने वाले रसायन लोगों के प्रतिरक्षातंत्र को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि लोग पीने के पानी के लिए परम्परागत विकल्पों को प्राथमिकता दें।  (युवराज)