पंजाब में घातक कीट-नाशकों की धड़ल्ले से बिक्री

पंजाब में नकली प्रतिबंधित घातक किस्म की कीड़ेमार दवाइयों की निरंकुश बिक्री और इसके इस्तेमाल ने एक साथ कई मोर्चों पर प्रहार किया है। इस कारण एक ओर जहां प्रदेश की कृषि-भूमि बीमार हो रही है, और उसकी उर्वरता भी कम हो रही है, वहीं इन दवाइयों के प्रयोग से उत्पन्न हुए कृषि पदार्थों में विषाक्तता बढ़ जाने से जन-समाज में कई प्रकार के रोगों का ़खतरा भी बढ़ा है। इस कारण किसानों की जेब पर भी अकारण भारी-भरकम दबाव पड़ता है। किसान महंगे भाव से इन कीड़ेमार दवाइयों को खरीदते हैं, किन्तु अन्तत: निष्कर्ष-स्वरूप उन्हें लाभ की बजाय हानि ही सहन करनी पड़ती है। सर्वाधिक बड़ी समस्या यह कि इन औषधियों के प्रयोग से भूमि की  उत्पादकता भी धीरे-धीरे खत्म होने लगती है जिससे ज़मीन के बंजर हो जाने का ़खतरा बढ़ता है। इसका सम्पूर्ण प्रभाव नकारात्मक रूप से कृषि और किसान की वित्तीय स्थिति पर भी पड़ने लगता है। इस कारण सरकार के अपने राजस्व में भी कमी आती है, किन्तु सरकार इस सम्पूर्ण स्थिति से अवगत होने के बावजूद चुप क्यों बैठी है, यह किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है। प्रदेश के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने इस तथ्य को स्वीकार करते हुए पिछले दिनों एक ब्यान में कहा था, कि नकली और प्रतिबंधित कीड़ेमार दवाइयां बेचने वाले सरकारी राजस्व को भारी हानि पहुंचा रहे हैं। कृषि मंत्री ने इस समस्या की रोकथाम और ऐसे तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए टास्क फोर्स बनाये जाने की भी घोषणा की थी। उन्होंने मौका पर पुलिस एक्शन की चेतावनी भी दी किन्तु उनकी यह घोषणा हवा-हवाई होकर रह गई, और इन कीड़ेमार औषधियों की बिक्री और प्रचलन पूर्ववत जारी है। नकली एवं प्रतिबंधित कीड़ेमार दवाइयों की बिक्री और घटिया बीजों के कारोबारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई किये जाने हेतु सरकारी प्रयत्नों की विफलता और प्रशासनिक उदासीनता इससे साफ तौर पर प्रकट होती है।
घोषितआंकड़ों के अनुसार नकली एवं घातक कृषि औषधियों के अधिकतर नमूने प्राय: फेल होते रहे हैं, किन्तु सरकारी प्रशासन इस ओर से सदैव आंखें मूंदे रहता है। कृषि विभाग की अपनी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में पिछले पांच वर्षों में नकली कीड़ेमार दवाइयों के प्रयोग से गेहूं, धान और कपास की फसल को भारी नुक्सान पहुंचा है। इससे सब्ज़ियों और फलों का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है।  जानकार सूत्रों के अनुसार इस काले व्यापार को बड़े स्तर पर राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त बताया जाता है, क्योंकि सरकारी प्रतिबन्धों के बावजूद यह कारोबार करोड़ों रुपये तक पहुंच जाता है जिसमें सत्ता-संरक्षण का बाकायदा बड़ा हिस्सा होता है। इन सूत्रों के अनुसार प्रदेश में नकली बीजों का व्यवसाय भी बड़े स्तर पर होता है। इस चरण पर सितम की बात यह भी है कि प्रदेश विधानसभा की कृषि संबंधी समिति स्वयं अपनी एक रिपोर्ट में यह खुलासा कर चुकी है कि पंजाब में बिक्री हो रही कई कीड़ेमार औषधियां पड़ोसी एवं कई अन्य राज्यों में प्रतिबंधित घोषित हो चुकी हैं। इसके बावजूद पंजाब में इनकी बिक्री धड़ल्ले से हो रही है, तो स्पष्ट है कि दाल में बहुत कुछ काला है।
हम समझते हैं कि प्रदेश की कृषि और कृषि भूमि को बचाने के लिए इस ओर विशेष सक्रियता अपनाये जाने की बड़ी ज़रूरत है। इसके साथ ही पंजाब की मौजूदा युवा पीढ़ी एवं भावी संततियों के भविष्य और उनके स्वास्थ्य की रक्षा के दृष्टिगत भी इन नकली बीजों और प्रतिबंधित औषधियों की बिक्री पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए। कृषि मंत्री ने बेशक इस हेतु टास्क फोर्स के गठन की पहल की है, किन्तु इस फोर्स का फलितार्थ तभी सम्भव हो सकता है यदि इस हेतु राजनीतिक और सत्ता पक्ष की इच्छा-शक्ति की दृढ़ता का भी प्रदर्शन किया जाए। टास्क फोर्स की घोषणा मात्र से यह समस्या हल होने से रही क्योंकि इसके पीछे करोड़ों रुपये के लेन-देन का कारोबार दिखाई देता है। एक अन्य रिपोर्ट भी ध्यानाकर्षण की मांग करती है जिसमें कहा गया है कि इस कारोबार में लगे कथित विशेषज्ञों द्वारा जब्री किसानों को ऐसी दवाइयां बेची जाती हैं जिनकी कोई आवश्यकता ही नहीं होती। अनपढ़, ़गरीब और छोटे किसान इस जाल का जल्दी शिकार हो जाते हैं। कुछ भी हो, इस समस्या के निदान हेतु तत्काल प्रभावी एवं कठोर कदम उठाये जाने की बड़ी आवश्यकता है। ये पग जितनी शीघ्र उठाये जाते हैं, उतना ही प्रदेश की कृषि, किसानों, जन-समाज और स्वयं सरकारी राजस्व के हित में होगा।