चुनावों के निकट विपक्षी पार्टियों पर शिकंजा कस रही हैं केन्द्रीय एजेंसियां

लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई तेज़ हो गई है। सभी विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर तलवार लटकी हुई है। कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा से ई.डी. ने ज़मीन से जुड़े एक मामले में पूछताछ की है। राजस्थान में पिछली सरकार मे मंत्री रहे कांग्रेस महेश जोशी के यहां ई.डी. ने छापा मारा और पंजाब में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे साधु सिंह धर्मसोत को गिरफ्तार किया है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम महादेव बेटिंग ऐप घोटाले में शामिल कर दिया गया है। कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी पर भी शिकंजा कसा है। उसके दो बड़े नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिह जेल में बंद हैं। शराब नीति में हुए कथित घोटाले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चार समन मिल चुके हैं। अब उन्हें पांचवां समन जारी होगा। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से 20 जनवरी को ई.डी. ने पूछताछ की। महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के करीबी रहे एक व्यक्ति को कोरोना के समय हुए कथित खिचड़ी घोटाले में गिरफ्तार कर लिया गया है। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता को भी दिल्ली की शराब नीति में हुए कथित घोटाले में समन जारी हुआ था। बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पिछले समन पर ई.डी. के सामने हाज़िर नहीं हुए थे। उन्हें फिर कभी भी समन जारी हो सकता है। पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के यहां हर हफ्ते छापे पड़ रहे हैं।
अलग-अलग दावे 
भारत सरकार के तहत काम करने वाले नीति आयोग की एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में पिछले 9 साल में 25 करोड़ लोग गरीबी से निकल गए हैं और अब सिर्फ 11.28 फीसदी ही गरीब बचे है। नीति आयोग का यह दावा इस हकीकत के बिल्कुल उलट है कि देश में लगभग 70 फीसदी आबादी को पांच किलो मुफ्त अनाज सरकार की ओर से दिया जा रहा है ताकि वे दो समय का भोजन कर सके। नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक अगर देश में गरीब सिर्फ  11.28 फीसदी है तो बाकी मुफ्त अनाज पाने वाले करीब 60 फीसदी लोग मध्य वर्ग के हैं या अमीर हैं! बहरहाल, नीति आयोग की रिपोर्ट और सरकार के दावों में इससे भी बड़ा एक और विरोधाभास है। सरकार का दावा है कि देश खुले में शौच से मुक्त हो गया है, लेकिन नीति आयोग ने कहा है कि 31 फीसदी यानी करीब 43 करोड़ लोगों के पास घरों में शौचालय नहीं है। इसी तरह नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 44 फीसदी लोगों के पास रसोई गैस का कनेक्शन नहीं है। जबकि उज्ज्वला योजना की 10 करोड़वीं लाभार्थी के घर तो पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही चाय पीने गए थे। यानी 50 करोड़ लोगों तक तो मोदी सरकार ने रसोई गैस का कनेक्शन पहुंचाया है। उसके बाद भी 44 फीसदी यानी 60 करोड़ लोगों के पास अब भी रसोई गैस का कनेक्शन नहीं है। तो फिर बचे ही कितने लोग, जिनके पास 2014 से पहले एलपीजी का कनेक्शन था?
देवगौड़ा की पार्टी का भविष्य
अविभाजित जनता दल ने 1998 में जब भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल होने का फैसला किया था तो उसका विरोध करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने जनता दल से नाता तोड़ लिया था। उन्होंने जनता दल (सेक्यूलर) के नाम से नई पार्टी बनाई थी। तब से अब तक उनकी पार्टी कभी कांग्रेस के साथ तो कभी भाजपा के साथ मिल कर कर्नाटक की सत्ता में भी रही और विपक्ष में भी। ऐसा करते हुए यह पार्टी अब एक तरह से देवगौड़ा के परिवार तक ही सिमट कर रह गई है। हालत यह हो गई है कि सांप्रदायिकता के विरोध के नाम पर बनी इस पार्टी ने अकेले अपने बूते कोई भी चुनाव लड़ने और जीतने क्षमता खो दी है। लिहाज़ा लगता है कि पार्टी के संस्थापक एच.डी. देवगौड़ा ने अपनी पार्टी का भविष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दिया है। उन्होंने खुल कर कहा है कि वह गठबंधन के बारे में कुछ नहीं जानते हैं कि उनकी पार्टी कितनी और कौन-सी सीटों पर लड़ेगी। देवगौड़ा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को ही पता है कि क्या करना है। देवगौड़ा ने मोदी की तारीफ  करते हुए कहा कि वह अपने पत्ते सबके सामने नहीं खोलते और सुविचारित रणनीति के हिसाब से काम करते हैं। देवगौड़ा के बेटे और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी भाजपा के सम्पर्क में हैं और सीटों को लेकर बातचीत कर रहे हैं। 90 साल के देवगौड़ा ने साफ  कर दिया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। वह अभी राज्यसभा में हैं। पिछली बार वह लोकसभा का चुनाव हार गए थे। बताया जा रहा है कि उनकी पार्टी को भाजपा लोकसभा की जो भी दो-तीन सीटें देगी, उन पर देवगौड़ा परिवार के सदस्य ही लड़ेंगे। 
राहुल की पैदल यात्रा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ मणिपुर से शुरू हो चुकी है और 26 दिन तक पूर्वोत्तर के राज्यों में रहेगी। मणिपुर में उनकी यात्रा चार दिन और नागालैंड में तीन दिन चली है। वह सबसे ज्यादा 17 दिन असम में रहेंगे। अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में उनकी यात्रा एक-एक दिन रहेगी लेकिन सिक्किम, त्रिपुरा और मिज़ोरम उनकी यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे। इन तीन राज्यों में चार लोकसभा सीटें हैं। यानी पूर्वोत्तर की 25 में से 21 सीटों वाले राज्यों पांच राज्यों में यात्रा जाएगी। राहुल ने मणिपुर से यात्रा शुरू की है जहां लोकसभा की दो सीटें हैं। नागालैंड में एक अरुणाचल व मेघालय में दो-दो सीटें हैं जबकि असम में 14 सीटें हैं। अभी असम के अलावा बाकी किसी राज्य में कांग्रेस के पास कोई सीट नहीं है। असम में भी कांग्रेस की सिर्फ  तीन सीटें हैं। हालांकि हर राज्य में कांग्रेस का वोट आधार अब भी बचा हुआ है। असम में ही भाजपा को कांग्रेस से सिर्फ आधा फीसदी वोट ज्यादा मिले थे। गौरतलब है कि मणिपुर में पिछले आठ महीने की जातीय हिंसा में 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और करीब 70 हज़ार लोग विस्थापित हुए हैं। इस भीषण जातीय हिंसा का असर किसी न किसी रूप में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में हुआ है। कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल की यात्रा से पूर्वोत्तर में कांग्रेस का खोया हुआ जनाधार हासिल हो सकेगा।
किसे कहां से लड़ाएगी भाजपा?
भाजपा से जुड़े सेवामुक्त सरकारी बाबुओं के लिए लोकसभा सीटों की तलाश हो रही है। जो लोग पहले से लोकसभा में हैं, जैसे अपराजिता सारंगी या अर्जुनराम मेघवाल, उनके लिए तो कोई समस्या नहीं है लेकिन जो राज्यसभा में हैं या जिन्होंने अभी तक लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है, उनके लिए सीटें तलाशी जा रही हैं। बताया जा रहा है कि कम से कम दो ऐसे पूर्व अधिकारी हैं, जिन्हें इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना है। एक है पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला और दूसरे हैं असीम अरुण है, जो उत्तर प्रदेश में कई अहम पदों पर रहे हैं। वे विधायक हैं, लेकिन इस बार उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाए जाने की चर्चा है। बताया जा रहा है कि जाटव समुदाय के असीम अरुण को पार्टी किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़वा सकती है। हर्षवर्धन शृंगला पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। अभी एस.एस. अहलूवालिया इस सीट से सांसद हैं। तीन पूर्व अधिकारी नरेंद्र मोदी सरकार मे मंत्री हैं। उनमें से हरदीप पुरी फिर से अमृतसर से लड़ सकते हैं, जहां वह पिछली बार हार गए थे। ओडिशा काडर के आईएएस रहे अश्विनी वैष्णव की राज्यसभा सीट का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। वह फिर से राज्यसभा में जाएंगे या ओडिशा या अपने गृह राज्य राजस्थान से लड़ेंगे यह तय नहीं है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर गुजरात से राज्यसभा में हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि तमिलनाडु की किसी सीट से वह चुनाव लड़ सकते हैं।