गरीबी निवारण की नयी रिपोर्ट आशाजनक पर कुछ नये सवाल भी !

हाल में नीति आयोग द्वारा पेश बहुक्षेत्रीय निर्धनता निवारण की रिपोर्ट देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक आशाजनक तस्वीर देने के साथ बीमारू राज्यों में एक बड़े टर्नअराउंड की तरफ इशारा करती है। यह बात और है कि भारत में गरीबी निवारण की कुछ गेमचेंजर योजनाओं की जमीनी स्थिति अभी कुछ और ही बयां कर रही है, मगर नीति आयोग की नयी रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारत में निर्धनता निवारण के आंकड़े सामाजिक आर्थिक विकास के बहुक्षेत्रीय पैमानों पर हासिल परिणामों से निर्मित किये गए हैं। ये पैमाने न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्टैंडर्ड के हैं बल्कि उनसे भी दो कदम आगे हैं। गौरतलब है कि भारत में निर्धनता निवारण के पैमाने विगत में गरीब व्यक्ति और गरीब परिवार की मौद्रिक आमदनी व दैनिक उपभोग के आधार पर निर्मित होते रहे हैं। इस पैमाने के जरिये किसी निर्धन व्यक्ति या परिवार के सामाजिक आर्थिक विकास या कल्याण की सही तस्वीर सामने नहीं आती थी। परंतु वर्ष 2005-06 के बाद भारत में अब निर्धनता निवारण के बारह पैमाने निर्धारित किये गए हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर केवल दस पैमाने हैं। भारत की बात करें तो यहां गरीब परिवारों के उत्थान के तीन मुख्य बिंदु हैं, जिनमें पहला स्वास्थ्य, दूसरा शिक्षा और तीसरा जीवन स्तर। इसमें पहले बिंदु स्वास्थ्य के तहत तीन पहलू निर्धन शिशु के पोषाहार, शिशु मृत्यु दर और तीसरा मातृत्व स्वास्थ्य है। दूसरे बिंदु शिक्षा के तहत बच्चों की स्कूल में उपस्थिति और दूसरा बच्चों द्वारा बिताया गया कुल स्कूली समय है। तीसरे बिंदु जीवनस्तर के तहत सात पैमाने लिए गए हैं, जिनमें रसोई का ईंधन, साफ पेय जल, बिजली कनेक्शन, स्वच्छता, आवास, टिकाऊ परिसंपत्ति और बैंक खाता।
नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक इन वृहद पैमानों पर भारत में निर्धनता रेखा से नीचे की आबादी कुल आबादी का 55 प्रतिशत थी। इस दौरान भारत में पहले संप्रग की सरकार और तदंतर राजग की सरकारों ने उपरोक्त पैमानों के आधार पर सामाजिक आर्थिक विकास व कल्याण की अपनी तमाम योजनाओं की आधारशिला रखी व उसे लेकर राजस्व संसाधनों का हस्तानांतरण किया। रिपोर्ट के मुताबिक 2005 से लेकर 2014 के बीच भारत की निर्धनता रेखा से नीचे की आबादी घटकर करीब 29 प्रतिशत पर आयी। इस समय नीति आयोग ने यह अनुमान लगाया था कि आगामी 2030 तक यह आबादी दो तिहाई घटकर केवल 10 प्रतिशत रह जाएगी, लेकिन नीति आयोग की अभी पेश रिपोर्ट के मुताबिक  सरकार ने यह लक्ष्य पांच साल पहले ही हासिल कर लिया है और अभी भारत में निर्धनता रेखा से नीचे की आबादी का प्रतिशत कुल आबादी की 11.28 प्रतिशत रह गया है। नीति आयोग ने इंटरपोलेशन व एक्स्ट्रापोलेशन विधि के जरिये संगृहीत अपने आंकड़ों के आधार पर यह दावा किया है। भारत में निर्धनता निवारण की रफ्तार दर 2005 से 2014 के बीच जहां 7 प्रतिशत थी, वहां वर्ष 2014 के बाद के 9 सालों में यह बढ़कर 10 प्रतिशत हो गयी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले नौ सालों में करीब 25 करोड़ लोगों ने निर्धनता को मात दी है।
राज्यों की बात करें तो यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे बीमारू राज्यों की निर्धनता निवारण उपलब्धि इस दौरान अत्यंत उल्लेखनीय रही है। मिसाल के तौर पर पिछले नौ साल में संख्या के हिसाब से सबसे ज्यादा यूपी में करीब 5.94 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे और प्रदेश की अब केवल 17 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, जो 2015 में 38 प्रतिशत थी। दूसरे नंबर पर बिहार में करीब 3.77 करोड़ लोगों ने निर्धनता रेखा को मात दी और अब प्रदेश की केवल 26 प्रतिशत आबादी निर्धनता रेखा से नीचे है, जो 2015 में 51 प्रतिशत थी। इस दौरान मध्यप्रदेश में करीब 2.3 करोड़ लोगों ने निर्धनता को मात दी और प्रदेश का मौजूदा गरीबी रेखा से नीचे का प्रतिशत 15 प्रतिशत रह गया है, जो 2015 में 37 प्रतिशत था। राजस्थान में इस दौरान 1.87 करोड़ लोगों ने निर्धनता को मात दी और अब प्रदेश की केवल 11 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, जो वर्ष 2015 में 29 प्रतिशत थी, यानी इनमें राजस्थान ऐसा राज्य है।
जाहिर है कि नीति आयोग की यह बहुक्षेत्रीय निर्धनता निवारण रिपोर्ट उत्साहजनक है और भारत के योजनाकारों व नीति निर्माताओं के बहुआयामी विकास के कार्यक्रमों के प्रति दर्शाये रुझान को दिखाती है। उपरोक्त बारह मानकों पर जहां संप्रग ने अपने कार्यकाल में कई सामाजिक आर्थिक विकास योजनाओं को गढ़ा, वहीं मौजूदा राजग सरकार ने इन सामाजिक आर्थिक विकास योजनाओं का दायरा बहुआयामी बनाने के साथ लाभार्थी को सीधा भुगतान का दायरा काफी विस्तृत किया। इस रिपोर्ट ने इस बात को पुन: पुष्ट किया कि भारत में गरीबी निवारण की ट्रिकल डाउन थ्योरी की व्यावहारिकता को ही विस्तार दिया जा रहा है। इसके तहत देश की उच्च विकास दर के आर्थिक चक्र व उससे निर्धनों तक रिसने वाला फायदा और सरकार के बढ़े राजस्व से वंचित व निर्धन वर्ग के विकास व कल्याण कार्यक्रमों के लिए बढ़े आवंटन इसके प्रमुख कारक बने हैं। लेकिन इस रिपोर्ट के जरिये मोदी की राजग सरकार ने जिस तरह से गरीबी निवारण की बहुआयामी योजनाओं और इनके क्रियान्वयन की बढ़ी रफ्तार के आंकड़ों से जो अपनी वाहवाही हासिल की है, उसे लेकर कुछ सवाल भी दिखते हैं।
मिसाल के तौर पर स्वास्थ्य के तीन मानकों पोषाहार, शिशु व जननी स्वास्थ्य की बात की जाए, तो इसकी नींव 1990 के दशक में तैयार की गई, जिसमें सभी सरकारों के कार्य की निरंतरता शामिल है। इसमें भारत का पोलियो मुक्त बनना एक बड़ी उपलब्धि है। दूसरा शिक्षा की बात करें तो सर्वशिक्षा अभियान जिसमें जन्मदाता 1990 दशक के उत्तरार्ध में वाजपेयी की राजग-1 थी। उसने भारत में साक्षरता की एक मजबूत नींव तैयार की और संप्रग के एजुकेशन सैश प्रावधान से इस योजना के लिए पर्याप्त राशि जुटाई गई। जीवनस्तर की बात करें तो ये बातें बहुत हद तक सही हैं कि उपरोक्त सात मानकों में से रसोई ईंधन, पेयजल, बिजली कनेक्शन, स्वच्छता, आवास, बैंक खाते को लेकर पिछले नौ साल में मोदी सरकार की योजनाएं ज्यादा बोल्ड व प्रभावी रूप से सामने आयी हैं। उपरोक्त योजनाओं में मोदी सरकार की दो गेमचेंजर योजनाएं रसोई ईंधन की उज्जवला और सफाई को लेकर राष्ट्रीय स्वच्छता योजना, इन बीमारू राज्यों में औंधे मुंह गिरते दिखाई दी हैं। कोरोनाकाल में गैस कीमतों में की गई भारी बढ़ोत्तरी से अधिकतर उज्जवला लाभार्थियों ने लकड़ी व उपले पर खाना बनाना शुरू कर दिया था। सरकार को चाहिए कि इन योजनाओं के लाभार्थियों का दोबारा सर्वेक्षण करे। इसी तरह कोरोनाकाल में गांवों के प्राथमिक विद्यालयों के अधिकतर बच्चे पढ़ाई छोड़कर बाल मजदूर बनने के लिए बाध्य हुए। स्वच्छता योजना की बात करें तो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ट्वायलेट निर्माण का अभियान सुस्त पड़ गया है और देश के कई गांवों की महिलाएं शौच के लिए खेतों में जाने के लिए शाम का इंतजार करने लगी हैं। सरकार को इन योजनाओं की वैकल्पिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर जमीनी सच्चाई से अवगत होना चाहिए।
मोदी सरकार के पिछले दस साल के कार्यकाल में नोटबंदी, जीएसटी और देशबंदी से विकास दर करीब पांच साल बुरी तरह से प्रभावित रही परन्तु शुरू के तीन साल और अभी पिछले दो साल से 6 प्रतिशत से ऊपर विकास दर हासिल हुई और निर्धनता निवारण पर इसका सकारात्मक असर पड़ा है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर