हाथी के दांत

प्रो. दविन्दरपाल सिंह भुल्लर जोकि विगत 29 वर्ष से जेल में सज़ा काट रहे हैं, को एक बार फिर दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा रिहा करने के लिए सिफारिश न करने के कारण सरकार पुन: कटघरे में आ खड़ी हुई है। लगभग विगत 4 वर्ष से सरकार के सज़ा समीक्षा बोर्ड द्वारा उनकी रिहाई की अपीलों को रद्द किया जाता रहा है, जबकि मानवाधिकार आयोग ने भी यह निर्देश दिया हुआ है कि समीक्षा बोर्ड की ये बैठकें लगातार शीघ्र-अतिशीघ्र होनी चाहिएं, परन्तु इनकी निरन्तरता के संबंध में भी सरकार की ओर से बेरुखी ही धारण की जाती रही है। प्रो. भुल्लर को 1993 में दिल्ली के बम कांड में शामिल होने के कारण वर्ष 2011 में मौत की सज़ा सुनाई गई थी, परन्तु वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी मौत की सज़ा को उम्र कैद में बदल दिया था। 
वर्ष 2019 में गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर केन्द्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना जारी करके दशकों भर से लम्बी सज़ाएं काट चुके 8 बंदी सिखों को रिहा करने की घोषणा की गई थी। उनमें प्रो. भुल्लर भी शामिल थे। इसके साथ ही इसी अधिसूचना में स. बलवंत सिंह राजोआणा की मौत की सज़ा को उम्र कैद में बदलने की बात भी की गई थी। स. राजोआणा को बेअंत सिंह बम कांड के मामले में वर्ष 2007 में चंडीगढ़ सैशन कोर्ट ने फांसी की सज़ा सुनाई थी। वर्ष 2010 में हाईकोर्ट द्वारा भी इस सज़ा को बरकरार रखा गया था, परन्तु 28 मार्च, 2012 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से फांसी की सज़ा पर रोक लगा दी गई थी। उसके बाद केन्द्र सरकार द्वारा उक्त अधिसूचना जारी की गई थी परन्तु इसके बावजूद भी लगभग पिछले 12 वर्ष से वह फांसी की चक्की में ही बंद हैं। प्रो. भुल्लर संबंधी भी यह बात लगातार चलती रही है कि पिछले लम्बे 
समय से उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं है, इसलिए उनकी रिहाई होनी चाहिए। केन्द्र सरकार द्वारा उनके सहित 8 नज़रबंदों को रिहा करने के लिए अधिसूचना जारी करने के बावजूद भी यदि दिल्ली सरकार द्वारा अब तक भी उनकी रिहाई नहीं हुई तो इससे केजरीवाल सरकार का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है। चाहे दिल्ली सरकार इस संबंध में अपना पक्ष पेश करती रही है परन्तु पक्ष पेश करने और नीयत साफ होने में बहुत अन्तर होता है।
पंजाब में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान अरविन्द केजरीवाल, भगवंत मान एवं उनके साथी लगातार यह कहते रहे हैं कि वह तीन-तीन दशकों  से जेलों में बंद सिख बंदियों, जो अपनी सज़ा से कहीं अधिक सज़ा काट चुके हैं, को पूरे प्रयास करके हर हाल में रिहा करवाएंगे, परन्तु अब उनकी नीति तथा नीयत में इस संबंधी बड़ा अन्तर आ चुका है।  जिस ढंग से आज भगवंत मान सरकार अपने विरोधियों के विरुद्ध विजीलैंस तथा प्रदेश की पुलिस का दुरुपयोग करके उन्हें नज़रबंद रखने के लिए प्रयास कर रही है, उससे भी स्पष्ट होता है कि वह अपने से अलग विचारधारा रखने वालों को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं। दिल्ली एवं पंजाब में दोनों सरकारों की इस संबंध में सच्चाई अब सामने आने लगी है, जो इनको जन-कटघरे में खड़ा करने के सामर्थ्य है। ऐसी कार्रवाइयों के कारण ही लोगों का मोह भंग होना शुरू हो गया है। नि:संदेह हाथी के दांत दिखाने के लिए और तथा खाने के लिए और ही होते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द