गणतंत्र का मज़बूत पहिया हैं भारतीय महिलाएं

आज़ादी के बाद संविधान निर्मित ‘भारतीय गणतंत्र’ में महिलाओं का अतुलनीय योगदान है। वे राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 18 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान करती हैं तो कृषि कार्यबल का 48 प्रतिशत हिस्सा हैं। विनिर्माण कार्यबल में उनकी भागीदारी 20 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र के कार्यबल में 30 प्रतिशत से ज्यादा है। संसद के निचले सदन में उनका प्रतिनिधित्व 10.5 प्रतिशत है। इस तरह देखें तो राजनीति से लेकर शिक्षा तक, व्यवसाय से लेकर सामाजिक सेवाओं तक, कला और संस्कृति से लेकर खेल तक, एयरोस्पेस से लेकर पत्रकारिता और मीडिया तक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य तक, मनोरंजन से लेकर समाज सेवा तक, आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व से लेकर उद्यमिता और सामाजिक सक्रियता तक कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलायें अग्रिम मोर्चे में अपनी भूमिकाएं न निभा रही हों।
आज भारतीय गणतंत्र उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से पुष्पित पल्लवित है। यह उनकी उल्लेखनीय ताकत और लचीलेपन का ही प्रमाण है कि सभी दुनियावी संगठन भारत को दुनिया के सबसे संभावनाशील देश के रूप में चिन्हित करते हैं। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां भारतीय महिलाओं ने हाल के दशकों में अपनी उल्लेखनीय प्रगति न दर्ज की हो। हाल के सालों में भारत की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और वे देश की निर्णय लेने की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रही हैं। पिछली सदी के सत्तर के दशक से, महिलाओं ने राजनीतिक भागीदारी में वास्तविक रुचि लेनी शुरू की थी और आज वो प्रमुख पदों पर हैं, जिनमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च पद भी शामिल हैं। श्रीमती इंदिरा गांधी, जिन्होंने 1966 से 1977 और 1980 से 1984 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, भारत की विदेश नीति को एक नया और साहसी आकार दिया था, जिसमें और चटख रंग भरने का काम मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं।
भारतीय गणतंत्र को मजबूत बनाने में महिलाओं ने हर क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। वे समाज के हाशिये पर मौजूद वर्गों के कल्याण की दिशा में भी जी-जान लगाकर काम कर रही हैं और सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उदाहरण के लिए मदर टेरेसा ने दिखाया कि गरीबों और वंचितों को कैसे अपनाया जा सकता है। उन्होंने अपना जीवन गरीबों, बीमारों और मरने वालों की सेवा में समर्पित कर दिया था। उन्होंने भारत की लाखों दूसरी महिलाओं को प्रेरित भी किया। यही कारण है कि आज हिन्दुस्तान में समाज सेवा की बागडोर मुख्यत: महिलाओं के हाथ में ही है। आजादी के बाद और खासकर पिछली शताब्दी के 80 के दशक के बाद भारत में महिलाओं ने खेल के क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लैंगिक बाधाओं को तोड़ा है और एथलीटों, प्रशिक्षकों और प्रशासकों के रूप में प्रमुख पदों पर आसीन हुई हैं, वह शानदार ही नहीं, लीक तोड़ने वाला रहा है। उड़न परी पीटी उषा, साइना नेहवाल, कर्णम मल्लेश्वरी, सायना मिज़र्ा, पीवी सिंधु और मेरीकॉम तक अनगिनत युवा लड़कियों ने भारत को खेल की नई ऊंचाइयों में पहुंचाने का श्रेय लिया है। 
खेलों की तरह भारत में महिलाओं ने एयरोस्पेस के क्षेत्र में भी नई लकीर खींची है। उन्होंने कई तरह की लैंगिक बाधाओं को तोड़ा है और वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और प्रशासकों के रूप में प्रमुख पदों पर आसीन हुई हैं। इसरो में महिलाओं ने एयरोस्पेस के क्षेत्र में पुरुष वैज्ञानिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाने का जो काम किया है, वह अतुलनीय है। इसके अलावा महिलाओं ने दूसरे उद्योग क्षेत्रों में भी समान अवसरों को हासिल करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इससे न्यायसंगत औद्योगिक वातावरण बनाने में मदद मिली है।  इसरो में टेसी थॉमस ने एक भारतीय वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर के रूप में जटिल तकनीकी क्षेत्र में भारतीय नारी शक्ति का परचम भर नहीं फहराया बल्कि हजारों महिला वैज्ञानिकों को प्रेरित किया है। इसी तरह अगर हम पत्रकारिता और मीडिया के क्षेत्र में भी नज़र डालें तो पिछले 3-4 दशकों में महिलाओं ने इस क्षेत्र में अपना जबरदस्त प्रभाव छोड़ा है। इसी तरह महिलाओं ने आजादी के बाद के पिछले पांच दशकों में हर क्षेत्र में लैंगिक असमानता को चुनौती दी है तथा अपनी प्रभावशाली उपस्थिति बनाई है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर