रिश्ते में तो हम तुम्हारे मामा थे

नेता जी दस दिन से कोप भवन में पड़े थे। उनकी उदासियों को समाप्त करने वाला कोई न था। पत्नी समझा-समझा कर थक हार चुकी थी। पत्नी की दिलासा उनके अंदरूनी जख्मों पर मरहम न लगा पा रही थी। वह उदासियों और दुखों के भंवर से बाहर नहीं आ पा रहे थे। अब उनकी प्रेमिकाओं ने फोन करना शुरू किया। समझना शुरू किया। यह फानी दुनिया एक माया है। माया में जो आया है सो जाएगा, वह चाहे विधायकी हो या मंत्री-संतरी की सीट, जो आज अपना है वह कल पराया होगा। संसार में परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन ही सृष्टि का कायदा है। परिवर्तन को दिल पर नहीं लेना चाहिए, परिवर्तन को जो दिल से नहीं स्वीकार करता है, वह घोर दु:ख चिंता और शोक में हमेशा पड़ा रहता है, वह जगत में अपार कष्ट झेलता हैं, उसका पुरसाहाल कोई नहीं होता, आखिरकार वह अपनी प्रेमिकाओं की  सलाह-सलाहियतें मान गए और अनूप जलोटा के भजन रंग दे चुनरिया, रंग ले चुनरिया, सुनने-गुनने लगे। ...अब वह नेता जी भगवान् भरोसे हो चुके थे। वह समझ चुके थे, दुनिया एक सर्कस है और सर्कस है, तीन घंटे का। हम सब सर्कस में करतब दिखाने वाले वह जोकर हैं, जिसे हर तरीके से, हर हाल में और हर स्थिति में अपना सर्कस, अपना करतब दिखाना ही पड़ता है और जो नहीं दिखा पाता है, और निराश होकर, दुखी होकर बैठ जाता है, उसकी जगहंसाई होती है। फिर जग में उसका कोई अपना नहीं होता, हार-जीत, यश-अपयश इस दुनिया का दस्तूर हमेशा रहा है और रहेगा। नेताजी अपने अध्यात्मिक ज्ञान से दुनियावी सर्कस को भली-भांति समझ चुके थे। और फिर अपनी उदासियों के भंवर से निकले, कोप भवन से बाहर आकर मस्त घूमने लगे और अगले चुनाव की तैयारी करने लगे, पर उन्हें दु:ख यह था कि चुनाव जीतने के बाद कभी, क्षेत्र की जनता उन्हें मामा-मामा कहा करती थी, पर हारने के बाद, अब कोई उन्हें बाबा-दादा तक नहीं कह रहा था। उन्हें समझ में आ चुका था, हारे को सिर्फ हरिनाम, जीता तो सबका सबका मामा। 

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