नहीं थम रही मासूमों के साथ हैवानियत

भारत में गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीति, बाल विवाह और बाल मजदूरी बचपन के सबसे बड़े दुश्मन है, मगर अब बाल दुष्कर्म के बढ़ते मामलों ने देशवासियों को चिंता में डाल दिया है। एक गैर सरकारी संगठन की शोध रिपोर्ट जाहिर करती है कि बच्चों से हैवानियत थम नहीं रही है। बच्चों से दुष्कर्म के मामले वर्ष 2016 से 2022 के बीच 96 प्रतिशत बढ़े हैं, जिनमें सभी प्रकार के प्रवेशन हमले (पेनिट्रेटिव असॉल्ट) शामिल हैं। बाल अधिकार से जुड़े एक गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह दावा किया है। रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक जागरूकता के कारण बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के अधिक मामले दर्ज हुए हैं।
विश्लेषण के मुताबिक, अकेले 2022 में बच्चों से दुष्कर्म के 38,911 मामले दर्ज किए गए हैं, जो पूर्व के वर्षों में दर्ज मामलों में वृद्धि को दर्शाता है। 2020 में यह संख्या 30,705 और 2019 में 31,132 थी। वहीं साल 2018 में 30,917 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2017 में यह संख्या 27,616 थी। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 में 19,765 दर्ज मामले सामने आए हैं। एनसीआरबी के वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार देश में बच्चों के साथ यौन शोषण के 63,414 मामले दर्ज हुए थे। इसमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में 8,151 मामले सामने आए। दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र 7,572 व तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश में 5,996 मामले दर्ज हुए थे। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बाल यौन उत्पीड़न और शोषण के मुद्दे पर खुल कर चर्चा करने से सामाजिक चुप्पी कम होगी और बाल यौन उत्पीड़न और शोषण पर खुल कर चर्चा करने को प्रोत्साहित करने से बिना किसी डर के बोलने से दुर्व्यवहार के खिलाफ अधिक रिपोर्ट दर्ज करा सकेंगे। बच्चों को सही-गलत स्पर्श की शिक्षा देना और माता-पिता के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना ऐसे मामलों में सुरक्षा का बेहतरीन उपाय है। जब भी कभी बच्चों के व्यवहार में बदलाव दिखे और बच्चे गुमसुम सा रहने लगे तो माता-पिता और शिक्षकों को बच्चे से बात करनी चाहिए या किसी पेशेवर काउंसलर से सम्पर्क करना चाहिए।
देशभर में बच्चों के साथ हो रही दुष्कर्म की वारदातों पर अंकुश नहीं लगने से देश की सर्वोच्च अदालत ने भी कई बार नाराज़गी जाहिर की है। भारत सरकार ने बेशक 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म की वारदात रोकने के लिए कड़ा कानून बना दिया हो फिर भी उनके साथ दुष्कर्म की वारदातें कम नहीं हो रही हैं। देश के अलग-अलग जनपदों से मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की दिल दहला देने वाली खबरों से पूरा देश न केवल शर्मिंदा है बल्कि सदमे में भी हैं। कहीं ढाई साल की मासूम के साथ दरिंदों ने हैवानियत की सारी सीमा पार कर दी तो कहीं 8 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की वहशियाना हरकत की गई तो कहीं 11 साल की मासूम को हवस का शिकार बनाकर मौत के घाट उतार दिया गया। देश भर में बच्चियों से हो रही दरिंदगी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इंसानियत को शर्मसार करने वाली इन घटनाओं में निरंतर वृद्धि होने से देश में भारी नाराज़गी फेल रही है और स्थान-स्थान पर लोग आंदोलित हो रहे है। हर आधे घंटे में एक बच्ची का दुष्कर्म हो रहा है और हर घंटे इंसानियत शर्मसार हो रही है। बेटी से दुष्कर्म देश के लिये शर्म की बात है। 
बच्चों का यौन उत्पीड़न बलपूर्वक किया जाने वाला घिनोना कार्य है। अगर एक अपराधी एक बच्चे का यौन शोषण करता है तो ये संभावनाएं और बढ़ जाती हैं कि वह और बच्चों के साथ भी ये सब करता होगा। अगर हम यौन शोषण को रोकना चाहते हैं, तो हमें वास्तव में इसे रोकना होगा। जेल में बंद करने के बजाए हमें उनका इलाज कराना चाहिए। भारत की आधी आबादी अपने आप हर क्षेत्र में आज असुरक्षित महसूस कर रही हैं। बच्चियों के साथ दुष्कर्म की वारदात रोकने के लिए कड़े कानून बनाने के बाद भी उन्हें समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है। इस कारण आरोपियों में कानून का भय नहीं हैं और पीड़िता व उनका परिवार बेबस हैं। समय से न्याय की मांग बढ़ रही है। बच्चियों के दुष्कर्म के ज्यादातर मामलों में आरोपी उनके पहचान वाले ही होते हैं, जो बच्चियों को घुमाने, टॉफी, फ्रूटी दिलाने या फिर किसी अन्य बहाने से ले जाकर वारदात करते हैं। बच्चियों से दुष्कर्म केवल कानून या पुलिस के भरोसे नहीं रोका जा सकता। इसके लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता ज़रुरी है। दरिंदगी की ऐसी वारदातें रोकने के लिए हर समय सतर्कता और निगरानी की महती आवश्यकता है।

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