पद्म विभूषण से सम्मानित वैजयंतीमाला के अनसुने किस्से

इस साल पद्म विभूषण (भारत रत्न के बाद दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान) से सम्मानित वैजयंतीमाला को किसी एक श्रेणी में रखकर परिभाषित करना कठिन कार्य है। वह जितनी अच्छी नृत्यांगना हैं, उतनी ही अच्छी एक्टर व कर्नाटक संगीत की गायिका हैं और लोकसभा (1984-91) व राज्यसभा (1993-99) की सदस्य रहते हुए बतौर सांसद भी उन्होंने बहुत अच्छा काम किया। जहां सिने प्रेमियों के दिलोदिमाग पर वैजयंतीमाला आज भी चंद्रमुखी (देवदास) व धन्नो (गंगा जमुना) की भूमिकाओं को लेकर छायी हुई हैं, वहीं अपने नृत्य के प्रति प्रेम तो वह 90 वर्ष की आयु में भी कायम रखे हुए हैं। हालांकि ‘देवदास’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए चुना था, जिसे लेने से उन्होंने इंकार कर दिया था क्योंकि वह अपनी भूमिका को सुचित्रा सेन (पारो) के बराबर ही मानती थीं, लेकिन इससे अलग उन्होंने पांच फिल्मफेयर अवार्ड्स व दो बीएफजेए (बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन) अवार्ड्स जीते। भरतनाट्॔म के लिए विख्यात वैजयंतीमाला को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है और 1968 में उन्हें भारत सरकार ने चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पदमश्री भी दिया था। 
वैजयंतीमाला रमण का जन्म तमिल अयंगर ब्राह्मण परिवार में पार्थसारथी मंदिर के निकट 13 अगस्त, 1933 को त्रिप्लिकैन (मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था, जो वर्तमान में थिरुवालिकेनी, तमिलनाडु है। उनके पिता मंडयमधाती रमण और मां तमिल सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्री वसुंधरा देवी थीं, जिनकी फिल्म ‘मंगामा सबथम’ 1940 के दशक में तमिल की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म थी। लेकिन वैजयंतीमाला की परवरिश उनकी दादी यदुगिरी देवी ने की। मात्र सात वर्ष की आयु में वैजयंतीमाला को वैटिकन सिटी में पोप पिउस-12 के समक्ष क्लासिकल भारतीय नृत्य प्रस्तुत करने के लिए चुना गया था। यह 1940 की बात है और इस कार्यक्रम में उनकी मां भी मौजूद थीं। सेक्रेड हार्ट हायर सैकेंडरी स्कूल, प्रेजेंटेशन कान्वेंट, चर्च पार्क, चेन्नै की छात्रा रहीं वैजयंतीमाला ने गुरु वजुवूर रामैया पिल्लई से भरतनाट्यम और मनाक्कल सिवाराजा अय्यर से कर्नाटक संगीत सीखा। 
निर्देशक एमवी रमण 1949 में एवीएम प्रोडक्शंस की फिल्म ‘वज्ह्कई’ के लिए एक नये चेहरे की तलाश कर रहे थे कि उन्होंने चेन्नै के गोखले हॉल में वैजयंतीमाला को भरतनाट्यम करते हुए देखा। उन्होंने तुरंत ही वैजयंतीमाला को अपनी फिल्म में लेने का फैसला किया, लेकिन यदुगिरी देवी इसके लिए तैयार न थीं, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी पोती की फिल्मों में काम करने के लिए उम्र कम है और इससे उनकी शिक्षा व नृत्य में भी बाधा उत्पन्न होगी। लेकिन एमवी रमण ने उन्हें मना ही लिया। ‘वज्ह्कई’ की सफलता से प्रेरित होकर रमण ने इसे हिंदी में ‘बहार’ (1951) नाम से भी बनाया, जिसमें अपने डायलाग स्वयं बोलने के लिए वैजयंतीमाला ने हिंदी प्रचार सभा में हिंदी सीखी। ‘बहार’ बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त हिट रही और बतौर एक्टर व डांसर वैजयंतीमाला हिंदी फिल्मोद्योग में भी अपना स्थान बनाने में सफल रहीं, विशेषकर ‘नागिन’ के बाद जो 1954 की सबसे सफल फिल्म थी। ‘नागिन’ का गीत ‘मन डोले, मेरा तन डोले’ तो आज भी लोगों की ज़बान पर है। 
बहरहाल, जब बीना रॉय, सुरैया आदि ने 1955 में बिमल रॉय की फिल्म ‘देवदास’ में चंद्रमुखी की भूमिका निभाने से इंकार कर दिया तो विकल्प के अभाव में यह रोल वैजयंतीमाला को ऑफर किया गया। इस फिल्म के लेखक नबेंदु घोष के अनुसार, ‘मैं इस बात से सहमत नहीं था कि चंद्रमुखी की भूमिका वैजयंतीमाला करें, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं था, क्योंकि हर अभिनेत्री पारो का रोल करना चाहती थी, कोई चंद्रमुखी बनने के लिए तैयार ही नहीं थी।’ लेकिन एक निराश प्रेमी देवदास (दिलीप कुमार) के प्रेम को चंद्रमुखी (वैजयंतीमाला) ने इतनी ख़ूबी से समझा कि वह न सिर्फ मुंबई में प्रथम पंक्ति की अदाकारा के रूप में स्थापित हो गईं बल्कि दिलीप कुमार के साथ सबसे ज्यादा आठ फिल्में करने का उन्हें श्रेय प्राप्त हुआ। यही नहीं ‘गंगा जमुना’ में धन्नो के रूप में भोजपुरी बोलकर उन्होंने भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में भी उन्होंने अपना नाम हमेशा के लिए दर्ज करा लिया। 
निर्देशक बी.आर. चोपड़ा 1957 में ‘नया दौर’ बना रहे थे। इस फिल्म में मधुबाला थीं, लेकिन उनके पिता अताउल्ला खान उन्हें आउटडोर शूटिंग के लिए दिलीप कुमार के साथ भोपाल भेजने के लिए तैयार नहीं थे। यह मामला अदालत तक पहुंचा, दिलीप कुमार ने बी.आर. चोपड़ा के पक्ष में गवाही दी, फलस्वरूप दिलीप कुमार व मधुबाला के संबंध हमेशा के लिए बिगड़ गये और मधुबाला की जगह वैजयंतीमाला न केवल फिल्म ‘नया दौर’ में गांव की लड़की बनकर आयीं बल्कि दिलीप कुमार की ज़िंदगी में भी आ गईं। फिल्मी पत्रिकाओं में दोनों के बारे में सच-झूठ छपने लगा। यहां तक छपा कि वैजयंतीमाला वही साड़ी पहनती हैं, जिसे दिलीप कुमार ने ख़ुद चुना हो। इन बातों में कितना दम है, कहना मुश्किल है, लेकिन तथ्य यह है कि सायरा बानो वैजयंतीमाला को अपनी बड़ी बहन मानती हैं और अक्की कहकर पुकारती हैं। 
वैसे, 1968 में वैजयंतीमाला ने एक पंजाबी हिन्दू आर्य समाजी डा. चमनलाल बाली से शादी कर ली, जो पहले से ही शादीशुदा थे। उनके एक बेटा सुचिन्द्र बाली है। शादी के बाद वैजयंतीमाला ने फिल्मों में काम करना छोड़ दिया, लेकिन उनका नृत्य अभी तक जारी है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर