हरियाणा में सहकारिता घोटाला

हरियाणा में एक ओर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार अपनी दूसरी पारी के नौ वर्ष पूरे होने पर इसे एक अतुलनीय उपलब्धि करार देकर इसका जश्न मना रही है, वहीं प्रदेश के सहकारिता विभाग में एक-सौ करोड़ रुपये की अनियमितता के कथित घोटाले ने इस सरकार की निद्रा में खलल तो डाला ही है। इस घोटाले का आधार बड़ा पुख्ता होने का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस ़गबन के आरोप में 6 राजपत्रित अधिकारियों समेत कुल 10 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है जिनमें चार ़गैर-सरकारी लोग भी शामिल हैं। इस घोटाला राशि से इन लोगों ने जिस भूमि अथवा अन्य सम्पत्तियों की खरीद की, उसकी भी सूची बना ली गई है। एकीकृत विकास परियोजना विभाग में हुए इस ़गबन का रहस्योद्घाटन हरियाणा प्रदेश के एंटी-क्रप्शन ब्यूरो की ओर से किया गया, और इसके बाद सरकार ने बाकायदा जांच-पड़ताल के दृष्टिगत आनन-फानन में दस लोगों को हिरासत में लेकर उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। ब्यूरो द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार इस घोटाले हेतु अधिकारियों की बड़े उच्च स्तर पर मिलीभुगत और सहभागिता रही है, तथा इन्होंने सहकारिता-राशि से अपने निजी हित और पारिवारिक उपयोग हेतु फ्लैट और ज़मीनों की खरीद की। 
हरियाणा प्रदेश के पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर ने बेशक इस ़गबन में संलिप्त लोगों के विरुद्ध कानून के अनुसार कार्रवाई किये जाने का दावा किया है, किन्तु इस घोटाले की गूंज अगले दो-मास में शुरू होने वाले चुनावी मौसम में बड़ी दूर तक जाने की सम्भावना है। इस घोटाले के कारण इस विभाग द्वारा ग्रामीण क्षेत्र विशेष तौर पर कृषि के धरातल पर अनेक विकास कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है। इस हेतु कृषि क्षेत्र के विभिन्न कार्यों को लेकर सहकारिता के धरातल पर धन-राशि उपलब्ध कराई जाती है। इस घोटाले के कारण प्रदेश में सहकारिता धरातल पर कई परियोजनाओं पर कार्य के प्रभावित होने का भी अंदेशा है। इस सन्दर्भ में की गई जांच से यह भी खुलासा हुआ है कि सहकारिता के नाम पर शौचालयों के निर्माण, कम्प्यूटर, सी.सी.टी.वी. कैमरे आदि की खरीद करने हेतु अतिरिक्त राशि निकलवाई जाती रही है। गबन का यह मामला हरियाणा प्रदेश के एक से अधिक ज़िलों तक फैला हुआ पाया गया है। इसके लिए एक से अधिक जगहों पर मामले भी दर्ज किये गये हैं।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह मामला बिना किसी उच्च संरक्षण और राजनीतिक वरद् हस्त के सम्पन्न नहीं हो सकता था। सहकारिता के नाम पर जिस प्रकार जन-साधारण से करों के माध्यम से एकत्र किये गये धन को खुर्द-बुर्द किया गया है, वह लोकतंत्र के किसी भी चरण पर आम लोगों के साथ किये गये किसी बड़े धोखे से कम नहीं है। प्रदेश की सरकार को इस मामले की तह तक जाकर इस ़गबन में दूध का दूध और पानी का पानी अवश्य करना चाहिए। इस मामले में यदि किसी धरातल पर राजनीतिक अथवा प्रशासनिक घालमेल दिखाई देता है, तो उसे भी सार्वजनिक करके दोषियों को समुचित दंड देने हेतु कटघरे में खड़ा करने का हर यत्न किया जाना चाहिए।