देश में बाल शोषण के बढ़ते मामले 

देश में बच्चों के शोषण एवं बाल दुष्कर्म के मामलों में विगत कुछ वर्षों में निरन्तर हो रही तेज़ी ने देश के जन-हितैषियों, बुद्धिजीवियों और मनो-वैज्ञानिकों को चौंकाया है। इस सन्दर्भ में एक विशेष एवं अधिक चिन्ताजनक पक्ष यह है कि वर्ष 2016 से लेकर आज तक, बीच में वर्ष 2020 को छोड़ कर, ऐसी घटनाओं में निरन्तर इज़ाफा हुआ है। देश में बाल सुधार हेतु कार्यशील संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू अर्थात क्राई द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार विगत छह वर्ष में इस धरातल पर घोषित आंकड़े दो-गुणा तक बढ़ गये हैं। वर्ष 2016 में बाल-शोषण और बाल-दुष्कर्म के मामले देश भर में 19,764 थे जो वर्ष 2022 के अंत तक बढ़ कर 38,911 हो गये हैं। नि:संदेह यह आंकड़ा-वृद्धि इस धरातल पर अपराध-वृद्धि होने की भी सूचक है, किन्तु इसका एक अन्य कारण देश और सामाजिक धरातल पर आम लोगों में जागृति एवं जागरूकता का बढ़ना भी शामिल है। पहले अक्सर ऐसे अधिकतर मामलों को आम लोग बदनामी के डर से पुलिस के पास ले जाने तक से संकोच करते थे। जो मामले पुलिस के रिकार्ड में दर्ज हो भी जाते थे, उन पर भी आगे उन्हें निर्णायक चरण तक ले जाने में दोनों ओर से संकोच बना रहता था। इस कारण ऐसी घटनाओं में वृद्धि के आंकड़े प्रकाश में नहीं आ पाते थे, किन्तु अब एक ओर आम लोग भी इस बारे में जागरूक हुए हैं,  तो दूसरी ओर समाज-सेवी संस्थाएं भी ऐसे मामलों में स्वत: संज्ञान लेकर आगे आने लगी हैं। इस कारण ऐसी घटनाओं में वृद्धि होने का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि कानूनी सुधार और न्यायिक प्रक्रिया में तेज़ी से भी ऐसे मामले प्रकाश में आने की क्रिया तेज़ी हुई है।
देश और समाज में बाल शोषण और बाल यौन उत्पीड़न की घटनाओं में वृद्धि का एक और बड़ा ़गरीबी का बढ़ना भी है। बाल यौन शोषण का बड़ा केन्द्र  के वे कार्य-स्थल भी बनते हैं जहां अवस्यक बच्चों से जब्री श्रम कराया जाता है। समाज के भिन्न क्षेत्रों में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म किये जाने की घटनाएं भी इसी क्रम में शुमार होती हैं। समाज में विगत कुछ वर्षों से ऐसे दुष्कर्म की घटनाओं में एकाएक वृद्धि हुई है। बेशक अदालतें ऐसे मामलों में इन दिनों पूर्व से अधिक सक्रियता एवं सतर्कता दिखाती आई  हैं। सरकार द्वारा महिलाओं एवं बाल सुरक्षा-संरक्षण संबंधी कानूनों में किये गये सुधारों ने भी समाज में जागरूकता पैदा की है, किन्तु इसके बावजूद नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में कोई उल्लेखनीय कमी दर्ज नहीं की गई है। देश का कोई भी भाग इस आपराधिक रोग से मुक्त नहीं पाया गया है। पंजाब भी ऐसी आपराधिक घटनाओं से अछूता नहीं है। लुधियाना में इसी वर्ष जनवरी में चार-वर्षीय एक बच्ची की हत्या के बाद उससे दुराचार किये जाने की घटना ने व्यापक सनसनी फैलाई थी। चंडीगढ़ में एक नाबालिग लड़की की गुमशुदगी के बाद उच्च न्यायालय की फटकार के बाद, प्रशासन और पुलिस हरकत में आये। जालन्धर में इसी मास एक नाबालिग युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म किये जाने की घटना बेहद शर्मनाक वारदात रही। ऐसी घटनाओं का एक त्रासद पक्ष यह भी रहा है कि समृद्धि और चकाचौंध की आहट वाले शहरों में ऐसी घटनाओं में एकाएक वृद्धि हुई है। मनोचिकित्सकों के अनुसार पारिवारिक और परिचित मुआशिरे में  ऐसी घटनाएं होना बड़ी चिन्ता का विषय है। उत्तराखंड के हल्द्वानी क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों के संरक्षण हेतु बनाये गये एक आश्रय-गृह में मानसिक रूप से अस्वस्थ एक अवयस्क बच्ची के साथ दुष्कर्म किये जाने की घटना के दृष्टिगत, दो महिला सदस्यों की गिरफ्तारी सरकारी धरातल पर प्रशासन की कोताही को प्रकट करती है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में एक विधायक को एक विशेष अदालत द्वारा एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म मामले में पोक्सो कानून के तहत 25 वर्ष कैद की सज़ा दिया जाना भी इसी ओर संकेत करता है कि कानून बनाने वालों द्वारा ही कानून का उल्लंघन एक बड़ा मामला बनता है।
हम समझते हैं कि इस संबंध में समाज और प्रशासन के धरातल पर अधिक सतर्कता, जागरूकता एवं सक्रियता की बड़ी ज़रूरत है। सही भावना और ईमानदारी के साथ कानूनों को लागू किये जाने से नि:संदेह ऐसी घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों को प्रभावी जांच, अभियोजन पक्ष और पीड़ितों की सुरक्षा के यत्न और उन्हें न्याय प्रदान किये जाने की सक्रियता उनकी पीड़ा को कम करने हेतु साधन बन सकती है। हम समझते हैं कि इस पथ पर बच्चों और विशेषकर अवयस्क बच्चियों को इस मर्मांतक पीड़ा से बचाने के लिए समाज, राष्ट्र और न्यायिक धरातल पर प्रभावी ढंग से बहुत कुछ किये जाने की बड़ी आवश्यकता है।