फूफा जी! चंदन लगाइए, गिफ्ट में बुलेट ले जाइए

फूफा जी घर आए हैं, लेकिन वे काफी नाखुश हैं। सूचना के बाद भी उन्हें कोई स्टेशन लेने नहीं गया। अपनी लानत-मलानत से वे खासे नाराज़ हैं। बेचारे माघ-पूस की दांत बजाने वाली ठंड में रेलवे स्टेशन से पैदल चल कर घर आए हैं। पूरे बदन से पसीना टपक रहा है जैसे जेठ की दुपहरी में भूसौल से दंड लगाकर निकले हैं। फूफा जी, लड्डू के वियाह में आए हैं। जिसकी वजह से इस तरह की तौहीन उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहीं है।
फूफा जी ने इस गुस्ताखी को अपने सम्मान से जोड़ लिया था। फूफा जी को स्टेशन से घर लाने की जिम्मेदारी बाबू जी ने गोवर्धन को सौपी थीं। लेकिन वह पूरा गोबर है। उससे का मतलब फूफा जी आ रहे हैं या जीजा जी। ससुरा पूरा का पूरा लम्पट है। उसे सुधारने की बाबू जी की लाख डाट कोई मतलब नहीं रखती। पूरा गैंडा है मोटी चमडी का। बस! तम्बाकू ओठ में दबा खींस निपोर कर चलता बनता है। उधर बाबू जी हालत खिसियानी बिल्ली की तरह हो जाती है। लेकिन! उनके गुस्से का डंडा किसी न किसी पर दंड बन ज़रूर बरसता है।
फूफा जी, बाबू जी की पीढ़ी में इकलौते खानदानी जीजा हैं। बेचारे फूफा जी की तौहीन बाबू जी और उनके भाईयों को भी बुरी लगी थीं। लेकिन बात नालायक गोवर्धन पर आकर फंस गयीं। जहां सभी ने अस्त्र रख दिया। उधर फूफा जी कड़ाहीं में छनती गरमा-गरम पूड़ी की तरह गोलगप्पा हुए हैं। घंटे भर से रसमलाई की प्लेट रखी है। उसकी तरफ देखना तो दूर निगाहें तिरछी कर के भी नहीं देख रहे हैं। गरमा-गरम पकौड़ा और चाय ठंड में ओला हो गयी। लेकिन फूफा  जी टस से मस नहीं हुए।
अब बाबू जी परेशान हुए जा रहे थे कि बरात बिदा होते बखत लड्डूवा को चंदन लगाने की रस्म कौन निभाएगा। खानदान में इकलौते जीजा जी यहीं ठहरे। बाबू जी ने फूफा जी को मनाने लड्डूवा को ही भेजा। अरे! फूफा जी आप क्यों नाराज़ हैं। वैसे आपको लाने तो हर बार हमी जाते रहे, लेकिन इस बार जनेऊ में फंस गए। गोवर्धन ने सब गुड़ गोबर कर दिया। माफ करिए फूफा जी, इस बार आपकी तिलक लगाने की रस्म शानदार होगी। आपकी घर वापसी रेल से नहीं बुलट से होगी। मुझे चंदन लगाने की रस्म में बाबूजी ने आपको गिफ्ट में बुलट देने का फैसला किया है। यह बात सुन फूफा जी का फूला मुंह गुलाब की तरह खिल उठा था। बरामदे में बैठे रिश्तेदारों ने जोर का ठहका लगाया था। (सुमन सागर)