हाथों की करामात

प्राचीन समय की बात है कि एक गांव में हुसैन नाम का एक किसान रहता था। उसके तीन बेटे और दो बेटियां थीं। उसकी रोटी रोजी का साधन उसके खेत ही थे, जिन पर वह खेती करके अपने परिवार का निर्वाह करता था। उसने अपने बेटे बेटियों की शादियां कर दी थीं। वे सभी इकट्ठे मिलकर रहते थे। उसने अपने तीनों बेटों को कह रखा था कि आप में से जिसका मन परिवार से अलग रहने को करता हो तो वह अलग होकर रह सकता है, लेकिन उसका कोई भी बेटा उसके परिवार से अलग होने की बात सोचता भी नहीं था। क्योंकि किसान स्वयं बहुत परिश्रमी था। वह काफी बूढ़ा हो चुका था, लेकिन फिर भी वह अपने बच्चों से भी अधिक काम किया करता था। इसीलिए उसके घर में पूर्ण सुख समृद्धि थी। उसके बच्चे उसे अक्सर ही कहा करते थे कि उसकी बहुत आयु हो चुकी है। उसने सारी उम्र बहुत काम किया है। अब उसकी आराम करने तथा बैठकर खाने की उम्र है। अब वह अपने खेतों में काम करना छोड़ कर आराम किया करे। वह अपने बच्चों को अक्सर कहा करता, बच्चों इन्सान तभी बूढ़ा होता है, जब उसके हाथ पांव काम करना बंद कर दे। मेरे तो अभी हाथ पांव पूरी तरह काम कर रहे हैं, फिर मैं बूढ़ा कैसे हो गया। उसके बच्चे उसका उत्तर सुनकर निरुत्तर हो जाते। वह अपने बेटों से भी अधिक काम करता।
एक दिन किसान का एक बहुत ही घनिष्ठ मित्र उसे बहुत समय के पश्चात अपने परिवार के साथ मिलने आया। वह उसके घर कई दिनों तक रहा। किसान का मित्र तथा उसकी पत्नी किसान के घर की सुख समृद्धि तथा उसके पुत्रों के अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धा भाव को देखकर हैरान रह गए। वह कई दिनों तक देखते रहे कि वह किसान के बिना कहने से ही बहुत ज्यादा काम करते हैं। उन्हें देख कर उनके मन में आया कि उनके बच्चे तो उनके कहने पर भी काम नहीं करते और ये बिना कहने से ही बहुत ज्यादा काम करते हैं। एक दिन किसान के मित्र तथा उसकी पत्नी ने उसे पूछ ही लिया, भाई साहिब, आपके परिवार की सुख समृद्धि तथा आपके बच्चों की आपके प्रति श्रद्धा भावना को देखकर हम बहुत प्रभावित हैं। हमारे बच्चे तो खेती के काम को हाथ तक नहीं लगाते। तुमने अपने बच्चों में इतनी मेहनत करने की भावना कैसे पैदा की है? किसान ने अपने मित्र को उत्तर दिया, मित्र तुम सुबह उठकर मेरे साथ चलना तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। किसान अपने मित्र को सुबह चार बजे उठकर अपने खेतों में ले गया। किसान ने अपने खेतों में सुबह दस बजे तक काम किया। दस बजे उसकी पत्नी उन्हें खेतों में ही नाश्ता ले आई। नाश्ता करते-करते ही खेतों में काम करने के लिए उसके तीनों बेटे आ गए।
नाश्ता करने के बाद वह उसे अपने दूसरे खेत में ले गया। उस खेत में भी उसने तीन घंटों तक अपनी पत्नी के साथ काम किया। किसान के मित्र ने उसे फिर पूछा, भाई, मैं तुम्हारी इस बात को समझा नही, पहले तुम काम करने कहीं और खेतों में गए, वहां काम करने के पश्चात फिर किसी और खेत में आ गए, क्या यह खेत अलग है? किसान ने उत्तर दिया, भाई जरा धैर्य रखो, मैं तुम्हारे एक-एक प्रश्न का उत्तर दूंगा। घर जाकर उन्होंने नहा धोकर खाना खाया और विश्राम करने के लिए लेट गए। आराम करने के पश्चात उसने अपने घर के एक कमरे में तीन घंटे तक बान बुनने का काम किया। एक बेटे ने बुने हुए बान को एक दुकान पर बेचकर पैसे उसको लाकर दे दिए। रात को खाना खाने के पश्चात उसने अपने मित्र तथा उसकी पत्नी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, मित्र आप मुझसे मेरे घर की सुख समृद्धि और मेरे पुत्रों के परिश्रमी होने के बारे में तथा अलग खेत के बारे में पूछ रहे थे। मित्र इतनी उम्र में भी जब मैं स्वयं इतनी मेहनत करता हूं, तब मेरे पुत्र इतनी मेहनत करते हैं। मैं और मेरी पत्नी अपने पुत्रों पर निर्भर नहीं करते। मैंने अपना अलग खेत ले रखा है। मैं बान बुनने का कार्य करता हूं। इसी कमाई से मैं अपना खर्च चलाता हूं। किसान की बातें सुनकर उसका मित्र बोला, भाई हमने सारी उम्र काम ही किया है, अब तो इन बच्चों को काम और हमें आराम करना चाहिए। किसान अपने मित्र की बात सुनकर बोला, मित्र यह मेरे हाथों की ही करामात है यदि मैं भी आप की तरह सोचता होता तो न तो मेरे घर में सुख समृद्धि होती और न ही इन बच्चों को काम करने की आदत पड़ती। यदि हाथ पांव चलते हों तो मेहनत करने के लिए उम्र नहीं देखी जाती। किसान की बातें सुनकर उसके मित्र को समझ आ गई कि उसके पुत्र काम क्यों नहीं करते। वह किसान के घर से यह निर्णय लेकर गया कि अब वह खुद भी किसान की तरह मेहनत करेगा, ताकि उसके बच्चे भी मेहनत करना सीख सकें।

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