भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ-जैतो मोर्चा

21 फरवरी 2024 को जैतो मोर्चा आंदोलन के 100 वर्ष पूर्ण हुए हैं। यह एक साहसपूर्ण संघर्ष का इतिहास है जो सिखों द्वारा अंग्रेजों से अपनी संस्कृति व धार्मिक स्थानों को बचाने के लिए अहिंसात्मक रूप से किया गया था। अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह राज्य हड़पने का प्रयास किया, जिसका सिखों ने शांतिपूर्ण रूप से विरोध शुरू किया। महाराजा रिपुदमन सिंह सिखों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। ब्रिटिश सरकार ने 9 जुलाई, 1923 को महाराजा रिपुदमन को जबरन हटाकर उनके नाबालिग पुत्र को गद्दी पर बिठा दिया।
5 अगस्त, 1923 को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा आयोजित एक सभा में सहानुभूति प्रस्ताव पारित कर कहा गया, ‘सभी उचित और शांतिपूर्ण तरीकों से महाराजा रिपुदमन सिंह के साथ हुए अन्याय को दूर किया जाए।’ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने 9 सितम्बर, 1923 को ‘नाभा दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। सिख संगत द्वारा गांव-गांव धार्मिक दीवान, नगर कीर्तन और महाराजा रिपुदमन सिंह के साथ हुए अन्याय को दूर करने के लिए अरदास में शामिल होने की अपील की गई।
सिख संगत ने 25, 26 व 27 अगस्त, 1923 को नाभा के गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब, जैतो में दीवान सजाने और श्री अखंड पाठ साहिब करने का निर्णय लिया। ब्रिटिश पुलिस ने उसी वर्ष 25 अगस्त के दीवान में भाग लेने वाले सिखों के नामों की एक सूची तैयार की और लंगर चलाने वाली संगत को डराया एवं धमकाया गया। 
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की अपील के कारण 9 सितम्बर, 1923 को ‘नाभा दिवस’ मनाते हुए सिख रियासताें और पंजाब के लगभग सभी शहराें में नगर कीर्तन निकाले गए, दीवान सजाए गए, प्रस्ताव पारित किए गए और अरदास की गई। जैतो मंडी में भी नगर कीर्तन निकाला गया और गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब में दीवान सजाकर श्री अखंड पाठ साहिब आरंभ किये गये। उस समय नाभा रियासत का प्रशासन ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त श्री विल्सन जॉनस्टन के अधीन था। राज्य में किसी को भी महाराजा रिपुदमन सिंह के संबंध में कोई राय, शिकायत या प्रस्ताव पारित करने की अनुमति नहीं थी। 9 सितम्बर, 1923 को नगर कीर्तन में भाग लेने वाले अकालियों को गिरफ्तार कर लिया गया। 14 सितम्बर, 1923 को गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब में सजाए गए दीवान में ब्रिटिश सरकार के सशस्त्र वर्दीधारी सैनिकों का एक दस्ता दाखिल हो गया।
अंग्रेज पुलिस श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सेवा में बैठे ज्ञानी इंदर सिंह को घसीटते हुए ले गए। इस पर रोष स्वरूप पूरा सिख पंथ एकजुट होकर शासन के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए खड़ा हो गया। 101 श्री अखंड पाठ साहिब लगातार करने का निर्णय लेकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से तीन समूह गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब, जैतो भेजे गये। जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। यह देखकर संगत ने प्रतिदिन 25-25 सिखाें का जत्था गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब, जैतो भेजने का निर्णय लिया। ऐसा पहला समूह 15 सितम्बर, 1923 को श्री अकाल तख्त साहिब से पैदल रवाना हुआ। कोई संतोषजनक परिणाम न देखकर 500-500 सिखों को जैतो भेजने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के तहत पहला जत्था 9 फरवरी, 1924 को गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब, जैतो में श्री अखंड पाठ साहिब प्रारम्भ करने के लिए निकल पड़ा। फरीदकोट के बरगाड़ी गांव पहुंच कर 21 फरवरी, 1924 को सुबह ‘आसा दी वार’ का कीर्तन और दीवान खत्म करके जत्था जैतो की ओर चल पड़ा।
सड़क पर कंटीले तार लगा दिए गए और भारी पुलिस तैनात कर दी गई। गुरुद्वारे के पास किले पर मशीनगनें लगी हुई थीं और ब्रिटिश सेना और पुलिस जगह-जगह बंदूकें ताने खड़ी थी। शहीदी जत्था गुरुद्वारा श्री टिब्बी साहिब से लगभग 150 गज पीछे था जहां पर एक अंग्रेज अधिकारी ने जत्था को आगे बढ़ने से रोका। जत्था गुरुद्वारा श्री टिब्बी साहिब की ओर लगातार बढ़ता रहा। जब एक बच्चे की गोली लगने से मौत हो गई तो उसकी मां बच्चे के शव को जमीन पर लिटा कर अपने साथियों के साथ आगे बढ़ती चली गई। आगे चलकर उसकी भी गोली मारकर हत्या कर दी। अंग्रेज अधिकारी ने सेना को गोली चलाने का आदेश दिया। तीन तरफ से गोलीबारी शुरू हो गयी। जो पांच मिनट तक निरतंर चलती रही, लेकिन सिखों का जत्था शांतिपूर्वक, साहस और विनम्रता के साथ आगे बढ़ता गया। इस गोलीबारी में इतिहास के अनुसार, लगभग 300 सिख घायल हुए एवं 100 से अधिक सिखों ने शहीदियां प्राप्त कीं। 
इस दर्दनाक घटना से न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी सिखों में आक्रोश की लहर फैल गयी। इस मोर्चे में कलकत्ता से एक जत्थे के अलावा, 11 सिखों का एक जत्था कनाडा से आया, दो जत्थे चीन से आए, एक शंघाई से और दूसरा हांगकांग से।
सत्रहवां शहीदी जत्था 27 अप्रैल, 1925 को श्री अकाल तख्त साहिब से लायलपुर होते हुए पैदल जैतो की ओर निकला। रास्ते में सिखों को सूचना मिली कि ब्रिटिश सरकार ने सभी प्रतिबंध हटा दिए हैं। गुरुद्वारा श्री गंगसर साहिब, जैतो में श्री अखंड पाठ साहिब शुरू करने के लिए सिखों को एक वर्ष और दस महीने तक अथक प्रयास करना पड़ा। सिखों की संपत्ति और घर ब्रिटिश सरकार द्वारा ज़ब्त कर लिए गए और उन्हें उनकी संबंधित रियासतों से निर्वासित कर दिया गया। कई सिख सरदारों के पद भी छीन लिये गये। पंजाब के गर्वनर सर मेल्कॉम हैली के माध्यम से अंग्रेज़ सरकार पंडित मदन मोहन मालवीय और भाई जोध सिंह के ज़रिये वार्ता हेतु तो तैयार थी परंतु महाराजा रिपुदमन सिंह को अपने राज्य में पुन: स्थापित करने की इच्छुक नहीं थी। इसी बीच सरकार द्वारा 7 जुलाई, 1925 को सिख गुरुद्वारा बिल सर्वसहमति के साथ पारित कर दिया गया। सारे बंदियों को रिहा कर दिया गया। सारी पाबंदियां हटा दी गईं और सिखों द्वारा 101 श्री अखंड पाठ साहिब की संपूर्णता 6 अगस्त, 1925 को की गई।

-निदेशक, पंजाबी साहित्य अकादमी
म.प्र. संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग