पंजाब के खनन उद्योग पर संकट के बादल

पंजाब में रेत-बजरी की खुदाई के संबंध में अब तक के अनेक उतार-चढ़ावों के बावजूद, ‘आप’ की भगवंत मान सरकार द्वारा अभी तक कोई ठोस अधिकृत नीति न बनाये जाने से, प्रदेश का यह एक लाभकारी धंधा घाटे की ओर अग्रसर हो गया है। इस कारण एक ओर रेत-बजरी के खनन का कार्य निरन्तर सीमित एवं संकुचित होता गया है, दूसरी ओर इन की कीमतें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं।  महंगाई की मार तो एक ओर, प्रदेश के कई ज़िलों में इनकी उपलब्धता भी दुर्लभ होकर रह गई है। खनन केन्द्रों पर अब तक पड़ी पुरानी मशीनरी को जंग लगने के समाचारों से सरकार और आम कारोबारियों, दोनों को भारी नुक्सान सहन करना पड़ रहा है।  स्वयं सरकार के राजस्व में भारी कमी होने का भी पता चला है। 
अतीत में प्रदेश की सरकारें इस संबंध में बाकायदा समुचित नीति-निर्धारण और फिर उस पर सही तरीके से क्रियान्वयन से रेत-बजरी की उपलब्धता को आवश्यक बनाया करती थीं। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान भी आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग बार-बार ऐसे दावे एवं घोषणाएं करते रहे हैं कि रेत, बजरी और मिट्टी के खनन-व्यवसाय से 20 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व एकत्रित करेंगे। परन्तु सरकार के गठन के बाद से, नई नीतियां तो क्या बननी थीं, उलटे पिछली नीतियों को भी उजड़े आशियाने की तरह बना कर रख दिया गया है। इसका परिणाम यह निकला है कि एक ओर तो गृह-निर्माण और यहां तक कि मामूली-सी मुरम्मत आदि का कार्य महंगा और कठिन होता जा रहा है, वहीं ये पदार्थ आम आदमी की पहुंच से दूर होते चले गये हैं।
इस समस्या का एक सर्वाधिक त्रासद पक्ष यह भी है कि सरकार सब कुछ जानते हुए भी, ़ग़फलत की निद्रा में लीन है। पंजाब के खनन मंत्री चेतन सिंह जौड़ामाजरा ने एक सवाल के जवाब में कहा है कि सरकार खनन संबंधी नई नीतियों को लेकर जल्दी ही सामने आएगी। कमाल है, एक ओर रेत-बजरी की कीमतों और कमी के धरातल पर आग लगने जैसी स्थिति बनी है, दूसरी ओर सरकारी नीरो बांसुरी बजाने में रत दिखाई देते हैं। मंत्री महोदय स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि स्थितियों में सुधार लाये जाने की बड़ी आवश्यकता है। एक आरोप यह भी है कि इस संबंधी नीति-निर्धारण इसीलिए नहीं हो रहा ताकि ‘आप’ नेताओं के नातेदार अवैध खनन के ज़रिये अपनी तिजोरियां भर सकें। इस आरोप का प्रमाण एक ‘आप’ नेता के तीन रिश्तेदारों के विरुद्ध अवैध खनन हेतु दर्ज मुकद्दमे से साफ तौर पर मिल जाता है।
हम समझते हैं कि सरकार को इधर-उधर की बात करने की बजाय, जन-साधारण के लिए रेत-बजरी की उपलब्धता को अत्यावश्यकता के बल पर सम्भव बनाने की तत्काल कोशिश करनी चाहिए। अगले कुछ दिनों में चुनावी आचार संहिता के लागू हो जाने की बड़ी सम्भावना है। स्वयं पंजाब सरकार की अपनी चुनावी व्यस्तताओं के कारण भी यह कार्य कठिन हो जाएगा। खनन केन्द्रों पर कार्य बन्द होने का असर कई अन्य सम्बद्ध व्यवसायों पर भी पड़ने की आशंका है। इस बड़े धंधे से जुड़े हज़ारों लोगों और उनके  परिवारों में बेकारी और बेरोज़गारी बढ़ने का संकट भी उभर कर सामने आने लगा है। नि:संदेह इससे आम आदमी पार्टी के शासन में, आम आदमी की समस्याएं और कठिनाइयां अधिक बढ़ गई हैं। अत: जैसे भी हो भगवंत मान सरकार को कोई ठोस खनन नीति लेकर सामने आना चाहिए।