क्या ‘इंडिया’ गठबंधन भाजपा के लिये चुनौती बनेगा ?

‘इं डिया’ गठबंधन के लिए हाल में कुछ अच्छी खबरों ने जहां उसमें नये उत्साह का संचार किया है, वहीं भाजपा के लिये चिंता के कारण भी उत्पन्न किये हैं। पहले उत्तर प्रदेश और फिर दिल्ली में समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी से सीट बंटवारे पर बनी सहमति ने टूट के कगार पर पहुंचे ‘इंडिया’ गठबंधन में वर्ष 2024 के आम चुनावों को लेकर संभावनाभरी तस्वीर को प्रस्तुत किया है। अब ये चुनाव दिलचस्प होने के साथ कुछ सीटों पर कांटे की टक्कर वाले हो जाएंगे। इन नये बन रहे चुनावी समीकरणों के बावजूद भाजपा के लिये अभी कोई बड़ा संकट नहीं दिख रहा, भले ‘इंडिया’ गठबंधन ढींगें हांके कि वह भाजपा एवं उसके गठबंधन के लिए कड़ी चुनौती पेश करने की स्थिति है। भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का जब गठबंधन बना, तभी यह आशंका उत्पन्न हो गई थी, कि यह कितनी दूर चल पायेगा? यह टिक पायेगा भी या नहीं? कुछ हालात तो ऐसे भी बने कि इसके तार-तार होने की संभावनाएं बलवती हुईं। 
सत्ता तक पहुंचने के लिए जिस प्रकार दल-टूटन व गठबंधन हो रहे हैं, इससे सबके मन में अकल्पनीय सम्भावनाओं की सिहरन उठती है। राष्ट्र और राष्ट्रीयता के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगने लगा है। कुछ अनहोनी होगी, ऐसा सब महसूस कर रहे हैं। प्रजातंत्र में टकराव होता है, विचार फर्क भी होता है, मन-मुटाव भी होता है पर मर्यादापूर्वक लेकिन अब इस आधार को ताक पर रख दिया गया है। राजनीति में दुश्मन स्थायी नहीं होते। अवसरवादिता दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बना देती है। यह भी बड़े रूप में ऐसा ही देखने को मिल रहा है। राजनीति नफा-नुकसान का खेल बन रही है, मूल्य बिखर रहे हैं। चारों ओर सत्ता की भूख है। पिछले कुछ समय से ‘इंडिया’ गठबंधन को एक के बाद एक कई झटके लगे। 
छोटे-बड़े नेताओं के कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला भी जारी रहा। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम खास तौर पर चर्चित रहा। इसे चाहे इन नेताओं का व्यक्तिगत अवसरवाद कहें या भाजपा और राजग नेतृत्व की सक्रियता एवं राजनीतिक कौशल, इतना तय है कि इन नेताओं को कांग्रेस का भविष्य खास अच्छा नहीं दिख रहा। आम आदमी पार्टी एवं समाजवादी पार्टी जैसे दल अपनी साख बचाने एवं सत्ता के करीब बने रहने के लिये सीटों के बंटवारे पर सहमत हुए हैं। कांग्रेस का घुटने टेकना उसकी टूटती सांसों को बचाने की जद्दोजहद ही कही जायेगी। कांग्रेस एवं अन्य दलों के बीच सहमति के स्वर उभरने से आगामी लोकसभा चुनाव में अच्छा मुकाबला दिख सकता है लेकिन अहम सवाल तो यही है कि क्या गठबंधन की गाड़ी आगे और हिचकोले नहीं खाएगी? क्या यह दावा पूरी दृढ़ता से किया जा सकता है?
अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस से सीटों पर सहमति बनाकर पलटूराम ही बने हैं। जी-भरकर एक-दूसरे को कोसने वाले जब हाथ मिलाएं तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। देखा जाये तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन होना मूल्यहीनता एवं सिद्धांतहीनता की चरम पराकाष्ठा है क्योंकि कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ लड़ कर और आंदोलन खड़ा करके ही आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ था। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब की सत्ता से कांग्रेस को बाहर किया और अपनी स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। आम आदमी पार्टी के चमत्कारिक प्रदर्शन के चलते ही गुजरात में कांग्रेस ने अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी ने गोवा में भी कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया और हरियाणा में भी अपने संगठन का आधार बढ़ाया। ताजा कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी की सहमति से कांग्रेस को ही नुकसान होना है। 
ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस के लिए उसकी मौजूदा दो लोकसभा सीटों को ही छोड़ने की बात कह कर कांग्रेस के अधिक सीटों पर दावा करने को ठुस्स कर दिया है।
‘इंडिया’ गठबंधन के नये बन रहे सकारात्मक परिदृश्यों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक सेहत पर कोई असर न झलकना उनकी राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है। 2024 के चुनावों में भाजपा के लिए 370 और राजग के लिए 400 सीटों का लक्ष्य तय करने के मोदी के दावे के सामने अभी भी कोई बड़ी चुनौती दिख नहीं रही है। 
अमित शाह ने अब तमिलनाडु की कमान संभाल ली है और पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख के. अन्नामलै को काम करने की खुली छूट दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तमिलनाडु का दौरा किया है, जिसे दक्षिण में भाजपा के चुनावी अभियान की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। केंद्रीय मंत्रियों को बड़ी जिम्मेदारी के साथ सक्रिय किया गया है। भाजपा के राजनीतिक समीकरणों एवं रणनीतियों के चलते आगामी लोकसभा चुनाव स्वतंत्र भारत का सबसे दिलचस्प चुनाव सिद्ध होने वाला है।