मैरीटोरियस स्कूलों की बिगड़ती दशा

पंजाब की मौजूदा भगवंत मान सरकार की ओर से प्रदेश के मैरीटोरियस स्कूलों की निरन्तर अनदेखी के कारण बनी दयनीय स्थिति संबंधी समाचारों ने नि:संदेह प्रदेश की आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा बच्चों को बेहतर और स्तरीय शिक्षा देने के दावों की हवा निकाल कर रख दी है। प्रदेश की पूर्व सरकारों की तमामतर शिक्षा नीतियों को हाशिये पर धकेलते हुए इस सरकार ने अपने गठन के तत्काल बाद शिक्षा के धरातल पर इस प्रकार की नीतियों पर क्रियान्वयन किया कि मानो प्रदेश के शिक्षा ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन किये जाने वाले हैं। प्रदेश में पूर्व की सरकारों के काल में आदर्श स्कूलों और मैरीटोरियस स्कूलों की एक अवधारणा स्थापित की गई थी, जिसके तहत नई शिक्षा नीति और प्रशिक्षित अध्यापकों के द्वारा नये ढंग से शिक्षा दिया जाना तय किया गया था किन्तु मौजूदा ‘आप’ सरकार की कथित शिक्षा नीतियों के कारण प्रदेश के सम्पूर्ण शिक्षा ढांचे में उथल-पुथल की गई जिसके तहत मैरीटोरियस स्कूलों को पूर्णतया दृष्टिविगत किया जाने लगा। मौजूदा सरकार की अपनी नई नीति के अनुसार सरकारी स्कूलों के  अध्यापकों को विदेशों में प्रशिक्षण दिलाने के नाम पर भारी-भरकम बजट रखा गया, और चयनित शिक्षकों को विदेशों में भेजा भी गया। इस नीति के तहत अधिकतर पुराने शिक्षण स्थलों का पुनर्नवीकरण भी किया गया, और कुछ बड़े शिक्षण केन्द्रों में नये भवनों का भी निर्माण किया गया ताकि वहां पर नई नीति के तहत स्कूलों की स्थापना की जा सके, किन्तु जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया, मैरीटोरियस स्कूलों की स्थिति निरन्तर बेहद दयनीय होती चली गई।
आज स्थिति यह हो गई है कि सरकार अपने ही प्रदेश के इन बेहतर स्कूलों से विमुख होकर इनकी नियति की खराबी का कारण बन रही है। न तो इन स्कूलों में नई भर्ती की जा रही है, न इनमें पुस्तकालयों अथवा प्रयोगशालाओं की ही व्यवस्था की गई है। अधिकतर या तो पुराने भवनों और पुराने स्टाफ को ही थोड़ा इधर-उधर करके अथवा पुराने भवनों में कार-विस्तार करके नई नीति का काम चलाने की व्यवस्था की गई है। इन स्कूलों की वित्तीय व्यवस्था को सुचारू बनाये रखने के लिए भी कोई अतिरिक्त यत्न नहीं किये गये। मैरीटोरियस स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए दोपहर-बाद भोजन के लिए भी कोई नई व्यवस्था न किये जाने से पुराना ढांचा भी चरमराने लगा है। इस कारण मैरीटोरियस विद्यार्थियों को दी जाने वाली डाईट (खुराक) में सुधार करते-करते उसमें और कमी आने लगी है। इस स्थिति में मध्याह्न भोजन के लिए निर्धारित धन-राशि में कमी होते जाने से, बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने का ़खतरा भी पैदा हुआ है। ऊपरी धरातल पर इस राशि में एक सौ रुपया प्रति विद्यार्थी कमी की गई, जो निचले स्तर तक पहुंचते-पहुंचते और कम हो जाती है। इस भोजन की क्वालिटी में खराबी आने से बच्चों के अस्वस्थ होने की सूचनाएं भी मिलने लगी हैं। धन की कमी के कारण मिड-डे-मील स्टाफ की कमी होते जाने से भी इन स्कूलों की बदनामी होने लगी है। ‘आप’ की मौजूदा सरकार अपने ही प्रदेश की इस उपलब्धि के चेहरे पर द़ाग लगाने पर क्यों आमादा है, यह बात समझ से बाहर होती दिखाई देती है।
मैरीटोरियस स्कूलों की नियति पर एक स्याह लकीर यह भी है कि इनके शिक्षण स्टाफ को न तो वार्षिक तरक्की दी गई है, न इनके वेतन-मान में सुधार की कोई योजना ही घोषित की गई है। इन स्कूलों हेतु नई भर्ती की भी कोई योजना तैयार नहीं की गई है। लिहाज़ा इन स्कूलों में विद्यार्थियों की पढ़ाई का प्रभावित होना बहुत स्वाभाविक है। इन स्कूलों के लिए नई भर्ती न होने, और सामयिक तौर पर अस्थाई रूप से की गई काम-चलाऊ शिक्षण व्यवस्था के कारण विद्यार्थियों की योग्यता का स्तर भी प्रभावित हुआ है। इससे मैरीटोरियस होने की सम्पूर्ण अवधारणा ही त्रुटिग्रस्त होने लगी है। इस कारण इन स्कूलों के शिक्षक वर्ग और विद्यार्थियों, दोनों में रोष और असंतोष की भावना बढ़ने लगी है। शिक्षकों पर बढ़ते इस अकारण बोझ से उनके भीतर तनाव उपजने की आशंकाएं भी बढ़ी हैं। इसे लेकर शिक्षा क्षेत्र से जुड़े मनो-चिकित्सकों ने भी निजी चिन्ता का इज़हार किया है। 
भगवंत मान सरकार की शिक्षा नीति की दूसरी बड़ी विफलता निजी स्कूलों के धरातल पर भी उभर कर सामने आई है। निजी स्कूलों द्वारा ़गरीब वर्ग के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने और मुफ्त प्रवेश दिये जाने के प्रस्ताव पर अमल न किये जाने पर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार को नोटिस भेज कर जवाब मांगा है। बच्चों को ज़रूरी शिक्षा के तहत निजी स्कूलों पर 25 प्रतिशत मुफ्त दाखिले आवश्यक करार दिये गये थे। हम समझते हैं कि प्रदेश की मौजूदा सरकार शिक्षा नीति के प्रत्येक चरण पर विफल सिद्ध हुई है। इस सरकार ने पूर्व में जारी नीतियों में सुधार एवं संशोधन हेतु जो नई योजनाएं तैयार कीं, वे विपरीत परिणाम-दायी अधिक साबित हुई हैं। नि:संदेह इन नई नीतियों एवं घोषणाओं के निकट भविष्य में सुखद फलदायी सिद्ध होने की कोई सम्भावना भी दिखाई नहीं देती। 
हम समझते हैं कि मैरीटोरियस स्कूलों की अवधारणा को बनाये रखने, और इसके तहत शिक्षा के धरातल पर अच्छे परिणाम हासिल करने के लिए मैरीटोरियस स्कूलों को बाकायदा सत्ता-संरक्षण दिया जाना बहुत ज़रूरी है। नि:संदेह इनमें आवश्यकतानुसार नई भर्ती और ज़रूरी साजो-सामान को उपलब्ध कराये बिना, मौजूदा शिक्षा धरातल पर फूलों की सेज जैसी कल्पना करना सम्भव प्रतीत नहीं होता।