मतदाता सूचियों में संशोधन

बिहार में मतदान अभी होना है। मुख्य चुनाव आयोग ने इससे कुछ महीने पहले प्रदेश के मतदाताओं को आधार बना कर विशेष व्यापक संशोधन (एस.आई.आर.) की जो घोषणा की थी उसकी कई विपक्षी पार्टियों ने बड़ी आलोचना की थी और कई तरह के एतराज़ भी उठाए गए थे। इसके बाद इन आलोचकों और चुनाव आयोग में एक बड़ा आपसी विवाद भी चलता रहा। विरोध में जितने भी एतराज़ प्रकट किए जाते रहे चुनाव आयोग उनके स्पष्टीकरण देता रहा। 
आयोग द्वारा इस चुनाव संशोधन के लिए फार्म बना कर जिन मतदाताओं से प्रमाणिकता के लिए 11 दस्तावेज़ों की मांग की गई थी, उससे यह विवाद और भी बढ़ गया था। बात अदालतों तक पहुंच गई थी और इस अहम मुद्दे के लिए सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा था। जिसमें सर्वोच्च अदालत ने मतदाता सूचियों के गहनता से संशोधन संबंधी क्रियान्वयन में कई सुधार करने के आदेश भी दिए और इस क्रियान्वयन के लिए भरे जाने वाले फार्मों को सरल बनाने के लिए भी कहा गया। पहले दस्तावेज़ों में आधार कार्ड को एक तरह से अनदेखा ही किया गया था परन्तु सर्वोच्च अदालत ने इसे मतदाता की पहचान के लिए एक अहम प्रमाण बताया। ऐसी बड़ी कठिनाइयों और संशोधनों के बावजूद चुनाव आयोग ने नई मतदाता सूचियां बनाने का काम जारी रखा और यह भी कहा कि 21 वर्ष पहले, 2002-2004 में ऐसा संशोधन किया गया था। जिसे ज्यादा समय व्यतीत होने और हालात के बदलने से इस समय यह क्रियान्वयन पुन: किया जाना ज़रूरी था।  अब चुनाव आयोग ने यह भी घोषणा की है कि यह प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूर्ण कर ली गई है और यह भी कि इसे लेकर कोई भी अपील नहीं आई जो इस प्रक्रिया की सफलता की निशानी है। अब चुनाव आयोग ने बिहार के बाद 12 अन्य राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों में मतदाता सूचियों के संशोधन करने की घोषणा की है। आयोग द्वारा इसे तीन महीनों में पूरा किया जाएगा और 4 नवम्बर, 2025 से 4 दिसम्बर, 2025 तक इस संबंध में घर-घर जाकर सम्पर्क किया जाएगा और पूर्ण सूचियां 7 फरवरी, 2026 को जारी की जाएंगी। नि:संदेह दूसरे चरण में यह प्रक्रिया बड़ी विशाल है।
इसमें लगभग 51 करोड़ मतदाताओं की पहचान की जाएगी। आयोग के अनुसार इसकी निशानदेही के लिए आधार वर्ष 2002 से 2004 की सूचियों को बनाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि मतदाताओं द्वारा पहले फार्म भरते समय किसी तरह का दस्तावेज़ नहीं मांगा जाएगा। यदि मतदाता के नाम की पुष्टि पहले की 2002 या 2004 की सूचियों से हो जाती है तो अन्य किसी दस्तावेज़ की ज़रूरत नहीं होगी। यदि पिछली सूचियों से यह पुष्टि नहीं होती तो उसी स्थिति में संबंधित दस्तावेज़ मांगे जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को मतदाताओं की पहचान के लिए उचित दस्तावेज़ मान लिया है, जिससे यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाएगी। चुनाव आयोग के अनुसार विगत लम्बी अवधि से संशोधन न होने के कारण अनेक मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है। कई लोगों ने अपने स्थान बदल लिए हैं। कई जालसाज़ी से मतदाता बन गए थे और कई मतदाताओं के नाम कई स्थानों और अलग-अलग सूचियों में शामिल हैं। उस अनुसार यदि घर-घर जा कर क्रियात्मक रूप में यह कार्य पूर्ण किया जाता है तो मतदाता सूचियों में ज्यादातर सभी नए मतदाताओं को भी शामिल किया जा सकेगा।
ऐसे स्पष्टीकरण के बावजूद अभी भी कई विपक्षी पार्टियां, संस्थाएं और अन्य लोगों द्वारा एतराज़ किए जाते रहे हैं परन्तु चुनाव आयोग की सफलता इसमें ही मानी जाएगी, कि वह इस प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाए ताकि लोगों के मन में उसकी इस विशाल कार्रवाई संबंधी विश्वास परिपक्व हो सके। इसके साथ ही तैयार की जाने वाली अंतरिम सूचियों में शामिल नामों संबंधी यदि किसी की ओर से कोई एतराज़ किया जाता है तो आयोग द्वारा उसे भी दूर किया जाना ज़रूरी है। वैसे भी सही मतदाताओं के नाम संबंधी यदि कोई प्रश्न उठता है तो उसे या उससे संबंधित राजनीतिक पार्टी या अन्य पक्ष इस संबंध में अदालत में जाने के लिए भी स्वतंत्र होंगे। इस समूचे समय में चुनाव आयोग के समक्ष हर तरह की पारदर्शिता बनाए रखना ज़रूरी होगा, जो किसी भी प्रजातंत्र के लिए स्वास्थ्यवर्धक सिद्ध होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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