अमित शाह का बिहार-विजय का लक्ष्य और महागठबंधन

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सपना अगले पांच दशकों तक पंचायत से लेकर संसद तक भाजपा को सत्ता में देखना है। नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में भाजपा अध्यक्ष के रूप में, शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से बार-बार इस दीर्घकालिक दृष्टिकोण के लिए खुद को समर्पित करने का आग्रह किया था। बिहार का उस सपने में एक विशेष स्थान है। शाह 2015 में उनके नेतृत्व में राज्य में भाजपा को मिले उस झटके को नहीं भूले हैं, जब समाजवादी दिग्गज लालू प्रसाद और नितीश कुमार ने भाजपा की सत्ता की कोशिश को विफल करने के लिए हाथ मिलाया था। उनके करीबी लोगों के अनुसार बिहार से ज्यादा कुमार का विश्वासघात-भाजपा को छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करने का उनका फैसला-शाह को खटक रहा है। नितीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापस आ गए हैं लेकिन भाजपा के एकछत्र शासन की उनकी आकांक्षा अभी भी अधूरी है। 
बिहार में एक और चुनाव होने जा रहा है। शाह अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। वह न केवल बंद दरवाजों के पीछे रणनीति बना रहे हैं बल्कि चुनाव प्रचार में भी आगे बढ़कर नेतृत्व कर रहे हैं। जहां मोदी ने शुक्रवार को दो रैलियों के साथ अपने अभियान की शुरुआत की, वहीं शाह ने भी उनकी गति से कदमताल मिलाते हुए उसी दिन दो रैलियां तथा शनिवार को बिना रूके दो रैलियां खगड़िया और मुंगेर में कीं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को मुंगेर व खगड़िया की धरती पर पांच वर्ष बाद उनका यह दौरा राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम माना था। इससे पूर्व 2020 के विधानसभा चुनाव में वे मुंगेर आए थे। इस बार नौवागढ़ी में आयोजित जनसभा के माध्यम से वे न सिर्फ मुंगेर, बल्कि आसपास के ज़िलों खगड़िया, बांका, लखीसराय और जमुई के एनडीए प्रत्याशियों के समर्थन में वोट की अपील की। 
इससे पहले खगड़िया में खगड़िया मुख्यालय (संसारपुर मैदान) की सभा रद्द होने से तेजस्वी यादव भड़क उठे। इसे तानाशाही रवैया करार दिया। तेजस्वी ने आरोप लगाया, ‘भाजपा और प्रशासन को जनता की भीड़ से डर लग रहा है लेकिन जनता अब किसी के दबाव में आने वाली नहीं है।’ जनता का मूड भांपना कठिन है। मुंगेर में मंच पर पहुंचने के बाद अमित शाह ने देखा कि दर्शक दीर्घा में  कुर्सियां खाली हैं। स्वागत समारोह के दौरान, भीड़ कम होने पर उन्होंने मंच संचालन कर रहीं अंजू भारद्वाज को इशारा किया और प्रदेश अध्यक्ष से संबोधन शुरू करने को कहा। इसी बीच गृह मंत्री अपनी कुर्सी से उठकर खड़े हो गए और मंच से ही सुरक्षा में लगे पुलिस जवानों को निर्देश दिया कि वे चेकिंग हटा दें और लोगों को बिना जांच के कार्यक्रम स्थल पर आने दें। अमित शाह जंगल राज का हवाला देते रहे है। वहीं दूसरी ओर महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने सत्तारूढ़ एनडीए के साथ चुनावी जंग शुरू कर दी, जिसकी सरकार ने बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान कई मुफ्त योजनाओं की घोषणा की थी।
वहीं महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में घोषित तेजस्वी यादव ने राजद नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया कि बिहार में सत्तारूढ़ राजग ‘खत्म होने की राह पर’ है और महागठबंधन के नेतृत्व वाली राज्य की नई सरकार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए वक्फ अधिनियम को ‘कूड़ेदान में डाल देगी’। यह कहकर मुस्लिम मतदाताओं की ओर जहां पासा फेंका, वहीं उन्होंने सत्ता में आने पर पंचायत प्रतिनिधियों के भत्ते दोगुने करने और उन्हें पेंशन देने का वादा किया। उन्होंने बढ़ई, कुम्हार और नाइयों को 5 लाख रुपये का ब्याज मुक्त व्यावसायिक ऋण देने का वादा किया। तेजस्वी ने पहले हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने और संविदा कर्मचारियों को स्थायी रोज़गार देने का वादा किया था पर अपने व्यापक कल्याणकारी एजेंडे के वित्तीय रोडमैप का ब्यौरा देने से परहेज किया। जब उनसे पूछा गया कि नकदी की तंगी की स्थिति में वे धन का प्रबंध कैसे करेंगे, तो उन्होंने कहा, ‘हमने वैज्ञानिक अध्ययन किया है और यह किया जा सकता है। तेजस्वी अपने वादे पूरे करते हैं।’
तेजस्वी ने पटना में मीडिया से कहा, ‘महागठबंधन की सरकार बनने पर हम बिहार की त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था और ग्रामकचहरी के प्रतिनिधियों का मानदेय दोगुना कर देंगे।’ पंचायतों और ग्राम कचहरियों के प्रतिनिधि पेंशन की मांग कर रहे हैं। हमने तय किया है कि उन्हें पेंशन मिलेगी और साथ ही 50 लाख रुपये का बीमा कवरेज भी मिलेगा।
तेजस्वी के बड़े-बड़े वादे नितीश कुमार सरकार की नवीनतम घोषणाओं से आगे निकलने की उनकी उत्सुकता को दर्शाते हैं। विधवाओं और विकलांगों के लिए पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये प्रति माह करने के अलावा, नितीश ने ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 1 करोड़ से अधिक महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपये की नकद राशि हस्तांतरित की है। जून में राज्य सरकार ने बिहार की 8,053 ग्राम पंचायतों, 533 पंचायत समितियों और 38 ज़िला परिषदों के प्रतिनिधियों के भत्ते और अन्य लाभ बढ़ा दिए। नितीश ने ज़िला परिषद अध्यक्षों का मासिक भत्ता 20,000 से बढ़ाकर 30,000 कर दिया है, उपाध्यक्षों का मासिक भत्ता 10,000 से बढ़ाकर 20,000 कर दिया है। मुखियाओं (पंचायत प्रमुखों) का मासिक भत्ता 5,000 से बढ़ाकर 7,500 कर दिया गया है। तेजस्वी का बढ़ई, कुम्हार और नाई जैसे कारीगरों को 5 लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त ऋण देने का वादा, अति पिछड़े वर्गों तक पहुंच बनाने का प्रयास प्रतीत होता है। तेजस्वी ने कहा, ‘बिहार बदलाव के लिए तरस रहा है। लोग वर्तमान सरकार से तंग आ चुके हैं।’
नितीश कुमार जिन्हें बहुत लोग राजनीति का ‘चाणक्य’ कहते हैं, जानते हैं कि मुश्किल समय में भी कैसे खुद को मजबूत और अहम बनाए रखना है। राज्य में शराब बंद करने के फैसले पर कई बार आलोचना हुई लेकिन उन्होंने कई बार कहा, ‘शराब बंदी पर मैं झुकने वाला नहीं हूँ।’ यह दिखाता है कि वे अपने फैसलों में बहुत सख्त और अडिग रहते हैं। दूसरी तरफ वे काफी लचीले भी रहे हैं। 2024 में एनडीए में लौटने के बाद, नितीश ने वादा किया कि अब वे फिर से पार्टी नहीं बदलेंगे जबकि पिछले 15 सालों में वे इसे अक्सर करते रहे हैं। इन टूट-फूट और मेल-मिलाप के बावजूद, नितीश कुमार फिर से सत्तारूढ़ गठबंधन का मुख्य चेहरा बने हुए हैं। अब भी बने रहेंगे, इसका फैसला बिहार के लोगों के हाथ में है। उनका वोट ही इस भ्रम को साफ करेगा जब 14 नवम्बर को चुनाव के नतीजे घोषित होंगे।

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