नये शूरवीरों की कतार
लगता है, शूरवीरता की परिभाषा बदल गई है। पिछले ज़माने में शूरवीर का अर्थ होता था, अनन्य योद्धा। ऊंचा लम्बा, बलिष्ठ शरीर। ऐसा योद्धा जो अपने हर युद्ध में विजय प्राप्त करे। उसके बदन पर कवच कुण्डल हो, जिसे शिरस्त्राण भी कहते हैं। मांसपेशियां सुदृढ़, जिन्हें आजकल जिम से मिले आठ पैक भी कह सकते हैं। ऐसे योद्धाओं के साथ युद्धों में बलिदान हो जाना, और असमय खेत रहना जैसा शब्द भी कहते थे। उनके वीर गति को प्राप्त करने के बाद घर-घर उनकी कहानियां बखानी जाती थीं। भावी सन्तति के लिए पाठ्य पुस्तकों की रचना होती तो उसमें उनकी कहानियां लिखी जातीं। चौराहों पर उनकी मूर्तियां स्थापित होतीं। इन मूर्तियों के नीचे स्थापित करने वाले ज़ेन लोगों के नाम अंकित होते। वे भी प्राय: बहुत बड़े समाज सेवी होते जिनके नाम को अनुकरणीय माना जाता था। बहुत दिन चौराहों की पहचान इन मूर्तियों के नामों से होती।
आज क्योंकि युग बदल गया है। जीवन मूल्य बदल गये हैं। इतिहास बोध बदला जा रहा है। शहरों और चौराहों के नाम तक जाति, धर्म और इस आपाधापी युग में सफलता प्राप्त करने वाले महानायकों के नाम पर परिवर्तित किये जा रहे हैं। इसलिए इस परिवर्तन युग में हमें भी कुछ राज्यों के बारे में पुन: विचार कर लेना चाहिए, कि जिनके अर्थ इस बदलती दुनिया में पूरी तरह से बदल गये हैं। सबसे पहले इन बदले हुए अर्थों वाली दुनिया में जो नाम उभर कर आता है, वह शूरवीर है।
आज की दुनिया के शूरवीर वे हैं जो इस निरन्तर विसंगत होती ज़िन्दगी में भी निरन्तर जीते चले जाते हैं, और इसको ठुकरा कर निकल जाने वाले रास्ते आत्महत्या को गले नहीं लगाते। आप पूछेंगे, यह क्या अजीब बात हमने की। आज तो दुनिया के देशों और भारत जैसे गरीब देश में भी जीने की अवधि लम्बी होती जारही है। पहले कहते थे जो साठ बरस से ऊपर जी गया, वह उसके बोनस वर्ष हैं। आज तो अस्सी बरस की आयु से ऊपर भी लोग अपने बोनस वर्ष जीते हुए पाये जा रहे हैं।
आंकड़ा शास्त्रियों से पूछते हैं, तो पाते हैं कि इस देश में दस प्रतिशत लोगों ने देश की नब्बे प्रतिशत सम्पदा पर कब्ज़ा कर रखा है, और नब्बे प्रतिशत लोग केवल दस प्रतिशत सम्पदा पर गुज़ारा करते हैं। ऐसे विसंगत मूल्यों वाले देश में जहां यह कहा जाता है कि यह एक ऐसाअमीर देश है जहां गरीब बसते हैं। इस में इन नब्बे प्रतिशत लोगों का जीते चले जाना क्या शूरवीरता नहीं है? पहले सौ लोगों में से एकाध व्यक्ति शूरवीर हो जाने का खिताब प्राप्त करता था। अब तो लगता है कि उन नब्बे प्रतिशत लोगों को शूरवीर हो जाने का खिताब दे देना चाहिए, जो अब भी अस्सी बरस से ऊपर जीने का मन्सूबा बांधे है। शूरवीरता की पहचान बलिष्ठ देहों की जगह उनकी काया के कृशकाय और दुर्बल हो जाने में है। आह! ये शूरवीर, जो पहले खैराती अस्पतालों और अब मुहल्ला क्लीनिकों में गैर-हाज़िर दवाओं और डाक्टरों के सहारे अस्सी बरस से ऊपर जीने का मन्सूबा बाधे हैं। इनकी शूरवीरता का अन्त नहीं। इन्हें बताया जाता है कि इनके देश की विकास दर दुनिया में सबसे अधिक हो गई। देश दुनिया की सबसे तेज़ आर्थिक विकास दर वाला देश बन गया, और आर्थिक महाशक्तियों की कतार में प्रवेश ही नहीं कर गया, बल्कि चौथी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन गया है। शीघ्र ही तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा, और जब तुम देश की आज़ादी का सौवां बरस मनाओगे तो हो सकता है यह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाये।
वे इन आर्थिक बुलन्दियों को अपने जीवन में देखना चाहते हैं, लेकिन केवल चन्द लोगों की बुलन्द से बुलन्द होती इमारतों और चौड़ी सड़कों को देख कर सुख प्राप्त करने की ही कोशिश कर पाते हैं। यहां तो लगता है उनके लिए सुख की परिभाषा कुछ और है। उनकी ज़िन्दगी ने तरक्की तो क्या करनी थी, आधी अंधेरी कोठरियों से अब फुटपाथ पर आती नज़र आती है। आसमान छूते हुए मॉल प्लाज़ाओं के नीचे उनका धंधा तो फुटपाथ पर था ही, अब जीना भी फुटपाथ पर हो गया। उनकी गरीबी को फटीचर हो जाने की उपाधि प्राप्त हो गई। इसके बावजूद वे जी रहे हैं, क्या यह काम शूरवीरता नहीं?
उनकी शूरवीरता को अपनी ज़िन्दगी आजकल कुछ घोषणाओं से मिलती है, चुनाव एजेंडे में घोषित कुछ रियायतों से मिलती है। पहली घोषणा तो यह है कि देश में किसी भी व्यक्ति को भूख से आत्महत्या नहीं करने दी जाएगी। जी हां, आत्महत्याएं होती रहेंगी, लेकिन लोग भूख से नहीं, अन्य कारणों से मरेंगे, जिनमें एक अपने भविष्य के शून्य हो जाने का एहसास है। इस शून्यता में एक सुख है तो यही कि लोगों को सस्ता अनाज देने की तिथि चार साल और बढ़ा दी गई है, और विकास दर के बढ़ने के साथ-साथ और भी बढ़ायी जाती रहेगी। उन्हें मरने नहीं दिया जाएगा, क्योंकि दस लाख रुपए तक की उपचार सुविधा इन्हें मुफ्त दे दी जाएगी। यह एक नयी घोषणा है। उम्मीद है कि इन घोषणाओं के सहारे लोग आसानी से अस्सी की उम्र पार कर जाएंगे, और शूरवीर कहलाएंगे।



