दिवाली की रात अदालती आदेश को किया गया नज़रअंदाज़
दीपावली के अगले दिन दिल्ली महानगर, उससे सटे गाजियाबाद और अन्य शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में आ गए। जवाब-तलब आंकड़ों पर होते रहे और एक विचारधारा के लोग यह सिद्ध करने में लगे रहे कि आतिशबाज़ी से कोई खास फर्क नहीं पड़ा। वायु गुणवत्ता सूचकांक (ए.क्यू.आई) में महज पार्टिकुलेट मैटर (पी.एम.) अर्थात की आंकड़े पर बात हो रही है। विदित हो पी.एम. हवा में मौजूद सूक्ष्म ठोस और तरल कणों का मिश्रण है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि हवा में तैरते रहते हैं और सांस के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। यह सच है कि पी.एम. की मात्रा तो ट्रैफि क जाम, धूल आदि से अधिक गड़बड़ाती है, लेकिन इस बात से कैसे आंखें फेरी जा सकती हैं कि दीपावली के अगले दिन ज़हरीली हुई हवा महज पी.एम. नहीं हैं, इसमें ओज़ोन, बेरियम, लेड सल्फर और नाइट्रोजन के अवयव की मात्रा इतनी अधिक हो गई कि छोटे बच्चों के लिए यह हवा ज़िंदगीभर के लिए फेफड़ों के रोग दे रही है।
दीपावली की रात दिल्ली एनसीआर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुलकर उल्लंघन हुआ। इस बर बीते दस सालों में सर्वाधिक आतिशबाजी हुई और देर रात दो बजे तक होती रही। ग्रीन आतिशबाज़ी गायब थी और पारम्परिक चीनी आतिशबाज़ी का जोर था। विदित हो उच्चतम न्यायालय ने 15 अक्तूबर को कुछ शर्तें के साथ दिल्ली-एनसीआर में हरित पटाखों की बिक्री और उनके इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी। इसके तहत दिवाली से एक दिन पहले और त्योहार के दिन सुबह छह बजे से शाम सात बजे के बीच और फिर रात आठ बजे से 10 बजे तक हरित पटाखे फोड़ने की अनुमति दी गई थी, लेकिन नियमों की अनदेखी कर लगभग पूरी रात पटाखे चलाए गए।
दीपावली की अगली सुबह गाजियाबाद के वसुंधरा कालोनी में ओज़ोन का स्तर 6 है। ओज़ोन का 6 पीपीएम स्तर सांस लेने पर फेफड़ों के ऊतकों को क्षति पहुंचाता है और श्वसन नलियों में सूजन पैदा करता है। इसके लक्षणों में सीने में दर्द, खांसी, गले में जलन, सांस लेने में कठिनाई, मतली और कंजेशन शामिल हैं? लम्बे समय तक संपर्क अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, वातस्फीति और हृदय रोगों की संभावना को बढ़ाता है। ग्रीन पटाखे विकसित करने वाली संस्था नीरी ने ही मान लिया कि दिल्ली-एनसीआर में ग्रीन आतिशबाज़ी हुई ही नहीं। उनका दावा है कि यदि ग्रीन पटाखे चले होते तो प्रदूषण 50 प्रतिशत तक कम होता। इस साल सूक्ष्म कण पदार्थ (पी.एम. 2.5) का स्तर पांच साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। दीपावली के बाद के 24 घंटों में पी.एम. 2.5 का औसत स्तर 488 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज किया गया जो कि दीपोत्सव से पहले के स्तर 156.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से यह तीन गुना से भी ज्यादा है।
वैसे ग्रीन आतिशबाज़ी भी कोई निरापद नहीं होती। यदि रासायनिक सम्मिश्रण की बात की जाए तो ग्रीन पटाखों में भले बैरियम न हो, लेकिन अमोनियम और एल्युमिनियम यौगिकों के जलने से निकलने वाले सूक्ष्म धात्विक कण यथावत हैं। कथित ग्रीन पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट और एल्युमिनियम पाउडर का इस्तेमाल होता है और इनके जलने से भी नाइट्रोजन ऑक्साइड और एल्युमिनियम ऑक्साइड उत्सर्जित होते हैं जो फेफड़ों, आंखों और त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं। विदित हो अमोनियम नाइट्रेट का कई देशों में विस्फोटक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल करना प्रतिबंधित है। कोई भी दहन-आधारित प्रक्रियाए जिसमें पटाखों का जलना शामिल है, कार्बन-डाइऑक्साइड और अन्य गैसों का उत्सर्जन करती है। ग्रीन पटाखों में भी दहन के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल होता है, उससे कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होती हैं। इस वास्तविकता को जानते हुए भी आतिशबाज़ी करना किसी के भी हित में नहीं है।



