पराली का निपटारा

पंजाब में धान की कटाई हो रही है। इसके साथ ही पराली को जलाने का सिलसिला भी जारी है। इस बार यह फसल पकने से पहले ही प्रशासन ने इस बात के लिए सुचेत रूप में पूरी तरह तैयारी कर ली थी कि खेतों में पराली को जलाने नहीं दिया जाएगा। इस संबंधी किसानों को जागरूक करने के लिए लगातार बड़ी योजनाएं भी चलाई गईं। पहले ही हज़ारों की संख्या में प्रत्येक स्तर पर कर्मचारियों को भी तैयार किया गया। इसके साथ-साथ सख्ती करने के निर्देश भी दिए गए। प्रदेश में अब तक आधी के लगभग फसल की कटाई हो चुकी है। 
पहले ही की गई सख्त योजनाबंदी के कारण अब तक पिछले साल के मुकाबले इस बार पराली जलाने की घटनाओं में 70 प्रतिशत कमी आई है, जिससे प्रदेश में पहले के मुकाबले प्रदूषण में भी कमी आने की सूचनाएं मिल रही हैं, परन्तु अभी धान की कटाई का समय बाकी है। इसी लिए अभी अंतिम तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। इसी कारण यह अंदेशा भी लगाया जा रहा है कि आगामी दिनों में पराली जलाने के अमल में तेज़ी आ सकती है। जहां तक प्रशासनिक सख्ती का संबंध है, अब तक 250 के लगभग केस दर्ज हो चुके हैं, जिनमें तरनतारन और अमृतसर ज़िले अग्रणी हैं। इसके साथ-साथ उल्लंघना करने वालों की ज़मीनों लाल इंदराज भी किए जा रहे हैं, जिसका भाव है कि संबंधित ज़मींदार कृषि कज़र् नहीं ले सकेंगे और न ही अपनी ज़मीन बेच सकेंगे। अब तक 246 केसों में 13 लाख से अधिक के ज़ुर्माने किए जा चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने सरकारी अधिकारियों को भी स्पष्टीकरण देने को कहा गया है, जिन्होंने पराली जलाने के रूझान को रोकने संबंधी कार्य को आधा-अधूरा ही किया है। ऐसा कुछ सिर्फ पंजाब में ही नहीं, अपितु अन्य राज्यों में भी घटित हो रहा है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 26 अक्तूबर तक उत्तर प्रदेश में 969 तथा पंजाब में 743 मामले सामने आए हैं, जबकि हरियाणा ने इस मामले में काफी सफलता प्राप्त कर ली है, वहां अब तक सिर्फ 71 मामले ही सामने आए हैं। चाहे इन प्रशासनिक यत्नों में सफलता तो मिल रही है, परन्तु निर्धारित लक्ष्य अभी भी पूरे होते दिखाई नहीं दे रहे।
हम समझते हैं कि खेतों में पराली तथा नाड़ को जलाने का सिलसिला पूरी तरह रुकना चाहिए। सबसे पहले इसके लिए कटाई की मशीनों में तकनीकी सुधार लाने की ज़रूरत है ताकि वे खेतों में फसल के अवशेष को अधिक न छोड़े। धान की कटाई नीचे से करें। इसके साथ ही पराली तथा नाड़ को सम्भालने के लिए बड़ी मात्रा में मशीनों को कार्यशील किया जाना चाहिए। वैज्ञानिक इस प्रकार के छिड़काव भी तैयार कर सकते हैं, जो बिना नुकसान किए कम समय में अवशेष को खत्म करने में सहायक हो सकें। किसान वर्ग का भी यह बड़ा फज़र् बनता है कि वे हर सम्भव प्रयास से अवशेष के निपटान में प्रतिबद्धता से सहायक हों। नि:संदेह सभी पक्षों को इस समस्या के समाधान में सहायक होने की आवश्यकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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