जन सुराज : वैकल्पिक राजनीति का नया दर्शन

पूरे देश की निगाहें इस समय बिहार विधानसभा के होने जा रहे आम चुनावों पर लगी हुई हैं। इन चुनावों में जहां देश व राज्य के अनेक पारम्परिक राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दल चुनाव मैदान में सत्ता अथवा विपक्ष के किसी न किसी गठबंधन के साथ मिलकर बिहार का ‘भाग्य बदलने’ के नाम पर खुद अपना भाग्य आज़मा रहे हैं, वहीं इस बार के चुनाव में पहली बार ‘जन सुराज पार्टी’ नामक एक नया राजनीतिक दल भी बिहार की राजनीति में अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है। ‘जन सुराज पार्टी’ जैसे किसी नवगठित दल द्वारा अपने पहले ही चुनाव में राज्य की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करना ही अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि इस पार्टी के लगभग सभी उम्मीदवार शिक्षित, बुद्धिजीवी, पूर्व नौकरशाह, पूर्व आईएएस, आईपी एस, वैज्ञानिक, गणितज्ञ तथा शिक्षाविद हैं जबकि चुनाव मैदान में कूदे अन्य पारम्परिक राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की शिक्षा, उनके आचरण, चरित्र व योग्यता के विषय में कुछ अधिक बताने की ज़रूरत ही नहीं।
बहरहाल इस नये नवेले राजनीतिक दल ‘जन सुराज पार्टी’ के संस्थापक व अकेले रणनीतिकार व स्टार प्रचारक वही प्रशांत किशोर हैं जो नरेंद्र मोदी व भाजपा से लेकर देश के अधिकांश राजनीतिक दलों व नेताओं के लिये एक पेशेवर के रूप में चुनावी रणनीति तैयार करने के बारे में जाने जाते हैं। पूर्व में वह संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में 8 वर्षों तक कार्य कर चुके हैं। देश के विभिन्न राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति का लोहा मनवाने के बाद मूल रूप से बिहार के ही रहने वाले प्रशांत किशोर ने अपनी योग्यता का प्रयोग सर्वप्रथम अपने ही राज्य के विकास के लिये करने का निर्णय लिया और 2022 में बिहार की जनता को जागरूक करने व उन्हें उनकी व पूरे राज्य की बदहाली के मूल कारणों से अवगत कराने के मकसद से बिहार में ‘जन सुराज अभियान’ चलाने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद ही उन्होंने राज्य में लगभग 3000 किलोमीटर की पदयात्रा भी की। इस पदयात्रा के दौरान उन्होंने राज्य की आम जनता से सीधा संवाद स्थापित किया। इसी ‘जन सुराज अभियान’ से ही उनके नये राजनीतिक दल का नाम ‘जन सुराज पार्टी’ निकला।
बहरहाल देश के बड़े से बड़े राजनीतिक दिग्गजों के लिये रणनीति तैयार करने वाले प्रशांत किशोर स्वयं अपने लिये कैसी सफल रणनीति बना रहे हैं, उसी का परिणाम है कि उन्हें न केवल ‘गोदी मीडिया’ भी पूरी तवज्जो दे रहा है बल्कि वह सत्ता व विपक्षी महागठबंधन के द़ागदार नेताओं पूर्व की उनकी असफल नीतियों यहां तक कि राज्य की बदहाली तक के लिये इसी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन व महागठबंधन के दलों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। राज्य के विकास के लिये प्रशांत किशोर मुफ्त की रेवड़ियों या शराब बंदी जैसी नीतियों को नहीं बल्कि केवल शिक्षा को ही पहली ज़रूरत मान रहे हैं। राज्य की सभी 243 सीटों के लिये अपने पहले चुनाव में योग्य व शिक्षित प्रत्याशी उतारना बल्कि कई सीटों पर तो अनेक योग्य उम्मीदवारों द्वारा चुनाव लड़ने के लिये एक साथ दावा पेश किया जाना भी प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति की बड़ी सफलता है।
वह सोशल मीडिया पर भी अन्य राजनीतिक दलों से अधिक छाये हुये हैं। उन्होंने विभिन्न टीवी चैनल्स व यू-ट्यूबर्स को अब तक जितने साक्षात्कार दे डाले हैं, उतने तो शायद सत्ता व विपक्ष के नेताओं ने भी अब तक नहीं दिये। वह अपने साक्षात्कार में अपने विरोधी दलों के अनेक नेताओं को बेनकाब कर उनकी आपराधिक व शैक्षिक पृष्ठभूमि को उजागर कर रहे हैं। प्रशांत किशोर बड़े ही स्पष्ट अंदाज़ में बिहार की बदहाली व पिछड़ेपन के लिये जहां पूर्व की सत्ता व नेताओं को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं राज्य के उन मतदाताओं को भी आईना दिखा रहे हैं जो मुफ्त के राशन अथवा धर्म जाति के नाम पर वोट कर भ्रष्ट व अयोग्य उम्मीदवारों का चुनाव करती रही है।
राजनीतिक विश्लेषक हालांकि बिहार के चुनावी रण में ‘जन सुराज पार्टी’ के उतरने को लेकर तरह-तरह के ़कयास लगा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ‘जन सुराज पार्टी’ भी असद्दुदीन ओवैसी की ए.आई.एम.आई.एम. की ही तरह राज्य में वोट काटने वाली पार्टी साबित होगी और इसका लाभ भाजपा को मिलेगा जबकि कुछ का मानना है कि केवल एन.डी.ए. ही नहीं बल्कि जन सुराज पार्टी विपक्षी महागठबंधन को भी नुकसान पहुंचाएगी। 
उधर प्रशांत किशोर अपना सीधा मुकाबला सत्तारूढ़ एन.डी.ए. से ही बता रहे हैं परन्तु साथ ही उनका यह भी कहना है कि चुनाव परिणाम ही फैसला करेंगे कि उनकी पार्टी अर्श पर होगी या फर्श पर। राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो ‘जन सुराज पार्टी’ की तुलना आम आदमी पार्टी से करते हुये इसके वर्तमान तेवर के साथ ही संभावित भविष्य को भी देख रहा है।
जो भी हो मगर अपनी योग्यता का लोहा मनवाने के बाद अपने कुशल रणनीतिकार के पेशे को त्यागकर अपनी ही कमाई गयी पूंजी को दांव पर लगाकर बिहार व बिहार वासियों के भविष्य की चिंता में राज्य की गली गली में धूल मिट्टी व कीचड़ में घूमकर राज्य की खुशहाली की बातें करना वह भी बिना किसी धर्म जाति व समुदाय की बात किये हुये तथा बिना मुफ्त की रेवड़ी की लालच दिये, अपने आप में ही बड़ी बात है। वह भी उस बिहार राज्य में जोकि गरीबी के साथ-साथ अपनी जातिवादी राजनीति के लिये भी प्रसिद्ध हो। इसमें कोई शक नहीं कि देश को शिक्षित, ज्ञानवान, राष्ट्र हितकारी, धर्म व सम्प्रदाय व जाति से ऊपर उठकर सोचने वाले तथा स्वच्छ छवि रखने वाले नेताओं की ज़रूरत है।

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