नया सैन्य गठजोड़ भारत के लिये एक बड़ी चुनौती
हाल ही में पाकिस्तान समेत संयुक्त अरब अमीरात, कतर और अजरबैजान के बीच बन रहे सैन्य गठजोड़ की खबरें भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। यह घटनाक्रम न केवल दक्षिण एशिया बल्कि मध्य एशिया और खाड़ी क्षेत्र के भू-राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर रहा है। पाकिस्तान लगातार अपनी रक्षा और कूटनीतिक स्थिति को मज़बूत करने की दिशा में सक्रिय हुआ है और वह ऐसे देशों से निकटता बढ़ा रहा है जो भारत के रणनीतिक हितों के लिए चुनौती बन सकते हैं। भारत को इस नए उभरते गठजोड़ को केवल एक सामान्य रक्षा समझौते के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे एक दीर्घकालिक रणनीतिक प्रयास के रूप में समझना चाहिए, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को सुधारना और भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाना है।
पिछले महीने पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए ऐतिहासिक सैन्य समझौते, जिसके तहत एक देश पर हुआ हमला दूसरे देश पर भी माना जाएगा, की तर्ज पर ही इस सैन्य गठजोड़ का विचार सामने लाया गया है। हालांकि इन चार देशों के बीच अभी कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में इसकी घोषणा हो जाएगी। गौरतलब है कि तुर्किये, पाकिस्तान और अजरबैजान का त्रिपक्षीय गठबंधन, जिसे थ्री ब्रदर्स के नाम से जाना जाता है, एक मज़बूत सैन्य साझेदारी का रूप ले चुका है। इसके अतिरिक्त, इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज्म कोएलिशन (आईएमसीटीसी) भी है, जिसका संस्थापक सऊदी अरब है और जिसमें चालीस से अधिक सदस्य देश शामिल हैं। इन देशों के बीच सैन्य अभ्यास, हथियार सौदे व कश्मीर जैसे मुद्दों पर इनका स्वाभाविक सामूहिक रुख भारत के लिए चिंता का विषय रहा है। इससे पाकिस्तान अपनी कुचालों को जायज ठहराने एवं अपनी रक्षा की गुहार लगाते हुए भारत पर दबाव बनाना चाहता है। नहीं भूलना चाहिए कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया, तब ज्यादातर मुस्लिम देशों ने तटस्थ रुख अपनाया था, लेकिन तुर्किये और अजरबैजान दो ऐसे मुल्क थे, जो पूरी तरह से पाकिस्तान के समर्थन में खड़े थे। दरअसल, तुर्किये के राष्ट्रपति तैय्यब अर्दोआन की इस्लामिक दुनिया के मॉडर्न खलीफा बनने की सनक का पाकिस्तान समर्थन करता है। इसी वजह से तुर्किये ने संयुक्त राष्ट्र में भी कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का खुला समर्थन किया है।
सऊदी अरब और पाक के बीच हुआ हालिया रक्षा समझौता इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान अब अपनी सुरक्षा रणनीति को क्षेत्रीय स्तर पर फैलाने में सफल हो रहा है। यह समझौता इस सिद्धांत पर आधारित है कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है तो दोनों की संयुक्त प्रतिक्रिया होगी। यह बात भारत के लिए सीधे तौर पर खतरे की घंटी है क्योंकि इससे पाकिस्तान को रक्षा सहायता, प्रशिक्षण, संसाधन और राजनीतिक समर्थन प्राप्त हो सकता है। इसी तरह पाकिस्तान अजरबैजान, यूएई और कतर जैसे देशों के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत करने में जुटा है। इन देशों के साथ पाकिस्तान का यह बढ़ता सामरिक सहयोग उसके लिए आर्थिक और तकनीकी लाभ भी ला सकता है, जिससे भारत के लिए क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना कठिन हो सकता है। भारत को इन परिस्थितियों में अपनी विदेश नीति को अधिक सशक्त और लचीला बनाना होगा। अब वह समय बीत चुका जब भारत केवल पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता और सीमित क्षेत्रीय चिंताओं के आधार पर नीति बनाता था। आज की दुनिया में भू-राजनीति बहुस्तरीय हो चुकी है, जहां आर्थिक संबंध, तकनीकी साझेदारी और रक्षा सहयोग एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। भारत को चाहिए कि वह खाड़ी देशों से अपने संबंधों को और सुदृढ़ करे। यूएई और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ भारत के आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध पहले से ही मजबूत हैं, पर उन्हें रक्षा सहयोग के स्तर पर भी विस्तारित करने की ज़रूरत है। भारत यदि इन देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाता है तो पाकिस्तान को क्षेत्रीय स्तर पर अलग-थलग करने में मदद मिल सकती है।
साथ ही भारत को यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान केवल सैन्य ताकत पर नहीं, बल्कि कूटनीतिक चालों और मीडिया नैरेटिव के माध्यम से भी अपनी स्थिति को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में भारत को न केवल रक्षा मोर्चे पर बल्कि कूटनीतिक और सूचनात्मक मोर्चे पर भी सक्रिय रहना होगा। भारत की नीति प्रतिक्रियात्मक न होकर सक्रिय, दूरगामी और अग्रदर्शी होनी चाहिए। भारत को यह दिखाना होगा कि वह केवल अपनी सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शांति का भी एक भरोसेमंद संरक्षक है। भारत ही दुनिया से आतंकवाद को समाप्त करने की मुहिम छेड़े हुए है। भारत के लिए यह भी ज़रूरी है कि वह अपने मित्र देशों के साथ सामूहिक सुरक्षा दृष्टिकोण विकसित करे। जिस तरह अमरीका और यूरोपीय संघ सामूहिक रक्षा नीति पर चलते हैं, उसी तरह भारत को भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स -देशों और मध्यपूर्व में सहयोगी नेटवर्क को सुदृढ़ करना चाहिए। यह केवल सैन्य दृष्टि से नहीं बल्कि कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी भारत की स्थिति को मज़बूत करेगा।
पाक की नई विदेश नीति की दिशा साफ है— वह भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है, चाहे वह चीन के साथ सीपेक परियोजना के माध्यम से हो या अब मध्य-पूर्व के देशों के साथ रक्षा सहयोग के ज़रिये। भारत को इस घेराबंदी को तोड़ने के लिए तीन दिशा में एक साथ काम करना होगा-अपनी रक्षा क्षमता को आधुनिक बनाना, विदेश नीति में सक्रियता लाना, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की सकारात्मक छवि को और प्रखर बनाना। यह स्थिति भारत के लिए केवल एक चुनौती नहीं बल्कि अपनी सामरिक दूरदर्शिता को सिद्ध करने का अवसर भी है। भारत यदि समय रहते अपने पड़ोस में बढ़ते इस सैन्य गठजोड़ की गंभीरता को समझ लेता है और सक्रिय कदम उठाता है, तो वह न केवल पाकिस्तान की कूटनीतिक चालों को निष्प्रभावी बना सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया को स्थिरता और सहयोग के नए मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।
इस सैन्य गठजोड़ के हकीकत बनने की सूरत में भारत के लिए ज़रूरी होगा कि वह आर्मेनिया, ग्रीस और साइप्रस के साथ अपने संबंध मजबूत करे और यूएई के साथ भी द्विपक्षीय रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाए, जो भारत का बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है और आम तौर पर इस्लामिक मुद्दों पर तटस्थ रुख रखता है। आज भारत को यह समझना होगा कि ‘सुरक्षा’ अब केवल हथियारों का मामला नहीं है। यह अर्थव्यवस्था, कूटनीति, और तकनीक का समन्वित प्रश्न बन चुका है। पाकिस्तान की नई चालें एवं कुचालें हमें केवल सतर्क रहने की नहीं, बल्कि सजग, सक्रिय और रणनीतिक रूप से एक कदम आगे रहने की प्रेरणा देती हैं।



