एसआईआर पार्ट-2, ज़िद और जज़्बात का नया दौर !

आगामी 4 नवम्बर 2025 से निर्वाचन आयोग बिहार के बाद अब 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करेगा। यह 9 राज्यों— छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और 3 तीन केंद्र शासित प्रदेशों- अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप व पुड्डुचेरी में सम्पन्न होगी। निर्वाचन आयोग द्वारा गुजरे 27 अक्तूबर 2025 को इस संबंध में प्रैस कांफ्रैंस किये जाने के साथ ही इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की वोटर लिस्ट फ्रीज हो गई है। अब इस फ्रीज वोटर लिस्ट के आधार पर एन्यूमरेशन फॉर्म (ईएफ) छपेंगे जिन्हें बीएलओ 4 नवम्बर 2025 से 4 दिसम्बर 2025 तक घर-घर जाकर बांटेंगे और 9 दिसंबर 2025 को ड्रॉफ्ट वोटर लिस्ट तैयार होकर जारी होगी, जबकि फाइनल लिस्ट 7 फरवरी 2025 को जारी होगी। जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर का यह पार्ट-2 शुरू हुआ है, उसमें 51 करोड़ मतदाता कवर होंगे। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के मुताबिक इस एसआईआर पार्ट-2 का उद्देश्य भी वही है, जो बिहार एसआईआर का था यानी अवैध विदेशी प्रवासियों को वोटर लिस्ट से हटाना। चीफ इलेक्शन कमिश्नर के मुताबिक इसके लिए उनका जन्म स्थान जांचा जायेगा। पत्रकाराें से बातचीत करते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने यह भी दावा किया कि एसआईआर के पहले चरण में बिहार में एक भी अपील नहीं आयी। मुख्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक देश में पिछले 5-6 दशकों से जनसंख्या पलायन एवं प्रवासन की गति बहुत ज्यादा बढ़ी है। इसलिए अब पुरानी मतदाता सूचियां भरोसेमंद नहीं रहीं। इन सब कारणों से एसआईआर ज़रूरी हो गई है।
विपक्षी दलों, गैर सरकारी संगठनों और कुछ राजनीतिक क्षेत्रों द्वारा एक बार फिर से एसआईआर को लेकर गहन आशंकाएं प्रकट की गई हैं। मसलन पहली बात तो यही कही जा रही है कि जिन राज्यों को एसआईआर पार्ट-2 के लिए चुना गया है, उनमें से ज्यादातर राज्य वे हैं जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। उदाहरण के लिए तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश। विपक्ष के मुताबिक यह समय चयन जानबूझ कर किया गया है ताकि कुछ मतदाताआें को हटाकर चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सके। विपक्ष का दूसरा बड़ा आरोप यह है कि एसआईआर के नाम पर बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम बिना उचित सूचना, दस्तावेज या जांच प्रक्रिया के हटाए जा सकते हैं, विशेष रूप से दलितों, आदिवासियों, प्रवासियों और पिछड़े समुदायों के मतदाताओं के। जैसे कि बिहार में पहले चरण में लाखों नाम हटाए गये, जिनमें अधिकतर उन मतदाताओं के नाम थे, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने वाले मतदाता थे। गौरतलब है कि यह आरोप मतदाताओं का नहीं विपक्षी राजनीतिक पार्टियों का है कि जिन मतदाताओं को सूची से हटाया गया है, वो उनके समर्थक थे।
विपक्ष का एसआईआर पार्ट-2 को लेकर एक आरोप यह भी है कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्ष नहीं होगी, इसकी उन्हें आशंका है। विपक्ष के मुताबिक मौजूदा केंद्र सरकार व इलेक्शन कमिशन के बीच सांठगांठ हो सकती है और इसके चलते यह एसआईआर पार्ट-2 राजनीतिक दखलंदाजी का माध्यम बन सकता है। 
विपक्ष का आरोप और उसकी आशंका यह भी है कि दस्तावेज के नाम पर बहुत सारे मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित किया जा सकता है। जैसे बिहार में करने की कोशिश की गई थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण इसमें इस वजह से बचाव हो सका, क्योंकि वर्तमान में जो पहचानपत्र लगभग हर नागरिक के पास है, उस आधार कार्ड को मतदान के लिए उचित दस्तावेज मान लिया गया। विपक्ष का एक आरोप यह भी है कि एसआईआर के बहाने सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट 2019 की प्रक्रिया दबे छुपे रूप से लागू की जा रही है। क्योंकि मतदाता सूची से लोगों को निकालने का मकसद उन्हें गैरनागरिक घोषित करना होगा। इसी संदर्भ में विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट नहीं किया कि बिहार में आखिर कितने अवैध मतदाता मिले और कितनों को हटाया गया। लब्बोलुआब यह कि विपक्ष के मुताबिक चुनाव आयोग की यह समूची कवायद पारदर्शी नहीं है। 
दूसरी ओर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की शर्त है कि पुरानी मतदाता सूचियों में अनेक मतदाता अब मृत हो चुके हैं। कई लोगों ने अपना स्थान बदल लिया है। साथ ही अनेक लोगाें ने जालसाजी के जरिये अपने आपको मतदाता सूची में पंजीकृत करा लिया है, जबकि वे इसके पात्र नहीं हैं। साथ ही कई लोगों के नाम एक से ज्यादा जगह मतदाता सूचियों में दर्ज हैं। इन सारी अनियमितताओं को खत्म करने के लिए और चुनाव की प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाने के लिए एसआईआर पार्ट-2 बहुत जरूरी है। एसआईआर पार्ट-2 के पक्ष में दूसरा तर्क यह है कि इस प्रक्रिया में नामांकन फॉर्म घर-घर जाकर जमा होंगे, जिससे अधिक पात्र मतदाताओं को इस सूची में शामिल करने का मौका मिलेगा। 
लोकतंत्र में दरअसल इस तरह के अविश्वास की कोई जगह नहीं है। इसलिए ज़रूरी है कि मतदाता सूची के गहन संशोधन के लिए हर ज़रूरी कदम उठाये जाएं, लेकिन इसके लिए हर संभव तरीके से विपक्ष को विश्वास में लिया जाए। विपक्षी राजनीतिक पार्टियों बल्कि आम मतदाताओं को भी संतुष्ट करने के लिए सरकार और चुनाव आयोग को हर वह काम करना चाहिए, जिससे कि इस तरह की आशंकाएं गलत साबित हों। अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो यह आशंका लगातार दोनों पक्ष अपनी-अपनी तरफ से ज़िद और जज्बात के रूप में पेश करते रहेंगे कि उनके हितों की अनदेखी हो रही है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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