वन्य क्षेत्र में भारत की उपलब्धि
विश्व भर में भारत के वन-क्षेत्र को लेकर नौवें स्थान पर पहुंचने की ़खबर नि:संदेह रूप से एक सुखद आश्चर्य जैसी प्रतीत हुई है। वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन के धरातल पर प्रत्येक पांच वर्ष बाद प्रकाशित होने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार विगत पांच वर्ष में भारत का कुल वन्य क्षेत्रफल 72,739 वर्ग हैक्टेयर हो गया है जो पिछले क्षेत्रफल से 2 प्रतिशत बढ़ा है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र संघ के निरीक्षण में खाद्य एवं कृषि संगठन की वैश्विक वन्य संसाधन इकाई की ओर से तैयार की जाती है। एक अनुमान के अनुसार भारत में मौजूदा वन्य क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष 1.91 लाख हैक्टेयर के हिसाब से वृद्धि हुई है जो एक रिकार्ड उपलब्धि बनती है। इसका पता इस एक तथ्य से भी चल जाता है कि विगत एक दशक में इस धरातल पर अच्छी उपलब्धि हासिल करने वाले देशों में भारत तीसरे स्थान पर आता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार विगत तीन दशक से अधिक समय से वन्य क्षेत्र में इस प्रकार की तीव्र एवं संतोषजनक वृद्धि दर्ज करने वाले क्षेत्रों में एशियाई देश अग्रणी रहे हैं। इनमें भी चीन और भारत में यह वृद्धि अधिकांश रूप से सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार वन्य क्षेत्र में यह वृद्धि इसलिए भी उभर कर सामने आई है कि देश में मौजूदा वन क्षेत्र में नुक्सान की आशंका को सरकारों की ओर से एवं जन-सहयोग से यथासम्भव कम किया गया है, और वनों में वृक्षों के कटान को भी रोका गया है। इस काल में वन-क्षेत्रों के नुक्सान की दर 10.7 मिलियन हैक्टेयर से कम होकर 4.12 मिलियन हैक्टेयर रह गई है। रिपोर्ट का एक सुखद पक्ष यह भी रहा है कि भारत और एशिया में वन क्षेत्रों में विस्तार और संरक्षण से वैश्विक स्तर पर भी एक सुखद संदेश गया है।
इस उपलब्धि का महत्त्व कितना है, इसका पता इससे भी चल जाता है कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने इसे भारत सरकार की ओर से वन-संरक्षण एवं वन्यीकरण की आधिकारिक नीति को अपनाये जाने का प्रतिफल करार दिया है। हम समझते हैं कि विगत में प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चलाये गये ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान से भी इस उपलब्धि को हासिल करने में सफलता प्राप्त हुई है। इस रिपोर्ट का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि अभी दो-तीन दिन पूर्व ही देश की राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरण प्रदूषण बेहद चिन्ताजनक स्थिति तक बढ़ गया था। ऐसे में यह रिपोर्ट धरा के तप्त बदन पर वर्षा की प्रथम फुहार जैसी साबित हो सकती है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह रिपोर्ट जहां भारत देश के लिए एक अनुपम उपलब्धि जैसी है, वहीं इसका प्रभाव वैश्विक वन्य संरक्षण उपायों पर भी अवश्य पड़ेगा। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का कुल वन्य क्षेत्र 4.14 अरब हैक्टेयर है जो धरा की 32 प्रतिशत भूमि बनता है। यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि इस भू-भाग का आधे से अधिक रकबा अर्थात 54 प्रतिशत हिस्सा रूस, ब्राज़ील, कनाडा, अमरीका और चीन में पड़ता है। इसके बाद आस्ट्रेलिया, कांगो गणराज्य व इण्डोनेशिया आते हैं, और फिर नौवें स्थान पर भारत का नाम आता है। वन्य क्षेत्र में वृद्धि के लिए चीन और रूस के बाद भारत ने बड़ी ख्याति हासिल की है। तुर्की, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और इण्डोनेशिया ने भी इस धरातल पर वृद्धि के अच्छे आंकड़े अर्जित किए हैं।
इस उपलब्धि के दृष्टिगत विगत पांच वर्ष में भारत का वन्य क्षेत्र विस्तार हेतु एक अंक ऊपर चढ़ना देश के लिए विश्व में एक प्रतिष्ठाजनक बात हो सकती है। तथापि, इससे पर्यावरण प्रदूषण में सुधार, वायु गुणवत्ता का बढ़ना और वन्य-जीवों के संरक्षण आदि कार्यों में सुधार होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी दो ही मास पूर्व एक वैश्विक रिपोर्ट में हवा और पानी के कारण बीमारियों के बढ़ने की चेतावनी दी थी। हम समझते हैं कि इस प्रकार के यत्नों से नि:संदेह मानवता के हित में उपायों को और तेज किया जा सकता है। नि:संदेह मानवता के हित में सरकारों द्वारा किये जाते यत्नों के धरातल पर, वन्य क्षेत्र में विस्तार जैसी भारत द्वारा हासिल की गई उपलब्धि पर्यावरण को लेकर एक अच्छा पायदान सिद्ध हो सकती है।

