खेल मैदानों से दूर होने से बच्चें पर पड़ता दुष्प्रभाव

मोबाइल फोन के बढ़ते प्रचलन ने मौजूदा और भावी बाल पीढ़ियों के भविष्य पर संकट के बादलों के घिर आने का बड़ा संकेत दिया है। वर्तमान में स्थिति यह है कि आज के किशोर वर्ग के युवा और बच्चे अपना अधिकतर समय मोबाइलों पर रह कर बिताते हैं। इस कारण ये बच्चे और युवा मोबाइल और टच-स्क्रीन खेलों से अधिक जुड़ जाते हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि बच्चे और युवा वास्तविक खेलों से दूर होते जाते हैं। इससे उनके अपने एकाकी माहौल में नैराश्य और तनावपूर्ण माहौल का सृजन होने लगता है जो अन्तत: उनकी ज़िन्दगी में बेहद जोखिमपूर्ण सिद्ध होने लगता है। यह अहम खुलासा विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिवर्सिटी लंदन द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के ज़रिये सामने आया है। इस रिपोर्ट के अनुसार बच्चों और किशोरों के खेलों के वास्तविक मैदान से दूर होने से उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को इस स्थिति की ओर ले जाने के पीछे मोबाइल फोन के व्यवसायिक पक्ष भी बड़ा योगदान रहता है।
 देश की मौजूदा शिक्षा नीति के कारण एक ओर जहां स्कूलों और कालेजों में पठन-पाठन घंटों की बेहद कमी आई है, वहीं मोबाइलों के ज़रिये ऑन-लाइन पढ़ाई का प्रचलन बढ़ा है। इससे स्कूल-कालेजों में पुस्तकें और कापी साथ ले जाने का प्रचलन जैसे थम-सा गया है। इससे भी मौजूदा युवा पीढ़ी और बच्चों का मानसिक संतुलन प्रभावित हुआ है। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय शोध-संस्थानों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि मोबाइल फोन के बढ़ते प्रयोग, ऑनलाइन पढ़ाई के प्रचलन और खेल मैदानों के प्रति कम होती रुचि से बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बच्चों के शारीरिक विकास के  दुष्प्रभाव का आलम यह है कि उनके भीतर बीमारियों की रोकथाम की क्षमता कम हुई है। बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है, और भावी पीढ़ी के शारीरिक विकास पर पड़ा प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा है। यूनेस्को की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल फोन के बढ़ते प्रचलन के दृष्टिगत देश भर के स्कूलों में खेल गतिविधियों में 40 प्रतिशत तक की कमी होना पाया गया है।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मोबाइल संस्कृति के कारण ही देश के अधिकतर शिक्षण संस्थानों ने भी खेलों और खेल मैदानों की संस्कृति को तिलांजलि देना शुरू कर दिया है। देश के अनेक राज्यों में अनेक निजी धरातल के बड़े और प्रतिष्ठाजनक स्कूलों में अन्य अनेक बड़े पक्ष तो रहते हैं किन्तु खेल मैदानों के तौर पर वे पिछली कतार में आते हैं। लिहाज़ा इससे इन शिक्षण संस्थानों में खेल प्रतिभाएं बहुत कम सामने आ पाती हैं। अलबत्ता अब तो स्थिति यह होती जा रही है कि सरकारों की ओर से स्थापित किये जाने वाले स्कूल भी खेल गतिविधियों से शून्य होने लगे हैं। स्कूलों में स्कूल कोटे के ज़रिये खेलों को प्रोत्साहन देने की योजनाएं और परम्पराएं भी जैसे विगत समय की बात होकर रह गई हैं। 
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि खेलों और खेल मैदानों से वंचित बच्चे भविष्य की चुनौतियों का सामना करने की बजाय उनसे हार मान कर थक जाने को प्राथमिकता देने लगे हैं जिससे देश में आत्महत्या कर लेने की प्रवृत्ति और आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ी है। यहां तक कि अवयस्क और किशोर बच्चों की ओर से ज़रा-सी मुसीबत का सामना न कर पाने और परीक्षाओं में असफल हो जाने पर आत्महत्या कर लेने के समाचार यदा-कदा सामने आने लगे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि खेल और मैदानों से जुड़ने की आदत बच्चों में हार-जीत को स्वीकार करने, टीम-भावना को समझने और औरों से कुछ न कुछ सीखते रहने की भावना को जगाती है। इससे बच्चों में नये उत्साह, ऊर्जा और ज़िन्दगी से जूझने का जज़्बा पैदा होता है। रोज़ाना तीन घंटे तक मोबाइल का प्रयोग करने वाले बच्चों में तनाव और उत्तेजना का प्रभाव अधिक पाया गया है। ऐसे बच्चे स्वाभाविक रूप से सामाजिक सरोकारों से भी दूर होने लगते हैं।
इस अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन में विश्व के 16 देशों से 6 से 17 वर्ष की आयु के 86,000 बच्चों और किशोरों को शामिल किया गया था। देश की पुरातन शिक्षा नीति के अनुसार स्कूलों एवं कालेजों में खेलों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाता था। स्कूलों-कालेजों के पंजीकरण से पहले खेल मैदानों की ज़रूरत पर बहुत बल दिया जाता था। प्राय: उच्च और माध्यमिक स्कूलों में खेल-पीरियड भी हुआ करते थे। हम समझते हैं कि मौजूदा और भावी युवा होती पीढ़ी के बच्चों को मानसिक, दैहिक और सामाजिक धरातल पर स्वस्थ बनाये रखने के लिए शिक्षण संस्थानों में किसी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, खेलों के धरातल पर हमें पुराने ज़माने की ओर लौटना होगा। शिक्षण संस्थानों में खेल और खेल मैदानों की संस्कृति को बहाल करना और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने की पुरातन प्रथा को अपनाना भी ज़रूरी है और यह भी, कि यह काम जितनी जल्दी होगा, देश और देश की भावी पीढ़ियों के लिए उतना ही अच्छा होगा।

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