अ़फगान और पाक में बढ़ता तनाव
चाहे कुछ दिन पहले पाकिस्तान-अ़फगानिस्तान की सीमाओं पर हुए भीषण टकराव के बाद तुर्की और कतर की मध्यस्थता से अस्थायी रूप में यह टकराव तो रुक गए थे और दोनों देशों में वार्ता भी शुरू हो गई, जिसके कम से कम तीन दौर चले थे, परन्तु नए समाचारों के अनुसार तुर्की के शहर इस्तांबुल में दोनों देशों के बीच शुरू हुई यह वार्ता सफल नहीं हो सकी। इस वार्ता के दौरान भी सीमाओं पर झड़पें जारी थीं। दोनों देशों की राजनीति में ज्यादातर अजीबो-गरीब घटित होने के कारण ऐसा कुछ एशिया के इस क्षेत्र में आम ही देखने को मिलता रहा है। अ़फगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने से भी पहले वहां सोवियत यूनियन की सेनाओं के आ जाने के बाद दशक भर लम्बा रक्त रंजित युद्ध जारी रहा था। उस समय पाकिस्तान ने अ़फगानिस्तान में तालिबान की पूरी तरह सहायता की थी, क्योंकि अमरीका जैसा बड़ा देश नहीं चाहता था कि सोवियत यूनियन जैसे देश का अ़फगानिस्तान पर कब्ज़ा हो जाए। इसीलिए अमरीका ने पाकिस्तान द्वारा तालिबान को लगातार प्रत्येक तरह की सहायता जारी रखी थी। ऐसा कुछ ही वह पाकिस्तान द्वारा अब भी कर रहा है क्योंकि पाकिस्तान की सीमाएं अ़फगानिस्तान के साथ लगती हैं। तालिबानों ने लम्बी अवधि के संघर्ष के बाद लड़ाई तो जीत ली और देश के बड़े भाग पर अपना कब्ज़ा भी कर लिया था परन्तु अरब देशों में ओसामा-बिन-लादेन ने विश्व भर में इस्लामिक जिहाद शुरू करने के लिए अपना अल-कायदा नामक कट्टर संगठन जिसकी जड़ें अनेक देशों में थीं, बनाया था। ओसामा-बिन-लादेन द्वारा मुस्लिम देशों में अपना प्रभाव बनाने के उपरांत अमरीका को प्रत्यक्ष रूप में धमकियां दी गई थीं। न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर के दो टॉवरों पर विमानों द्वारा हमले करके हज़ारों ही अमरीकियों को मार दिया गया था। इस विश्व व्यापार केन्द्र पर हमले के बाद अमरीका की आर्थिकता का यह केन्द्र पूरी तरह तबाह हो गया था। इस हमले के साथ ही अमरीकी सेना के मुख्य कार्यालय पैंटागन पर भी हवाई हमला किया गया था, जिसके बाद अमरीका ने अ़फगानिस्तान पर बहुत बड़ा हमला करके वहां की तालिबान सरकार को खत्म कर दिया था। यह सब कुछ भी उसने पाकिस्तान द्वारा ही किया था।
पाकिस्तान ने इस स्थिति का अमरीका से अधिक से अधिक आर्थिक और सैन्य लाभ लिया था, परन्तु इस मामले पर पाकिस्तान लगातार अपनी दोगली नीति पर चलता रहा। उसने ओसामा-बिन-लादेन को न सिर्फ अपने देश में छिपने के लिए शरण ही दी, अपितु वह अ़फगानिस्तान में तालिबान के साथ भी हर तरह से जुड़ा रहा। दशकों तक अ़फगानिस्तान में अमरीकी सेना लाकर वहां अमरीकी प्रशासन ने अ़फगानिस्तान की नई सरकारें बनाने में पूरी सहायता भी की, परन्तु पाकिस्तान की दोगली नीति के कारण अंतत: उसे नमोशीजनक हालात में अ़फगानिस्तान से सेना को वापस बुलाना पड़ा था। उसके बाद ही पाकिस्तान की सहायता से अ़फगानिस्तान गोरिल्लों ने हामिद करज़ई की सरकार का तख्ता पलट कर दिया था और अ़फगानिस्तान के एक बड़े भाग पर कब्ज़ा कर लिया था। भारत ने हामिद करज़ई व उनसे पहले की सरकारों के समय में अ़फगानिस्तान के हुए नुक्सान की पूर्ति के लिए वहां प्रत्येक तरह का मूलभूत ढांचा, स्कूल, अस्पताल और यहां तक कि संसद भवन के साथ-साथ अनेक तरह के पुलों के निर्माण में भी सहायता शुरू की थी, परन्तु तालिबान का अ़फगानिस्तान पर पुन: कब्ज़ा होने के बाद भारत को नमोशीजनक हालात में वहां अपना दूतावास बंद करना पड़ा था और वहां अपने निर्माण कार्यों को भी बंद करना पड़ा था। परन्तु आज पाकिस्तान की हमेशा से चलती रहीं बेहद घटिया नीतियों के कारण वह अ़फगानिस्तान का दुश्मन बना दिखाई देता है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि तालिबान सरकार पाकिस्तान में हमले करने वाले लड़ाकों को अ़फगानिस्तान की धरती से पाकिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में कार्रवाई करके वापस अ़फगानिस्तान में दाखिल होने देती है, जिससे दोनों देशों में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। अ़फगानिस्तान की तालिबान सरकार देश में विकास के लिए अपनी बेहद सीमित सीमाओं के दृष्टिगत किसी न किसी तरह विश्व भर के देशों से सहयोग प्राप्त करना चाहती है और यह भी कि ज्यादातर देश उसे मान्यता दे दें। रूस पहला देश है, जिसने अ़फगानिस्तान को मान्यता दी है। इसके साथ ही तालिबान चाहता है कि भारत पहली सरकारों की भांति ही उसके प्रत्येक तरह के मूलभूत ढांचे को मज़बूत करने में उसकी सहायता करे। इसी उद्देश्य के साथ विगत दिवस अ़फगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी भारत दौरे पर आए थे। इस यात्रा से दोनों देशों में पुन: सुखद संबंध बनने की बड़ी सम्भावना बन गई थी। यहां किए गए समझौतों में भारत ने खुले दिल से अ़फगानिस्तान की सहायता करने का प्रण किया था। काबुल में पुन: दूतावास शुरू करने की कार्रवाई भी शुरू कर दी थी। यह बात किसी भी तरह पाकिस्तान को रास नहीं आ सकती थी, जिस कारण इन दोनों देशों की दुश्मनी और भी बढ़ गई। तालिबान गोरिल्लों द्वारा लगातार किए जा रहे हमले पाकिस्तान को किसी भी तरह गंवारा नहीं हैं।
अब सीमाओं पर कुछ दिनों के लिए खूनी टकराव बंद होने के बाद दोनों देशों में हो रही वार्ता संबंधी यह समाचार आए हैं कि यह सफल नहीं हुई। जिससे पाकिस्तान का गुस्सा बढ़ गया है। उसने अ़फगानिस्तान पर आरोप लगाया है कि वहां की तालिबान सरकार का मन साफ नहीं है, इसके साथ फिर से युद्ध हो सकता है। इस संबंध में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाज़ा आस़िफ ने अब धमकी दी है कि यदि पाकिस्तानी तालिबानों को सहायता देने से अ़फगानिस्तान बाज़ नहीं आता तो अ़फगानिस्तान का नुकसान हो जाएगा और इस पर उसे भारी पछतावा करना पड़ेगा। दूसरी तरफ आस़िफ ने यह भी कहा है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ भारत की शह और मिल रही सहायता के सहारे ही कर रहा है और अ़फगानिस्तान भारत की कठपुतली बना हुआ है। दूसरी तरफ अ़फगानिस्तानी अधिकारियों ने पाकिस्तान को चुनौती देते हुए कहा है कि आज तक अ़फगानिस्तान को विश्व की कोई भी ताकत पराजित नहीं कर सकी। यदि पाकिस्तान कोई ऐसी हरकत करता है तो उसे भयावह परिणाम भुगतने पड़ेंगे। दोनों देशों के बीच बढ़ रहा यह बड़ा टकराव दक्षिण एशिया के लिए एक ़खतरनाक और बड़ी चुनौती बन सकता है, जिसके लिए भारत को भी बेहद सुचेत होकर चलने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

