मध्य प्रदेश में पहले बच्चों की जानें गयीं, अब आंखें

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री की मुसीबतों का अंत नहीं। अभी कुछ दिन पहले खांसी की जहरीली दवाई से दर्जनों बच्चों की मौत हो गयी थी। मरने वालों की संख्या अभी सही रूप से नहीं बताई गई है, परन्तु कुछ खबरों के अनुसार लगभग दो दर्जन से ज्यादा बच्चों की मौत हुई। यह घटना छिंदवाड़ा ज़िले में बहुत बड़े पैमाने पर हुई। इस घटना की जांच हो ही रही थी कि एक और दु:खद घटना हुई और वह भी दिवाली के दिन। इस दिन कई स्थानों पर कार्बाइड गन चलाई गई, जिसमें अनेक बच्चे अंधे हो गये।
कई अखबारों में यह लिखा है कि यह कार्बाइड गन पिछले दो सालों से प्रतिबंधित है। न तो इसे बनाना चाहिए, न इसे बेचना चाहिए और न ही इसका उपयोग किया जाना चाहिए। इसके बावजूद भोपाल में बड़े पैमाने पर कार्बाइड गन चलती रही और वह भी बच्चों के हाथों। गन में कुछ ऐसे केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं जो गन से निकलने के बाद इन्सान की आंखों की रोशनी को या तो खत्म कर देते हैं या कम कर देते हैं। इससे सैंकड़ों लोग प्रभावित हुए, जिनमें वयस्क भी हैं। अखबारों में खबर छपी है कि कुछ बच्चों की आंखों में पट्टी लगी हुई है, कुछ चश्मा लगाए हुए हैं और कोई बच्चा तड़प रहा है। 
कल्पना कीजिए कि भोपाल जो मध्यप्रदेश की राजधानी है। यहां पुलिस का मुख्यालय है। भोपाल का काम एक अतिरिक्त डीजी के हाथों में है। पुलिस वाले मांग कर रहे हैं कि उन्हें उसी तरह के अधिकार दिए जाएं जैसे कि सिविल सर्विस के कलेक्टर के हैं। आप कल्पना कीजिए कि यह अधिकार इनको मिल जाएंगे तो क्या होगा? यह घटना यह बताती है कि अनुशासन को लेकर कितने खस्ता हालात हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रात दस बजे के बाद पटाखे नहीं चलाए जाने चाहिएं। भोपाल क्या, पूरे प्रदेश में दो बजे रात तक पटाखों की तेज़ आवाजें आना आम बात रही। इस तरह यह लॉ एंड आर्डर का एक महत्वपूर्ण पहलू सिद्ध हो रहा है। दिवाली के दिन रातभर पुलिस गश्त लगाती रही। पुलिस की जीप घरों के सामने से निकल गई, पर इसकी किसी को कोई परवाह नहीं। 
यह घटना उस समय हुई जब मुख्यमंत्री दिवाली मना रहे थे। उसके दो दिन बाद वो भाईदूज मना रहे रहे थे परंतु दिवाली के दिन भी कोई नहीं जानता कि उन्होंने कोई ऐसा बयान दिया हो कि दिवाली के पटाखों के संबंध में जो आदेश हैं, उनका पालन पूरी तरह से किया जाए। बहनों से मिलने के लिए तो गए परंतु क्या ही अच्छा होता कि दिवाली की रात को वह भोपाल की गलियों में निकलकर यह देखते कि असली स्थिति क्या है। ये घटनाएं इस बात की प्रतीक हैं कि पुलिस और प्रशासन का दबदबा नहीं रहा है। इसके अलावा और भी कई बुरी घटनाएं हाल में प्रदेश में हुई हैं। 
अभी एक-दो दिन पहले की घटना है कि किसी मुद्दे को लेकर कुछ दबंगों ने एक थाने पर हमला कर दिया और पुलिस से मुठभेड़ की और पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। अभी तक यह भी पता नहीं लगा है कि इस तरह के लोगों के साथ क्या बर्ताव किया गया। इसके कुछ दिन पहले पन्ना, जो मध्यप्रदेश का एक ज़िला है, के एक गांव में अपराधियों को पकड़ने के लिए 10-12 पुलिस के जवान गए। वहां पुलिस वालों पर हमला किया गया और उनको 10 किलोमीटर तक दौड़ाया गया। यहां तक कि पुलिस वालों के हथियार भी छीन लिए गये। 
आज भाजपा के शासन में स्थिति कैसी है, यह इस एक घटना के विवरण से स्पष्ट हो जाएगा। एक बार किसी समस्या को लेकर कुछ लोग तत्कालीन डीजी से मिले। वो अब रिटायर हो चुके हैं। जब प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें समस्या बताई तो उन्होंने कहा, देखता हूं पर वास्तविकता यह है कि मैं डीजी तो हूं पर मेरा प्रशासन सिर्फ पुलिस हेडक्वार्टर तक चलता है।  इस समय पुलिस की वर्दी से ज्यादा आरएसएस की खाकी वर्दी का दबदबा है। पुलिस महकमे की स्थिति खराब है। वर्तमान मुख्यमंत्री को शासन में आये दो साल हो गये हैं। अब उन्हें ऐसी स्थिति पर शीघ्र नियंत्रण पाना चाहिए। प्रदेश में एक ऐसा इलाका है जो बरसों से डाकुओं के नियंत्रण में था। वर्तमान स्थिति यदि ऐसी ही बनी रही तो संभव है नियंत्रण फिर से उनके हाथ में चला जाये।
इस बीच भाजपा की सरकार के विरुद्ध कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है और कांग्रेस के नेता सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि मध्यप्रदेश में कुछ ऐसी स्थितियां निर्मित हो गई हैं जिनमें कानून और व्यवस्था चरमरा कर गिर गई है। ठीक उसी तरह जैसे कोई मंच गिर जाता है। किसी भी देश, राज्य और शहर का विकास और उनकी प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि उस देश, प्रदेश, शहर में कानून व्यवस्था कैसी है। अभी कुछ दिन पहले इंदौर में एक भाजपा विधायक के पुत्र ने आदेश जारी किया कि जितने हिन्दू दुकानदार हैं, वे उनके यहां कार्यरत मुस्लिम कर्मचारियों को निकाल दें। अनेक हिन्दू व्यापारियों ने उसकी आज्ञा मानी। (संवाद)

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