कोटा और कैनेडा से क्यों आ रहे हैं दुखद समाचार ?

इस वर्ष 20 फरवरी तक कोटा में पांच विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है। 2023 में कोटा में 27 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की थी। गत 13 फरवरी को छत्तीसगढ़ के एक विद्यार्थी (16) ने महावीर नगर कोटा में स्थित अपने होस्टल में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। वह संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जे.ई.ई.मेन) की तैयारी कर रहा था। कोटा में सैकड़ों कोचिंग सैंटर हैं। इन कौचिंग सैंटरों में देश के अलग-अलग भागों से आये विद्यार्थी कोचिंग लेते हैं। भिन्न-भिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने पहुंचे विद्यार्थियों पर अक्सर यह दबाव भी रहता है कि माता-पिता के लाखों रुपये लग गये हैं। विद्यार्थियों ने भी अच्छे भविष्य और बड़े पैकेज का सपना लिया होता है। घर और बाहर के माहौल में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। विद्यार्थी अक्सर मानसिक परेशानी से घिरे रहते हैं। कई बार माता-पिता बच्चे का वास्तविक सामर्थ्य देखे बिना उसकी पढ़ाई, कोचिंग और करियर सम्बंधी सभी निर्णय स्वयं ही कर लेते हैं। 16-17 वर्ष के विद्यार्थी को घर से सैकड़ों मील दूर कोटा भेज दिया जाता है। बच्चे की ज़िंदगी एक दम बदल जाती है। कुछ माता-पिता स्वयं भी कोटा चले जाते हैं और बच्चे का ध्यान रखते हैं। सभी ऐसे नहीं होते और न ही सभी ऐसा कर सकते हैं। 
कोटा में आत्महत्याओं के मद्देनज़र राजस्थान सरकार ने कई उचित प्रबंध भी किये हैं। होस्टलों के पंखों में ऐसा सिस्टम लगाया गया है कि फंदा लगाने की कोशिश करते समय पाईप या पंखा ही नीचे की ओर आ जाये और जान न जाये। ज़िला प्रशासन कोटा ने ‘कामयाब कोटा अभियान’ भी शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य विद्यार्थियों को खुशनुमा माहौल देना है और उनकी समस्याओं को हल करना है। उपायुक्त कोटा सप्ताह में एक बार किसी न किसी कोचिंग सैंटर में जाकर विद्यार्थियों के साथ रात्रिभोज करते हैं। प्रशासन का यह अभियान बहुत ही प्रशंसनीय है, परन्तु अभिभावकों को यह ज़रूर सोचना पड़ेगा कि वे बच्चों पर अपना फैसला न थोपें। कुछ हकीकतों को समझना भी समय की आवश्यकता है। 
2019 में 14 लाख 10 हज़ार 755 विद्यार्थियों ने 154 शहरों के 2546 केंद्रों में नीट परीक्षा दी। 3 लाख 51 हज़ार पुरुष उम्मीदवारों और 4 लाख 45 हज़ार महिला उम्मीदवारों ने परीक्षा पास की थी। हमारे पास एम.बी.बी.एस. सीटें तकरीबन 88000 ही हैं। 
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद ही देशवासियों को पता चला कि हमारे हज़ारों विद्यार्थी यूक्रेन में मैडीकल की पढ़ाई कर रहे हैं। मैडीकल शिक्षा में एक अनार सौ बीमार जैसी स्थिति है। वर्तमान में स्टडी वीज़ा पर छात्र कनाडा जा रहे हैं। चाहे हिन्दुस्तान और कैनेडा का आपसी कूटनीतिक टकराव चल रहा है परन्तु आज भी बड़ी संख्या में पंजाबियों का सपना कैनेडा जाना ही है। गुजराती और दक्षिण भारत के लोग भी बहुसंख्या में कनाडा जाकर बस गये हैं। युवा पंजाबी पीढ़ी तो कैनेडा जाकर ही रहना चाहती है। पिछले कुछ वर्षों में कमाल ही हो गई। कैनेडा का वीज़ा ऐसे मिलने लगा जैसे रेल-बस की टिकट। कनाडा पहुंचने हेतु आईलेट्स वालों से मोटी फीस वसूल करने के दर्जनों मामले भी सामने आये। कई मुकद्दमे दर्ज हुये। कुछेक ने कनाडा जाने का सपना पूरा न होने पर खुदकुशी कर ली। ज्यादातर विद्यार्थियों का वास्तविक उद्देश्य कनाडा जाकर काम करना और वहां का नागरिक बनना ही होता है। प्रवास कोई नया नहीं। अच्छे जीवन की तलाश करते आदमी कहीं भी जाकर रहने लगता है। लगभग 3 करोड़ हिन्दुस्तानी विदेशों में बस गये हैं जिनमें लगभग एक करोड़ पंजाबी हैं। विदेशों से आते डॉलर, पौंड भारत की आर्थिकता को मज़बूत करते हैं।  पिछले कुछ वर्षों में तस्वीर कुछ बदली भी है। बढ़ती बेरोज़गारी के कारण न केवल उच्च शिक्षा की नींव को आईलेट्स ने हिला दिया है बल्कि लोग ज़मीन बेचकर या कज़र् लेकर बच्चों को विदेश भेज रहे हैं। अब 20-40 आयु वर्ग के विद्यार्थियों की विदेशी धरती पर हार्ट अटैक, नस्ली हमले, सड़क दुर्घटना, डूबने या घरेलू हिंसा से मौत हो रही है।
पंजाब के हर छोटे-बड़े शहर में एजेंट बैठे हुए हैं। वे कथित हवाला के रास्ते पैसे बाहर भेजते हैं। इनका दोनों तरफ  बड़ा नेटवर्क मौजूद है। देश की करंसी बाहर जा रही है। हिन्दुस्तान की सरकार और राज्य सरकार को रोज़गार सम्बंधी सख्त फैसले लेने का ज़रूरत है। कैनेडा जैसे देश पर भी आर्थिक मंदी, कोरोना, रूस-यूक्रेन युद्ध का गम्भीर प्रभाव पड़ा है। कोटा से भी उदास खबरें आ रही हैं और कैनेडा से भी। -मो. 98156-24927