संकट में है ज़हरीला पक्षी पिटोहुई

क्या आपको पता है कि कुछ पक्षी भी जहरीले होते हैं, उन्हीं में से एक पक्षी है पिटोहुई। कहा जाता है कि 1930 तक न्यू गिनी के मेलनशियन्स नामक स्थानीय जनजाति का बाहर की दुनिया से कोई संपर्क नहीं था। वहां डबैचर नामक पक्षी वैज्ञानिक ने इस पक्षी की खोज की थी। डबैचर जिनका ताल्लुक कैलिफोर्निया एकेडमी ऑफ साइंस से था। एक बार जब वह न्यू गिनी के पापुआ में सफर कर रहे थे और नये-नये किस्म के पक्षियों की खोज में जुट हुए थे, तो उन्हें पेड़ों के बीच में कुछ जाल दिखायी दिए। एक दिन उन्होंने देखा कि उस जाल में कई पक्षी फंस चुके थे। उनके शरीर का रंग हल्का काला और नारंगी था। चोंच बेहद मजबूत और आंखें लाल रंग की थी। उन पक्षियों को आज़ाद करने की मंशा से उन्होंने जब नेट को काटा तो उनके हाथ भी घायल हो गये। दर्द से राहत पाने के लिए उन्होंने अपनी अंगुलियों को मुंह में डाला तो उनका मुंह कड़वे स्वाद से भर गया। उन्हें लगा जैसे उनकी जीभ ही जल जायेगी। 
उनके लिए भले ही यह नई बात थी, लेकिन वहां के स्थानीय लोग इस पक्षी से भली भांति परिचित थे। उन्होंने इस बारे में जब लोगों से पूछताछ की तो स्थानीय लोगों ने इस तरह जताया मानों उनकी नज़रों में इस पक्षी का कोई महत्व नहीं था, क्योंकि वह खाने योग्य नहीं था। उसे खाने का मतलब मौत को बुलावा देना था। स्थानीय लोगों ने तो यहां तक बताया कि इसके छूने से ही इंसान को तेज खांसी होती है। पूरा शरीर घमौरियों से भर जाता था और शरीर में जलन होने लगती थी। वहां के लोग अपनी भाषा में इस पक्षी को स्लेकयाट यानी कड़वा पक्षी कहते थे। इसका वजन लगभग 100 ग्राम के करीब होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इसमें जहर न होता तो शायद यह पक्षी अपनी सुरक्षा ही न कर पाता, न ही जीवित रह पाता। 
पिटोहुई की लगभग 30 प्रजातियां हैं जिनमें पिटोहुई डाइकोरस सबसे जहरीला पक्षी होता है। इसका आकार लगभग 9 इंच का होता है। इसे मोनार्क तितली और जहरीले मेंढक के बराबर जहरीला समझा जाता है। स्थानीय लोग इसके जहर से बखूबी परिचित होने के कारण इसे खाते नहीं हैं। यही वजह है कि इसके बचे रहने का यह एक कारण भी है। 
पक्षी निरीक्षक और वैज्ञानिक डबैचर ने इस पक्षी के ऊपर गहन अध्ययन किया है। वह अपने साथ पिटोहुई के पंखों को उठाकर लाये थे और उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के कैमिस्ट जॉन डेली को इसके पंखों में मौजूद जहर का परीक्षण करने के लिए दिया था। इसके जहर और उसके स्थान के बारे में गहन खोजबीन की गई। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस पक्षी में मौजूद जहर डार्ट फ्रॉग में पाये जाने वाले जहर के ही समान होता है। डार्ट फ्रॉग की तीन प्रजातियों में जहर की मात्रा सबसे ज्यादा होती है। वैज्ञानिकों द्वारा पिटोहुई में मौजूद जहरीले तत्व को होमोबैट्राको टॉक्सिन नामक वर्ग में वर्गीकृत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि उसमें मौजूद यह विषाक्त पदार्थ उसके आहार से प्राप्त होता है, जो शिकारियों को रोकने और पक्षियों को परजीवियों से बचाने के लिए काम कर सकता है।  इसका जहर अगर मानव शरीर में चला जाए तो इससे पक्षाघात, हृदयघात और मौत भी हो सकती है। इस पक्षी का नारंगी काला रंग उस पर हमला करने वाले को खतरे की चेतावनी देता है। यही वजह है कि वह अपने जहरीले हथियार से अपनी रक्षा कर पाता है। हालांकि न्यू गिनी तक ही सीमित इन पक्षियों की आबादी प्राकृतिक और अन्य कारणों से धीरे-धीरे कम हो रही है। इसलिए इन्हें संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है। 

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