सोने का देश

रोज की तरह संजीत आज फिर रात को सात बजे ही सो गया और सपनों की दुनिया में विचरने लगा। सपने में संजीत ने देखा कि वह जिस धरती पर चल रहा है वह बेहद खूबसूरत है। खूबसूरत नदियां है। खेतों में ऐसी सुंदर फसल लहलहा रही है जैसी उसने आज तक कभी नहीं देखी थी। हर आदमी के पास आने-जाने के लिए सवारियां है। जगह-जगह कारखाने लगे हुए हैं तथा उनमें किसम-किसम की चीजों का उत्पादन हो रहा है।
बच्चे तो इतने मेहनती है कि उनकी कोई मिसाल ही नहीं है। सभी बच्चे अपने समय का सदुपयोग करते हैं। खेलने के समय खेलते हैं तथा पढ़ने के वक्त जी लगाकर पढ़ते हैं। सभी अपने माता-पिता का कहना मानते हैं। कभी भी मेहनत करने से जी नहीं चुराते। बच्चों में बाग लगाने का खास शौक है। प्रत्येक मकान के सामने एक उपवन अवश्य है। इस उपवन को संभालने का बड़े लोग तो करते ही हैं, बच्चे भी इसे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।
इस देश के राजा का नाम रामजी है जिसके शासन का पहला सूत्र है- ‘सभी की भलाई हो। किसी को भी यदि कोई दु:ख है तो वह जब चाहे राजा से मिलकर अपनी बात कह सकता है।’ संजीत को यह जानकर और देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि राजा के पास शिकायतें पहुंचती ही नहीं क्योंकि किसी को कोई तकलीफ नहीं है।
इस राज्य के प्रधानमंत्री का नाम न्यायप्रिय है। संजीत अपनी उत्कंठा को न रोक सका और वह न्यायप्रिय जी के महल में पहुंच गया। न्यायप्रिय जी ने आगे बढ़कर स्वयं संजीत का स्वागत किया। उन्होंने कहा-
‘कहो बेटे, हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?’
‘मैं आपसे कुछ जानकारी हासिल करने आया हूं।’
‘क्या जानकारी बेटे?’
‘यही कि आप इतना अच्छा शासन कैसे करते हैं?’
‘बेटे, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। हमारे राज्य का प्रत्येक बच्चा और प्रत्येक युवा पूर्ण रुप से सतर्क है। उसमें देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। हमारे यहां सारी व्यवस्थाएं प्रजा के लिए है। हम किसी के उपर कोई पाबंदी लादते नहीं, बल्कि लोग करने या न करने योग्य बातों को खुद ही समझते हैं। हमारे राज्य में लोकहित की जिम्मेदारी सिर्फ राजा या मंत्रियों पर नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की समान जिम्मेदारी है। इसीलिए कोई भी नागरिक कर्तव्य विमुख होने की चेष्टा नहीं करता है। जनता की स्वयं चेतना से ही जनता और देश की सुरक्षा होती है। राजा का चयन जनता ही करती है। हम लोग तभी तक राजा या ंमंत्री रहते हैं जब तक कि जनता चाहती है।’
संजीत, न्यायप्रिय जी की बातें सुनकर देश घूमने निकल गया। अराजकता नाम की चीज उसे कहीं भी दिखाई नहीं दी। लोगों में उत्साह, उमंग और कर्मठजीवन जीने की लगन उसे कदम-कदम पर दीख रही थी। गंदगी का कहीं भी नामों-निशान नहीं था।
सपना अभी समाप्त नहीं हुआ था कि संजीत की मम्मी ने आकर उसे जगा दिया। ‘सोने के देश’ की सुनहरी बातें उसके दिमाग में अब भी घूम रही थी। राजा का महल और सफाई के कारण, सोने सा चमचमाता देश उसकी आंखों के सामने अब भी झलक रहा था। वह सोच रहा था कि काश! अपना देश भारत भी ऐसा बन जाए। साथ ही उसे याद आ रही थी न्यायप्रिय जी की बातें- ‘हमारे देश का प्रत्येक व्यक्ति और बच्चा पूरी तरह देश के साथ बंधा हुआ है।’ विद्यालय में जाकर संजीत ने अपने सपने के बारे में साथियों को सुनाया। उसने यह प्रण कि वह स्वयं भी कभी भी किसी जिम्मेदारी से अलग नहीं समझेगा तथा ऐसा ही कार्य करेगा जिनसे देश का भला होता हो। 

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