हमारी नदी गंगा

गंगा नदी का गुणगान तो हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि हमारे देश की पवित्र नदी गंगा है। इसका जल हमारे लिए अमृत है। गंगा हमारी आस्था एवं संस्कृति का प्रतीक है। भगवान कृष्ण जी ने भगवश्वीता में अर्जुन से, कहा था-‘हे अर्जुन, जल की समस्त नदियों में मैं गंगा हूं।’
युगों से गंगा में निर्मल जल बहता रहा है। आधुनिक काल में स्वतंत्रता के पश्चात् गंगा नदी लगातार प्रदूषित होती जा रही है। हम भारतीयों का परम कर्तव्य है कि हम गंगा को प्रदूषित होने से बचाएं। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व गंगा संसार की सभी नदियों से पवित्र मानी जाती थी। इसका जल हिमालय से लेकर गंगा सागर तक जल हमेशा साफ रहता था। इस जल में कभी कीड़े नहीं पड़ते। इसलिए इसे सुरसरिता भी कहा जाता है। धीरे-धीरे उद्योगपतियों के कल कारखाने बढ़ते गए, देश की जनसंख्या भी बढ़ती गई, देश की वन संपदा धीरे-धीरे विनाश को प्राप्त होने लगी तब प्रदूषण का प्रभाव महानगरों, नगरों, नदियों और सरोवरों पर पड़ना शुरू हो गया।
गंगा की साफ-सफाई के लिए अनेक योजनाएं बनाई गई, अरबों रूपए खर्च किए गए, पर कोई सुखद लाभ नहीं मिला। गंगा नदी में कारखानों का दूषित जल, शहरों का कचरा और मल मूत्र गंगा में अभी भी बहाया जाता है। जहां ऋषिकेश और हरिद्वार में प्रतिमाह लाखों तीर्थयात्री और पर्यटक गंगा में स्नान करते हैं। कानपुर नगर में गंगा बहुत प्रदूषित है क्योंकि यहां चमड़े के कारखानों और खाल की सफाई के कारण इस पवित्र नदी में कालिये नाग का विष फैल गया है। वाराणसी, काशी के घाट पर इतना प्रदूषित पानी है कि तीर्थयात्रियों को अब निराशा होने लगी है। अब भी समय है।
भारतवासियों! जागो। अगर इस ओर ध्यान न दिया तो यह श्वेत सुर सरिता काली नदी का रूप जल्द ही धारण कर लेगी। इसका अमृत तुल्य जल विषमय बनते देर नहीं लगेगी। गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए इसकी सहायक नदियों और नालों को पहले प्रदूषण रहित करना होगा। तभी हम गंगा को निर्मल बना सकते हैं। 

(उर्वशी)