सोच अपनी-अपनी 

काफी वर्ष पहले की बात है कि एक बहुत बड़े जंगल में एक पीपल के पेड़ के ऊपर एक चिड़िया अपना एक घोंसला बनाकर रहती थी। उसने बच्चे देने से पहले ही अपने होने वाले बच्चों के लिए काफी दाना इक्ट्ठा किया हुआ था। क्योंकि उसे पता था कि शीघ्र ही वर्षा ऋतु का आगमन होने वाला है। हो सकता है कि कभी वर्षा दो तीन दिन लगातार पड़ती रहे और वह दाना लेने ना जा सके तो ऐसी परिस्थिति में कम से कम उसके बच्चों को भूखा ना रहना पड़े। वर्षा ऋतु आरंभ हो चुकी थी। वही हुआ जोकि उसने सोचा था। कई दिन लगातार वर्षा होती रही और वह दाना लेने अपने घोंसले से बाहर भी नहीं जा सकी। कई दिन वर्षा लगने के कारण उसका इक्ट्ठा किया हुआ दाना भी खत्म हो गया।
बच्चे भूख से बिलख रहे थे। वह वर्षा के रुकने की प्रतीक्षा करते हुए सोच रही थी कि वर्षा रुके और वह दाना लेने के लिए अपने घोंसले से निकले। अचानक उसके मन में एक विचार आया कि सामने एक बरगद के पेड़ पर बहुत सारे परिंदे घोंसले बनाकर रहते हैं और सांयकाल को वृक्ष के नीचे बनी झोंपड़ी में इकट्ठे होते हैं, क्यों न उन परिंदों के सरदार के पास जाकर अपने बच्चों के लिए दाना मांगा जाए। सांयकाल के समय सभी परिंदे अपने सरदार के साथ दाना खाते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे।
चिड़िया पड़ती हुई वर्षा में उन परिंदों के पास जा पहुंची। उसने परिंदों के सरदार को अपनी समस्या बताते हुए कहा कि उसके बच्चे भूख से बिलख रहे हैं, उसे कुछ दाना देकर उसकी सहायता कीजिए। मैं आपका यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी।
परिंदों का सरदार बहुत ही तंग दिल था। उसने चिड़िया को यह कहकर दाना देने से इन्कार कर दिया कि हम तुम्हें खाना कैसे दे दें, यदि वर्षा बंद न हुई तो दाना खत्म होने पर हम कहां जाएंगे? अन्य परिंदों को अपने सरदार का जवाब अच्छा नहीं लगेगा, सभी परिंदे चिड़िया को दाना देकर उसकी सहायता करना चाहते थे परंतु अपने सरदार के सामने वह कुछ बोल नहीं सकते थे। चिड़िया निराश होकर अपने घोंसले को जाने के लिए मुड़ने ही वाली ही थी कि अचानक उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी। वह आवाज एक मैना की थी।
चिड़िया उसकी आवाज सुनकर रुक गई। मैना ने उसे कहा, मैं तुम्हारे घोंसले से होकर ही आई हूं। तेरे बच्चों से पता चला कि तुम दाना लेके निकली हो। तुमने ऐसे ही दिनों में मेरी सहायता की थी। मुझे याद आया कि कई दिनों से वर्षा हो रही है, कहीं तेरे पास दाना खत्म ना हो गया हो। तेरे बच्चों ने बताया कि वे कई दिनों से भूखे हैं। तुम घबराओ मत मैं तेरे बच्चों के पास उनके खाने के लिए दाने की एक पोटली छोड़ आई हुं। उस दाने से तुम्हारे कुछ दिन निकल जाएंगे। यदि वर्षा ना रुकी तो मैं फिर दाना देने आ जाऊंगी। 
चिड़िया ने मैना को कहा, बहिन तुमने इन बुरे दिनों में मेरी सहायता करके मेरे ऊपर बहुत उपकार किया है, मैं इसे कभी नहीं भूलूंगी। चिड़िया के बच्चों की भूख मिट गई। वर्षा रुक गई। मौसम अच्छा हो गया। चिड़िया ने अपने बच्चों को बाहर से दाना लाना शुरू कर दिया। कई दिनों के बाद चिड़िया ने देखा कि सारे परिंदे झोंपड़ी में बीमार पड़े हुए हैं।
उनसे हिला भी नहीं जा रहा था। वह उनसे पूछने गई तो परिंदों के सरदार ने बता या कि हम सभी ने लालच में आकर एक जगह पड़ा हुआ जहरीला दाना खा लिया। उन जहरीले दानों ने हमें बीमार कर दिया। अब हमसे उठा भी नहीं जाता। हमें लगता हैं कि हम सब मारे जाएंगे। चिड़िया ने उन्हें कहा, मित्रो, आप घबराएं मत, आपको कुछ नहीं होता। चिड़िया ने आस-पास के अन्य पक्षियों को भी वहां बुलाकर उन परिंदों की कई दिनों तक देखरेख की और उन्हें वहीं दाना पहुंचाते रहे। कुछ दिनों के बाद सभी परिंदे स्वस्थ होकर उस चिड़िया को कहने लगे, चिड़िया बहिन, जब तुझे हमारी सहायता की ज़रूरत थी तो हमने तुमको इन्कार कर दिया लेकिन तुमने फिर भी हमारी सहायता करके अपनी अच्छाई का परिचय दिया। हम तुमसे शर्मिंदा हैं स चिड़िया ने उत्तर दिया, मित्रो, अपनी अपनी सोच है। तुम्हें इस घटना से यह सबक सीखना चाहिए कि जब भी किसी को हमारी सहायता की ज़रूरत पड़े तो उसको इन्कार मत करो।

-माधव नगर नंगल टाऊन शिप
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