चुनावों के इस वैश्विक वर्ष के ‘सुपर इलेक्शन’ का शंखनाद

वर्ष 2024 दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी साल है। इस पूरे साल करीब 80 देशों में चुनाव होना है, जिनमें से अब तक 14 देशों में चुनाव हो चुके हैं या होने ही वाले हैं। इसी क्रम में अब इस साल के सबसे बड़े यानी ‘सुपर इलेक्शन’ की भी घोषणा हो चुकी है। जी हां, भारत में होने वाले आम चुनाव इस साल के ‘सुपर इलेक्शन’ हैं। क्याेंकि साल 2024 में दुनिया के जिन लगभग अढ़ाई अरब मतदाताओं को अपने अपने देशों की सरकारें चुननी हैं, उनमें 96.80 करोड़ मतदाता अकेले हिंदुस्तान के होंगे। ये चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून तक 7 चरणों में होंगे। अमीरीका, रूस, ब्रिटेन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और ताइवान सहित 4 दर्जन से ज्यादा देशों के समूचे मतदाताओं के बराबर अकेले भारत के मतदाता हैं। इसलिए साल 2024 का सबसे बड़ा चुनावी महाभारत हिन्दुस्तान में सम्पन्न होना है। 
वैसे तो किसी भी देश में हमेशा आम चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन भारत में ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, क्याेंकि समूची दुनिया का लोकतांत्रिक भविष्य भारत में सुचारू तरीके से सम्पन्न होने वाले आम चुनाव पर निर्भर है। भारत के आम चुनाव दुनिया में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां दुनिया के सबसे ज्यादा मतदाता सरकार चुनते हैं, बल्कि इसलिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि भारत ही दुनिया की लोकतांत्रिक काया की आत्मा है। भारत में अगर चुनाव सुचारू रूप से सम्पन्न होते हैं तो दुनिया में भी इनके सुचारू बने रहने की संभावना बरकरार रहती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया भारत में ‘फ्री एंड फेयर’ इलेक्शन की कामना करती है ताकि पूरी दुनिया के लिए भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की उम्मीद बनी रहे। अगर भारत जैसा बहुलतावादी देश आम चुनावों के ज़रिये अपने लोकतांत्रिक ढांचे को मज़बूत और सत्ता के लिए सतत परिवर्तनशील बनाये रखता है तो पूरी दुनिया में लोकतंत्र के भविष्य के लिए यह बड़ा उदाहरण बनता है। 
भारत में 18वीं लोकसभा चुने जाने के लिए अगले कुछ हफ्तों में होने वाला यह आम चुनाव, अगर आज़ादी के 73 सालों में सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बनकर उभरा है, तो इसकी कई वजहें हैं। एक तरफ जहां सूचना के इस डिजीटल युग में, एक क्लिक भर से अरबों, खरबों के फैसले होते हों, वहीं इतनी विशाल मतदाता आबादी की भागीदारी वाले देश में अगर सत्ता परिवर्तन चुनावों के जरिये सम्पन्न होता है, तो यह एक विवेकशील समाज की मर्यादा और अनुशासन की पराकाष्ठा है। आज़ादी के बाद साल 1951-52 में पहली बार आम चुनाव हुए थे और इसके बाद लगातार चुनाव का सिलसिला बरकरार है, सिवाय एक बार 70 के दशक में आपातकाल के चलते एक साल से कुछ ज्यादा समय के लिए चुनाव परम्परा बाधित हुई थी।
भारत में आज़ादी के बाद से अगर लगातार लोकतंत्र फला-फूला है तो यह सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी उम्मीद बना है, क्योंकि भारत जैसे गरीब और विशाल देश में अलर लगातार लोगों की लोकतंत्र पर आस्था बनी रहती है तो दुनिया में भी इसके बने रहने की संभावना बढ़ती है। हर पांच साल बाद होने वाले आम चुनाव में यहां इतनी बड़ी तादाद में नये मतदाता आ जुड़ते हैं कि कई देशों की समूची मतदाता संख्या भी इतनी नहीं होती। अब इस बार के चुनाव को ले लीजिए, पिछले पांच सालों में नये मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ से ज्यादा बढ़ी है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान जहां भारत में कुल मतदाताओं की संख्या 89.6 करोड़ थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर 96.8 करोड़ हो चुकी है। सबसे सकारात्मक बात यह है कि पिछले पांच सालों में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या में ज्यादा इजाफा हुआ है।
साल 2019 में जहां कुल पुरुष मतदाता 46.5 करोड़ थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 49.7 करोड़ हो चुकी है। इस तरह देखें तो पिछले पांच सालों में 3.2 करोड़ पुरुष मतदाता बढ़े हैं, जबकि इसी दौरान महिला मतदाताओं की संख्या 43.1 करोड़ से बढ़कर 47.1 करोड़ हो चुकी है। इसका साफ मतलब है कि पिछले पांच सालों में महिला मतदाताओं की संख्या में पुरुषों से 80 लाख ज्यादा बढ़ी है। यह बढ़ोत्तरी इस मायने में शानदार उपलब्धि है, क्योंकि इससे पता चलता है कि खतरनाक कगार में पहुंच गये स्त्री-पुरुष अनुपात में अब सुधार हो रहा है। 
साल 2019 के पांच साल बाद हो रहे इस 18वीं लोकसभा के चुनावों में कई तरह के और महत्वपूर्ण आंकड़े सामने आये हैं। मसलन इस बार 18 से 29 साल के मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ से ऊपर है। वास्तव में नये मतदाता चाहे वे पहली बार वोट डालें या दूसरी बार, कई मायनों में परिणामों के निर्णायक होते हैं। ये ऐसे मतदाता हैं कि अगर इनके दिल दिमाग में परिवर्तन की कोई चाहत घर कर गई तो ये उसे हर हाल में हासिल कर लेते हैं। चूंकि इस बार 18 से 19 साल के बीच वाले मतदाता भी 1,84,81,610 हैं। इसलिए यह भी माना जा सकता है कि ये वे मतदाता हैं जो बिना किसी वैचारिक आग्रह या दबाव के मतदान करते हैं। इनके कारण ऐसी राजनीतिक पार्टी भी जीतकर आ सकती हैं, जिनके बारे में विशेषज्ञ आश्वस्त न हों। 
मतदाताओं के वर्गों की इस भिन्नता के कारण लोकतंत्र के जीवंत रहने की उम्मीद ज्यादा रहती है, क्योंकि तब विशाल लोकतंत्र को तरह तरह के विचार मिलते हैं। अगर पिछले दो आम चुनाव को देखा जाए तो दोनों ही बार सत्ता में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन रहा है। भाजपा को 2019 में जहां 303 सीटें और 37.7 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को करीब करीब मत जहां भाजपा से आधे हो गए थे, वहीं सीटें तो बहुत कम हो गई थी। कांग्रेस को 2019 में कुल 52 सीटें और 19.7 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार पहले से कहीं ज्यादा कांटे की टक्कर हो सकती है। हालांकि बीच में एक ऐसा दौर भी आ गया था, जब लगता था कि इस बार के लोकसभा चुनाव महज खानापूर्ति होंगे, क्योंकि दूर-दूर तक भाजपा के सामने कोई दूसरी ताकतवर पार्टी ही नहीं थी, लेकिन चुनावों के बिल्कुल पहले जिस तरह से कई ज़बरदस्त मुद्दे उभर कर सामने आए हैं, उससे लगता है कि मतदान आने तक विपक्षी गठबंधन भी काफी मजबूती से टक्कर देगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर