अन्न भण्डारण की सबसे बड़ी व्यवस्था

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण संरक्षण योजना के ध्वज तले शुरू की गई सवा लाख करोड़ रुपये की परियोजना एक ओर जहां देश के विभिन्न प्रकार के अनाजों की सुरक्षा की गारंटी सिद्ध हो सकती है, वहीं इससे भविष्य में देश के किसी भी कोने में भुखमरी अथवा अनाज की कमी जैसी स्थिति पर सफलता से पार पाया जा सकता है। सहकारिता के क्षेत्र में स्थापित होने वाली यह परियोजना देश के अन्न भण्डारण और सहकारिता जैसे क्षेत्रों का काया-कल्प करने में भी सक्षम हो सकती है। यह योजना भारत को वैश्विक धरातल पर अन्न-पदार्थों का निर्यातक बनाने में भी कारगर सिद्ध हो सकती है। देश में अनाज का उत्पादन इस सीमा तक होता है कि कुल आबादी की खान-पान की ज़रूरतों को पूरा करने के बाद भी अनाज के भण्डार बचे रह जाते हैं, किन्तु इस भण्डारण की सुरक्षा का ज़िम्मा केन्द्र अथवा प्रदेश  सरकारों पर आयद नहीं होता था। अत: प्रत्येक वर्ष लाखों टन अनाज आंधी-वर्षा-धूप के कारण खुले खलिहानों में पड़ा खराब हो जाता था। शेष बचे अनाज का बड़ा भाग मौजूदा गोदामों की दुरावस्था के कारण चूहों और कीड़ों का शिकार हो जाता था। भारत में अन्न-भण्डारण हेतु गोदामों में व्यवस्था प्राय: विश्व के किसी भी बड़े विकसित अथवा विकासशील देश से कमतर पाई जाती है। अमरीका, रूस और चीन आदि के मुकाबले में तो यह व्यवस्था बहुत न्यून सीमा तक है। इसीलिए देश में अन्न-भण्डारण एवं संरक्षण हेतु बड़ी मात्रा में गोदामों और संरक्षण-गृहों की व्यवस्था किये जाने की मांग चिरकाल से की जा रही थी। केन्द्र और राज्यों की सरकारों की ओर से अक्सर प्रत्येक वर्ष इस परियोजना को विचाराधीन लाया जाता रहा है, किन्तु कभी भी इस लक्ष्य-प्राप्ति की ओर एक पग भी आगे नहीं बढ़ा जा सका।
अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस हेतु एक व्यापक योजना का शुभारम्भ करके नि:संदेह रूप से देश के लोगों को एक ऐसा उपहार दिया है जिसकी आवश्यकता चिरकाल से महसूस की जा रही थी। देश में इस समय कुल जितना कृषि उत्पादन होता है, सरकार एवं सहकारिता क्षेत्र के पास उसके केवल 47 प्रतिशत हिस्से को ही सुरक्षित एवं संरक्षित किये जाने की व्यवस्था है। शेष भाग देश के भिन्न-भिन्न भागों में खुले गोदामों अथवा प्रांगणों में पड़ा रहता है। वर्षा, आंधी और धूप के कारण इसमें से अधिकतर भाग खराब अथवा नष्ट हो जाता है। इस भण्डारण को कीड़ों से बचाने के लिए डाली गई औषधियों के कारण भी यह भण्डारण बदबू देने लगता है जिस कारण यह कई बार आदमी की बात तो छोड़िये, पशुओं के लिए भी खाने के योग्य नहीं रहता। लिहाज़ा यह स्थिति दोहरी मार का कारण बनती है। एक तो इससे केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकारों को राजस्व की भारी हानि उठानी पड़ती है, दूसरी ओर इतनी बड़ी मात्रा में अन्न की बर्बादी होने से देश के कई भागों में भुखमरी और यहां तक कि कई बार अकाल जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ जाता है। सरकार की यह योजना कई पक्षों से देश और समाज खास तौर पर किसान वर्ग के लिए बड़ी हितकर और लाभकारी सिद्ध हो सकती है। सहकारिता क्षेत्र से वाबस्ता होने के कारण इस योजना से आम किसान भी अपने अन्न भण्डारण का निजी तौर पर संरक्षण कर सकेंगे। इस परियोजना की भण्डारण क्षमता भी 700 लाख टन होने से इसका दायरा राष्ट्रीय स्तर पर बहुत व्यापक हो सकता है। इस परियोजना के 2027 तक पूर्ण हो जाने की सम्भावना है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह पहले चरण पर इस परियोजना के दायरे में देश के कुल 11 कृषि आधारित राज्यों को शामिल किया गया है, किन्तु धीरे-धीरे इसके दायरे में देश के सभी राज्यों को शुमार किये जाने की योजना है। इस परियोजना की सम्पन्नता के दृष्टिगत किसानों को निजी स्तर के गोदामों और वेयर हाऊस संस्थानों से भी निजात मिल सकेगी। इन भण्डारण-गृहों के वातानुकूलित और कम्प्यूरीकृत होने से संरक्षित अनाज को क्षति होने की सम्भावनाएं भी समाप्त हो जाएंगी। 
प्रधानमंत्री मोदी के अपने शब्दों में, इस योजना के लचकीली और सहकारिता क्षेत्र की इकाई होने के कारण, इसका सम्पूर्ण लाभ किसानों को मिलेगा जिससे कृषि क्षेत्र में समृद्धि का प्रवेश सुगम हो जाएगा। इससे ग्रामीण धरातल पर रोज़गार के साधनों और अवसरों में भी वृद्धि होने की प्रबल सम्भावना है। हम समझते हैं कि यह परियोजना नि:संदेह रूप से देश के सम्पूर्ण अन्न क्षेत्र विशेषकर कृषि क्षेत्र का काया-कल्प करने में सक्षम हो सकती है, बशर्ते कि इसे ज़मीनी स्तर पर ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ क्रियान्वित कराये जाने की भी व्यवस्था की जाए।