कहीं औपचारिकता बन कर ही न रह जाए जल संकट की चिन्ता !

‘पानी की कमी से दुनियाभर के समुदायों के स्वास्थ्य और विकास को खतरा है, हमें इस बात को गंभीरता से समझना होगा’- जो बाइडेन अमरीकी राष्ट्रपति।
अमरीकी राष्ट्रपति की यह चिंता जायज़ है, मगर सवाल है क्या इस चिंता के लिए वह अपने देश को भी ज़िम्मेदार ठहराएंगे या इसके लिए बरती जाने वाली किफायत के दायरे में अपने देश को भी लाएंगे? ऐसा कभी नहीं होगा जबकि हकीकत यह है कि दुनिया के मौजूदा जल संकट में सबसे बड़ी भूमिका दुनिया के विकसित और अमीर देशों की है, जिनमें अमरीका सबसे आगे है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। जहां अफ्रीका के करीब 27 देशों में वहां के लोगाें को औसतन प्रतिदिन 5 लीटर भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं है, वहीं औसतन अमरीकी नागरिक प्रतिदिन 100 गैलन यानी 350 लीटर पानी का इस्तेमाल करता है। यह स्थिति तो तब है, जब पिछले एक दशक में अमरीकियों के पानी के इस्तेमाल में कुछ कमी आयी है वरना 90 के दशक में और इस सदी के शुरुआती दशक में भी औसतन अमरीकी 400 लीटर पानी प्रतिदिन इस्तेमाल करते थे। आज भी एक अमरीकी परिवार हर दिन औसतन 552 गैलन पानी का इस्तेमाल करता है यानी लगभग हर दिन 1800 लीटर। क्या पानी के इतने गैर-ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल के बावजूद अमरीकी राष्ट्रपति या वहां के किसी भी नेता को विश्व जल संकट पर इस कदर रस्मी आंसू बहाने की छूट होनी चाहिए?
लेकिन आज की दुनिया की हकीकत यही है। दरअसल इन्सान इतना चतुर हो गया है कि वह समस्याओं पर दिन-रात लम्बे चौड़े खाके तो खींचता है, लेकिन इन परेशानियों को खत्म करने के लिए अपनी निजी भूमिका ज़रा भी नहीं अदा करता। आज  22 मार्च को विश्व जल दिवस है। पूरी दुनिया में जल संकट पर खूब रस्मी भाषण होंगे, चिंताएं व्यक्त की जाएंगी और सावधानियां सुझाई जाएंगी, लेकिन कोई ऐसा करने वाले दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं से पूछे कि वे यह सब उपदेश किसके लिए दे रहे हैं, क्या उन्हें या उनके देश को इन सब बातों पर खुद क्रियान्वयन नहीं करना चाहिए?
अगर ज़रा भी चिंता होती तो अमरीका और अफ्रीका में पीने के पानी को लेकर इस तरह का विकराल भेद नहीं होता कि एक अफ्रीकी परिवार को तो एक दिन में 5 गैलन पानी भी उपलब्ध न हो और एक अमरीकी परिवार हर दिन 552 गैलन पानी का इस्तेमाल करे? दरअसल दुनिया के एक नहीं ज्यादातर संकटों की यही कहानी है। एक अमरीकी हर दिन औसतन 8.2 मिनट नहाता है और लगभग 18 गैलन पानी खर्च कर देता है। 
जबकि इन दिनों भारत के महानगरों में हर व्यक्ति के लिए औसतन प्रतिदिन महज 10 लीटर पीने का पानी उपलब्ध है और बंग्लुरु तथा चेन्नई जैसे जल संकट से घिरे महानगरों में तो हर दिन औसतन 5 लीटर पीने का पानी भी मुहैय्या नहीं होता। यह अकारण नहीं है कि इन दिनों बंग्लुरु के प्रशासन ने छोटे बच्चों के ही नहीं, बड़े शिक्षण संस्थानों को भी पानी के संकट के कारण कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया है और कई बड़ी कम्पनियां जल संकट से घिरे होने के कारण अपने कर्मचारियों से वर्क फ्राम होम करने के लिए कह रहे हैं। हिन्दुस्तान में साल 1994 में जहां प्रतिव्यक्ति 6000 घन मीटर सालाना पानी की उपलब्धता थी, वहीं साल 2025 तक इसके घटकर 1600 घन मीटर रह जाने की आशंका है और अगले कुछ सालों में तो इसके 400 घन मीटर से भी कम रह जाने की बात कही जा रही है। ऐसी भेदभाव भरी दुनिया में जब किसी खास दिन दुनिया भर के नेता किसी संकट पर पानी पी पीकर आंसू बहाते हों, तो इस सब पर तरस ही आता है। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि धरती के इस समय दो ही संकट सबसे विकराल हैं, एक ग्लोबल वार्मिंग की समस्या और दूसरी दुनिया में लगातार कम हो रहे पीने के पानी की समस्या। वैसे ये दोनों समस्याएं आपस में जुड़ी हुई भी हैं। शायद यही वजह है कि साल 2024 के विश्व जल दिवस की थीम ‘लेवरेजिंग वॉटर फॉर पीस’ यानी दुनिया की शांति के लिए जल का महत्व है। इस थीम से साफ है कि अगर दुनिया में पीने के पानी का संकट हल नहीं हुआ, तो दुनिया में शांति भी नहीं आयेगी। आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया के 70 फीसदी लोग पीने योग्य पानी के संकट से घिरे हुए हैं, क्योंकि दुनिया में मौजूद 97 फीसदी पानी पीने लायक नहीं है, महज 3 फीसदी ही पानी है जिसे पीकर पूरी दुनिया को जीवित रहना है। 
ऐसे में भी अगर कुछ देश मनमानी करेंगे और इसके बाद पूरी दुनिया को जल के इस्तेमाल पर किफायत बरतने के उपदेश देंगे, तो जिसे हकीकत पता है, उसे इस रस्मी चिंता पर गुस्सा ही आयेगा। धरती में महज 1,121 बिलियन क्यूबिक मीटर पीने लायक पानी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर पानी का अंधाधुंध दोहन इसी रफ्तार से होता रहा, जैसे वर्तमान में हो रहा है, तो अगले 20 साल में धरती का समूचा पीने का पानी लगभग खत्म हो जायेगा, सवाल है तब क्या होगा? और हां, ये मत सोचिए कि समस्या 20 साल बाद ही आयेगी। समस्या तो आज भी घनघोर है। हिन्दुस्तान के 30 से ज्यादा शहरों में जिसमें सभी बड़े और ज्यादातर मझोले शहर शामिल हैं, पीने के पानी का संकट साफ  तौर पर दिखाई दे रहा है। 
इस संकट के रहते हुए भी आगे 20 साल नहीं गुजर जाएंगे। 20 साल की अवधि तो कयामत की अवधि है, लेकिन कयामत की शुरुआत हो चुकी है और आने वाले कुछ ही सालों में इसकी रफ्तार भयावह हो सकती है। इसलिए पीने के पानी को लेकर न सिर्फ पूरी दुनिया के लोगाें को एक ही स्तर पर सजग होने की ज़रूरत है, बल्कि बिना शर्त इसी क्षण से पीने के पानी के इस्तेमाल में सजगता और संयम बरतने की ज़रूरत है वरना तो हर साल जल दिवस आयेगा और हर साल बड़ी बड़ी बातें होंगी, लेकिन जल संकट लगातार बढ़ेगा और हमें प्रलय की ओर ले जायेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर