रंगों का मनोविज्ञान

रंगों की निराली छटा सहज ही मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। रंगों में अपार आकर्षण होता है। प्रकृति की हर कृति में रंगों की अपूर्व छटा बिखरी पड़ी है। नीलगगन में प्रतिपल बनने वाली रंगों की चितरंगी दुनिया भला किसे आकर्षित नहीं करती। सावन की हरियाली तो किसी चित्रकार की अनुपम कृति जैसी लगती है। पहाड़ों पर चांदी की चमकती शुभ्र धवल बर्फ एवं उनके झरते रूई सी सफेद फेनिल झरनों से तन-मन आद्वलादित हुए बिना नहीं रहता। कितने मनोरम एवं अनोखे हैं प्रकृति के ये रंग। रंगों की यह छटा केवल आंखों को ही तृप्त नहीं करती, बल्कि यह स्वास्थ्य एवं मन पर भी अमिट व गहरा प्रभाव डालती है। मनोवैज्ञानिक रंगों के इस रूझान से उनके व्यक्तित्व का आकलन कर लेते हैं। आइए जानें रंगों के मनोविज्ञान और उसमें छुपे प्रभावों को-
सफेद रंग : सफेद रंग में शांति, कोमलता, शीतलता, रसिकता, सुंदरता, शीघ्र प्रभावित होना, तृप्ति, विस्तार एवं प्रेम का भाव छिपा रहता है। सफेद रंग को पसंद करने वाले व्यक्तिव सामान्यत: शांत, सरल, स्वभाव से स्पष्टवादी होते हैं। रंग चिकित्सा में इस रंग का प्रयोग शरीर के सभी अंगों के लिए किया जाता है।
नीला : नीला रंग निश्चिंतता, शांति, संवादशीलता, ज्ञान एवं सृजन का प्रतीक है। इसमें विचारशीलता, बुद्धि, सूक्ष्मता, विस्तार, सात्विकता, प्रेरणा, व्यापकता, संशोधन, संवर्द्धन, सिंचन, आकर्षण आदि गुण होते हैं। नीले रंग को पसंद करने वाले स्वभाव से उदार, विश्वासी, सौंदर्य प्रेमी और आराम तलब व्यक्ति होते हैं। नीला रंग शरीर को ठंडा रखता है। श्वसन तंत्र, माइग्रेन, आंख, नाक-कान और गले संबंधी रोगों के उपचार में इस रंग का प्रयोग किया जाता है। यह रंग बच्चों के अस्थमा, चिकन पाक्स और पीलिया के ईलाज में भी प्रयुक्त होता है।
हरा : यह मैत्री और प्रेम का प्रतीक है। इस रंग की विशेषता है चंचलता, चपलता, कल्पना, स्वप्नशीलता, जकडन, दरद, अपहरण, धूर्तता, गतिशीलता, विनोद, प्रगतिशीलता। सामान्यत: हरे रंग को पसंद करने वाले लोग प्रकृति प्रेमी, बौद्धिक, प्रदर्शन प्रियता, मनमौजी, अस्थिर चित वाले होते हैं। हरा रंग आंखों को शीतलता प्रदान करता है। यह शांत एवं शमनकारी है। फोड़ों एवं जख्मों को भरने में यह मलहम जैसा कार्य करता है। यह पेचिश रोग, मांसपेशियों के दर्द एवं तनाव के लिए भी लाभकारी पाया गया है।
पीला : पीला रंग ज्ञान, आध्यात्मिकता और कुलीनता एवं विकासशीलता का परिचायक है। हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में पीले रंग का विशेष महत्त्व है। इस रंग में क्षमा, गंभीरता, उत्पादन, स्थिरता, वैभव, मजबूती, संजीदगी एवं भारीपन का गुण है। पीले रंग को चाहने वाले लोग कुशाग्र बुद्धि, तीव्र स्मरण शक्ति वाले तथा परिश्रमी होते हैं। पीले रंग का प्रभाव हृदय संस्थान पर अधिक पड़ता है। यह पाचन व्यवस्था, आंतों, गुर्दो, दिमाग की सक्रियता के लिए उपयोग किया जाता है। इसका प्रयोग गठिया, तनाव, उदासी, थकान, उन्माद आदि मनोविकारों से मुक्ति पाने के लिए भी किया जाता है।
नारंगी : यह उत्साह, स्वतंत्रता, आशावादिता और ऊर्जा का स्रोत है। आनंद, बुद्धिमता एवं सृजनात्मक मनोवृत्ति को बढ़ाता है। इस रंग को पसंद करने वाले लोगों में सामाजिकता की भावना होती है। इस रंग का प्रयोग आंतों, गुर्दों, तिल्ली, अग्नाशय, उदर विकार एवं चिंता से जूझने वाले लोगों के उपचार हेतु किया जाता है। अनेक प्रकार के दर्द में भी इसे प्रयोग में लिया जाता है।
लाल : यह जीवन शक्ति, संकल्प शक्ति, तेजस्विता और कामुकता का आधार है। लाल रंग में गरमी, उष्णता उत्तेजना, शूरता, कठोरता, तेज, प्रभावशीलता, चमक, स्फूर्ति होने के साथ-साथ इसमें क्रोध, ईर्ष्या एवं द्वेष के भाव भी निहित होते हैं। रंग चिकित्सा के अनुसार लाल रंग उष्ण होने के कारण इसे उदासी, निराश और मनोरोगों के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है। यह चोट एवं मोच में अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुआ है। यौन दौर्बल्य जनित रोगों में भी यह प्रभावी होता है।
बैंगनी : यह शुद्धिकरण का प्रतीक है। इसका प्रयोग शरीर की शुद्धता के लिए किया जाता है। बैंगनी रंग दमा, सूजन, अनिद्रा, सिरदर्द आदि में अत्यंत लाभकारी है। इतना ही नहीं, यह रंग नींद की दवा जैसा फायदेमंद है। 
 

(सुमन सागर)