भारत की शानदार उपलब्धि अंडरवाटर मैट्रो

लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार 15 मार्च से पश्चिम बंगाल में देश की पहली अत्याधुनिक अंडरवाटर मेट्रो की शुरूआत हो गई। प्रधानमंत्री ने 6 मार्च को ही कोलकाता मेट्रो के 4.8 किलोमीटर लंबे हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड खंड (ग्रीन लाइन) सहित कवि सुभाष-हेमंत मुखोपाध्याय (न्यू गरिया से रुबी ऑरेंज लाइन) और जोका से माझेरहाट तक विस्तारित खंड (पर्पल लाइन) में इन मेट्रो सेवाओं को देशवासियों को समर्पित किया था, जिन्हें आम यात्रियों के लिए 15 मार्च को खोल दिया गया। हुगली के पश्चिमी तट पर स्थित हावड़ा को पूर्वी तट पर साल्ट लेक से जोड़ती यह अंडरवाटर मेट्रो अब जमीन से 33 मीटर नीचे और हुगली नदी के तल से करीब 13 मीटर नीचे बने ट्रैक पर दौड़ रही है। कोलकाता की अंडरवाटर मेट्रो की विशेषता यही है कि इसका निर्माण करीब 15400 करोड़ रुपये की लागत से हुगली नदी के नीचे कराया गया है।
 भारत की इस पहली अंडरवाटर मेट्रो को देश के बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। दरअसल पानी के अंदर बनी मेट्रो सुरंग इंजीनियरिंग की ऐसी शानदार उपलब्धि है, जो हुगली नदी के नीचे से गुजरती है। नदी के नीचे सुरंग निर्माण पर करीब 4965 करोड़ रुपये लागत आई है। नदी के नीचे की सुरंगों को विशेष रूप से प्रकाशमान किया गया है और जलीय जीवों के साथ चित्रित भी किया गया है ताकि यात्रियों स्पष्ट रूप से पता चल सके कि मेट्रो कोच नदी के हिस्से के नीचे से गुजर रहा है।
कोलकाता की अंडरवाटर मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो के ईस्ट-वेस्ट कारिडोर के हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड सेक्शन का हिस्सा है, जिसके तहत हुगली नदी के नीचे सुरंग से होते हुए कुल 16.6 किलोमीटर का सफर तय किया जाएगा। इस मेट्रो लाइन पर कुल छह स्टेशन हैं, जिसमें से तीन स्टेशन हावड़ा मैदान, हावड़ा स्टेशन और महाकरण अंडरवाटर होंगे और अंडरवाटर की 520 मीटर की दूरी महज 45 सैकेंड में तय की जा सकेगी। इस मेट्रो के जरिये नदी के दोनों सिरों पर बसे दो बड़े शहरों हावड़ा और कोलकाता को जोड़ा गया है। भारत की यह पहली ऐसी परिवहन परियोजना है, जिसमें मेट्रो नदी के नीचे बनी सुरंग से गुजरेगी। कुल 16.6 किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइन का 10.8 किलोमीटर हिस्सा भूमिगत है और हुगली नदी के दोनों छोर पर बसे दो शहरों को जोड़ने के लिए 3.8 किलोमीटर की दो अंडरग्राउंड सुरंग तैयार की गई, जिसमें 520 मीटर का हिस्सा पानी के नीचे है। हुगली नदी के नीचे बनाई गई 520 मीटर लंबी यह सुरंग नदी की सतह से 13 मीटर नीचे है। जमीन से करीब 30 मीटर नीचे खुदाई करके हावड़ा मेट्रो स्टेशन तैयार किया गया है और पानी के भीतर सुरंग बनाने के लिए कंक्रीट को फ्लाई ऐश तथा माइक्रो-सिलिका के साथ डिजाइन किया गया है। इस सुरंग का आंतरिक व्यास 5.55 मीटर और बाहरी व्यास 6.1 मीटर है जबकि ऊपर और नीचे 16.1 मीटर की दूरी है। सुरंग की अंदरूनी दीवारों को उच्च गुणवत्ता के 50 ग्रेड सीमेंट से बनाया गया है, प्रत्येक सेगमेंट की मोटाई 275 मिलीमीटर है। सुरंग के अंदर पानी के फ्लो और लीकेज को रोकने के लिए सुरक्षा के कई पुख्ता उपाय किए गए हैं, जिसके लिए सीमेंट में फ्लाई ऐश और माइक्रो सिलिका को मिलाया गया है। अंडरवाटर मेट्रो निर्माण कार्य से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक सुरंग में पानी की एक बूंद भी नहीं आ सकती। पानी की सतह में ही वेंटिलेशन और निकासी के शाफ्ट लगाए गए हैं।
कोलकाता की मेट्रो टनल का कार्य 2017 में शुरू हुआ था और साल्ट लेक सेक्टर वी तथा साल्ट लेक स्टेडियम को जोड़ने वाले कोलकाता मेट्रो के पूर्व-पश्चिम मेट्रो कॉरिडोर के पहले चरण का उद्घाटन तत्कालीन रेलमंत्री पीयूष गोयल ने फरवरी 2020 में किया था और कोरोना महामारी के दौरान तीन वर्षों के भीतर इस मेट्रो परियोजना के काम को पूरा किया गया। कोलकाता में इस मेट्रो का निर्माण एक बड़ी चुनौती थी। दरअसल हुगली नदी एक गहरी और तेज बहाव वाली नदी है, जिसके कारण सुरंग का निर्माण करना बहुत मुश्किल था। अंडरवाटर मेट्रो का निर्माण करने के लिए कई तकनीकी चुनौतियों का सामना किया गया। यह प्रक्रिया विशेष रूप से उस शहर की भूमि और जल संरचना के अनुरूप डिजाइन की जाती है। अंडरवाटर मेट्रो के लिए एक विशेष प्रकार की सामरिक और तकनीकी योजना तैयार की गई, जो इस प्रकार के परिवहन के लिए उपयुक्त होती है। इसके अलावा अंडरवाटर मेट्रो की सुरक्षा, अनुकूलन और बचाव की व्यवस्था भी की गई। भूमिगत रेल टनल बनाने के लिए रूस की कम्पनी ‘ट्रांस्टनेलस्ट्रॉय’ के साथ ज्वाइंट वेंचर किया गया था, जिसे ईरान में अंडरवाटर सड़क तैयार करने का अनुभव है। कोलकाता में अंडरवाटर मेट्रो तैयार करने में इसी कम्पनी ने मदद की और अब हावड़ा मेट्रो स्टेशन भारत का सबसे गहरा मेट्रो स्टेशन बन गया है। मेट्रो सुरंग के निर्माण में कई आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया, इसे टनल बोरिंग मशीन का उपयोग करके बनाया गया। किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए अंडरवाटर सुरंग में तमाम ज़रूरी उपाय किए गए हैं और सुरंग के अंदर 760 मीटर लंबा इमरजेंसी एग्जिट बनाया जा गया है। चूंकि कोलकाता मेट्रो के हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड सेक्शन में मेट्रो ट्रेन पानी के अंदर दौड़ने लगी है, इसलिए यह सेक्शन बेहद खास बन गया है। मेट्रो टनल को हुगली नदी के तल से 32 मीटर नीचे बनाया गया है। अंडरवाटर मेट्रो के कुल 6 कोच में 1750 यात्रियों को एक साथ सफर करने की क्षमता है और इसकी गति 80 किलोमीटर प्रतिघंटा है।
अंडरवाटर मेट्रो एक ऐसी उपग्रहीय परिवहन प्रणाली है, जो जल के नीचे बनी होती है। तकनीकी उपायों के माध्यम से यह भूमि के नीचे बनाई जाती है, जिसमें विशेष रूप से डिजाइन की गई ट्रेनों को चलाया जाता है। अंडरवाटर मेट्रो की विशेषता यह है कि यह उपग्रहीय तंत्र के द्वारा शहर के अंदर रहते हुए ही लोगों को उनके लक्ष्य स्थानों तक पहुंचाती है। इस तरह की परिवहन प्रणाली शहर के अधिकांश यात्रियों के लिए तात्कालिक और सुरक्षित यात्रा की सुविधा प्रदान करती है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए मेट्रो टनल में सेंसर, कैमरे और आपातकालीन निकास द्वार इत्यादि तमाम तरह के उपाय किए गए हैं, साथ ही लोगों को 5जी इंटरनेट की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। अंडरवाटर मेट्रो में ऑटोमेटिक ट्रेन ऑपरेशन सिस्टम लगा है यानी मोटरमैन के बटन दबाते ही ट्रेन अपने आप अगले स्टेशन के लिए मूव करेगी और अधिकतम 80 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ेगी। यात्रियों की सुरक्षा के लिए ट्रेन के कोच में बेहतर ग्रैब हैंडल और हैंडल लूप के साथ-साथ एंटी-स्किड फर्श और अग्निशामक यंत्र भी लगाए गए हैं। प्रत्येक कोच की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। अंडरवाटर मेट्रो के निर्माण से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है क्योंकि यह कामकाजी जगहों के लिए सुविधाजनक और सहज पहुंच प्रदान करती है। भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो ऐसी महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसके बाद भविष्य में देश में कई और अंडरवाटर मेट्रो का निर्माण होने की उम्मीदें बलवती हो गई हैं, जिससे शहरी यातायात को सुगम और सुरक्षित बनाने में मदद मिल सकेगी।
सवाल यह है कि आखिर पानी के नीचे मैट्रो जैसी परिवहन प्रणाली विकसित करने की ज़रूरत क्यों महसूस की जा रही है? दरअसल यातायात और परिवहन के क्षेत्र में तेजी से प्रौद्योगिकी की नवीनतम उपलब्धियों ने आधुनिक युग में भले ही लोगों के जीवन को सरल और बेहद सुविधाजनक बना दिया है लेकिन दूसरी ओर विभिन्न भू-भागों में यातायात की संख्या में लगातार होती बढोतरी के साथ ही शहरी क्षेत्रों में यातायात के अवरोध की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। इसी समस्या का समाधान करने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी के सहारे ऐसे उपाय किए जा रहे हैं। सड़क मार्ग पर बढ़ते यातायात की चुनौती का मुकाबला करने के उद्देश्य से ही अंडरवाटर मेट्रो की शुरुआत की गई है, जो एक प्रकार का अंतर्जलीय परिवहन है। भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो की यह पहल पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और शहरी यातायात को सुगम बनाने के उद्देश्य को प्रकट करती है। अंडरवाटर मेट्रो प्रोजेक्ट का लक्ष्य शहरी क्षेत्रों में यातायात की सुविधा को बढ़ाने के साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना भी है। वैसे अंडरवाटर मेट्रो के संचालन के कई और भी लाभ हैं। यह न केवल दोनों शहरों के बीच यात्रा के समय को काफी कम करने में अहम भूमिका निभाएगी, साथ ही यातायात की भीड़-भाड़ को भी कम करने के अलावा वायु गुणवत्ता में सुधार करने में भी मददगार साबित होगी। दरअसल अंडरवाटर मेट्रो का उपयोग कार्बन उत्सर्जन को कम करता है, जिससे शहरी परिवहन के प्रदूषण स्तर में कमी आती है। इस प्रकार की परिवहन प्रणाली निरंतरता और सुरक्षा के माध्यम से लोगों को अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा की सुविधा भी प्रदान करती है। बहरहाल, भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो ने शहरी यातायात और परिवहन के क्षेत्र में संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। इस प्रौद्योगिकी के विकास के साथ देश को सुविधाजनक और पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण यातायात प्रणाली का लाभ मिलेगा। 
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