पाकिस्तान की ओर से सहयोग की इच्छा

1947 में भारत को आज़ादी मिलने के साथ ही हुये विभाजन से पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया था। उस समय से ही लगातार दोनों देशों के मध्य टकराव और तकरार बनी हुई है, जो किसी न किसी रूप में पिछली पौन सदी से बरकरार है। दोनों देशों में कई बार युद्ध भी हुये, जिनमें हज़ारों सैनिक तथा अन्य लोग मारे जाते रहे। इस दौरान दोनों देशों में समय-समय पर हकीकतों को पहचानते हुए आपस में दोस्ती एवं सहयोग के लिए भी कोशिशें होती रहीं परन्तु ऐसे यत्न ज्यादातर सफल न हो सके। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, वहां किसी न किसी रूप में सेना ही शासन करती रही है। अपने अन्य पड़ोसी अ़फगानिस्तान के साथ भी इसके संबंध ज्यादा अच्छे नहीं रहे। वहां अक्सर चलती रही गड़बड़ का प्रभाव भी पाकिस्तान पर पड़ता रहा। सैनिक तानाशाहों की ओर से बनाई गई नीतियों के कारण वहां विश्व भर के आतंकवादियों का जमावड़ा लगता रहा।
अब तो यह प्रतीत होने लगा है कि ये ़खतरनाक आतंकी संगठन पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए ही ़खतरा बन चुके हैं। वहां लगातार गड़बड़ वाले हालात रहने के कारण कोई भी सरकार स्थिर नहीं रह सकी, जिस कारण आज तक भी यह देश अपनी प्राथमिक समस्याओं से निजात नहीं पा सका। आर्थिक पक्ष से यह देश बेहद कमज़ोर हो चुका है। अल्पसंख्यक आम लोग गरीबी एवं अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। आज भी पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर क्षेत्र पर अवैध रूप से कब्ज़ा किया हुआ है, परन्तु इसके बावजूद वह समूचे जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र पर बार-बार अपना अधिकार जताता रहा है। युद्ध में हारने के बाद उसने ़खतरनाक आतंकवादी संगठनों के कंधे पर बंदूक रख कर भारत से अपना बदला लेने की नीति धारण की हुई है। इसी नीति के  तहत वह भारत को लगातार घायल करता रहा है। उसका ऐसा कर्म आज भी जारी है।  इसी नीति के तहत पाकिस्तान के प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादियों ने वर्ष 2019 में तीन दर्जन से अधिक भारतीय सुरक्षा बलों के जवानों की जम्मू-कश्मीर में हत्या कर दी थी, जिसके बाद दोनों देशों के संबंध और भी बिगड़ गये थे। उसके बाद पाकिस्तान ने भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने पर कड़ी आपत्ति प्रकट की थी।
अब पाकिस्तान में शाहबाज़ शऱीफ के नेतृत्व में नई सरकार बनी है जो आतंकवादी संगठनों के तो विरुद्ध है परन्तु अभी भी वहां सेना का पहरा होने के कारण वह भारत के प्रति खुल कर अपनी नीतियों को उजागर करने से हिचकिचा रही है, परन्तु जिस तरह उस देश में आर्थिक मंदी छाई हुई है, उसके दृष्टिगत उसके पास भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं है। इसी सन्दर्भ में ही विगत दिवस उसके विदेश मंत्री मोहम्मद इशहाक डार के बयान को देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वह भारत के साथ पंजाब के अटारी-वाघा सीमा से आपसी व्यापार शुरू करने संबंधी गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। डार के अनुसार आज पाकिस्तान के ज्यादातर उद्योगपति एवं व्यापारी भी ऐसा ही चाहते हैं। पूर्वी पंजाब के कई राजनीतिक दल तथा व्यापारिक गतिविधियों के साथ जुड़े हुये व्यक्ति भी शिद्दत से ऐसा महसूस कर रहे हैं परन्तु ऐसा तभी सम्भव हो सकता है, यदि पाकिस्तान आतंकवादियों के प्रति चिरकाल से अपनाई अपनी नीतियों को बदलने की जुर्रअत दिखाये। इसी के साथ ही दोनों देशों का वातावरण सुखद हो सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द