छिपकलियों का विचित्र संसार

प्राणी विज्ञान में छिपकलियां क्लास रेप्टीलिया, उपक्लास लेपिडोसौरिया, आर्डर स्क्वैमेटा, उपआर्डर ओफीडिया के अंतर्गत आती है। ये स्थलीय, बिलकारी, जलीय और वृक्षवासी होती हैं। इनमें कई मांसभक्षी भी होती हैं। कुछ विभिन्न प्रकार की छिपकलियां निम्न हैं।
दीवार की छिपकली
इसे हेमिडेक्टिलस भी कहते हैं। यह भारत, अफ्रीका, लंका और चीन में पायी जाती हैं। यह घरेलू छिपकली है। आमतौर पर यह हर घर में पायी जाती है। यह धूप में अधिक देर नहीं रह सकती। यह लगभग 10 इंच लंबी और हल्के हरे रंग की होती है। सिर चौड़ा और चपटा होता है। कान का छिद्र उदग्र होता है। पूंछ साधारण लम्बाई की होती है। शल्क छोटे और चिपकदार जीभ होती है। जीभ की नोंक पर थोड़ी सी खांच बनी होती है। इसी के द्वारा यह रात को कीटों का आहार करती है।
इसकी उंगलियां फैली हुई होती हैं जिनकी अधर सतह पर कटक युक्त पटलिकाओं की दोहरी श्रृंखला बनी होती है। इनमें तेज़ नखर होते हैं। उंगलियों के द्वारा छिपकलियां छतों और चिकनी सतहों पर चल लेती हैं। इसकी पूंछ पुच्छ-कशेरूकों के एक अनस्भित भाग पर टूट सकती है। पूंछ का टूट कर अलग हुआ भाग तेजी से ऐंठता-मरोड़ता है और इस तरह वह शत्रु का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है और इसी बीच छिपकली निकल भागती है। पूंछ पुन: उग आती है। ये हमेशा कड़े कवच वाले अंडे देती है।
वृक्षवासी छिपकली
आमतौर पर लोग इसे गिरगिट कहते हैं। अंग्रेजी में इसे ब्लडसकर भी कहा जाता है। इसके गले का रंग लाल होता है। यह भारत, चीन व मलेशिया में पाया जाता है। यूरोमैस्टिक्स की तरह यह वृक्षवासी कीटभक्षी एगैमिड प्राणी है। इसकी लंबाई करीब 1 फुट होती है। इसके शरीर पर मोटे-मोटे खुरदरे शल्क बने होते हैं। इसकी पूंछ बहुत लंबी और पतली होती है। गर्दन और पीठ पर तीखे कांटों की एक किरीअी बनी होती है। कलोटीस वर्सीकलर नामक गिरगिट भारत में पाया जाता है। 
यह रंग बदलने के लिए विख्यात है। इसका सामान्य रंग जैतूनी-हरा होता है, लेकिन प्रणय अथवा डराने की मुद्रा में  देह का रंग पीला हो जाता है और गर्दन एवं शीर्ष के पार्शवों का रंग लाल हो जाता है। रंग परिवर्तन का कारण ताप और वातावरण होता है। यह हमेशा अपने सिर को ऊपर नीचे करता रहता है। इसकी पूंछ कभी टूटती नहीं है।
उड़न छिपकली
यह एक बहुत सुंदर छिपकली है। यह वृक्षों पर रहती है एवं उस वृक्ष के फूलों के रंगों की तरह बनी रहती है। इसे ड्रैको बोलेन्स भी कहते हैं। इसका शरीर पृष्ठा-अधरत: दबा होता है। इसकी गरदन पर तीन नरम हुक होते हैं। दांत अग्रदंती होते हैं। देह के हर पार्श्व में पांच या छ: लंबी पसलियां होती हैं। जो अगली पिछली टांगों के बीच में एक चौड़े पंखे की शक्ल के त्वचार-फ्लैप को आलंब देती हैं। पसलियों के उठाने से वे फैल जाती है और खाल को पंख जैसे पैराशूट के रूप में फैला देती हैं। इन पैराशूटों से छिपकली उतरती चली जाती है लेकिन यह उड़ती नहीं। गर्दन पर बने हुक शाखाओं पर उतरने में मदद देते हैं। यह कीटभक्षी होती है। यह भारत एवं मलय प्रायद्धीपों में पायी जाती है।
समुद्री छिपकली
ऐम्ब्लिरिंकस एकमात्र जीवित समुद्री छिपकली है। यह धूप सेंकते हुए या शौपाल खाते हुए जीवन बिताती है। यह दक्षिणी और मध्य अमरीका तथा पश्चिम द्वीप समूह में पायी जाती है और तृणभक्षी एवं मांसभक्षी दोनों होती है।
कैमिलियान
यह एक वृक्षावासी छिपकली है। इसकी एक स्पीशीज कैमिरियॉन कैलकैरेटस दक्षिण भारत एवं लंका में पायी जाती है। इनमें रंग परिवर्तन की एक विलक्षण क्षमता पायी जाती है। यह 15 इंच लंबी होती है और खाल बहुत दानेदार होती है जिन पर स्वायत्व तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण होता है। इनकी आंखें बड़ी होती हैं जिनमें पलकें समेकित हो जाती हैं, केवल केन्द्र में एक पिन-सूराख शेष रह जाता है। आंख एक-दूसरे से स्वतंत्र गति करती है, लेकिन किसी कीट को पकड़ते समय द्धिनेत्री दृष्टि के वास्ते उन्हें फोकसित कर लिया जाता है। जीभ लंबी होती है, जिसका अग्र सिरा फूला होता है, जीभ चिपचिपी होती है। कीटों को पकड़ने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
वैरेनस
यह एक आदिम छिपकली है, जो अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया में पायी जाती है। इसकी अनेक स्पीशीज है। भारतीय वैरेनस दो फुट से अधिक लंबी होती है और इसका रंग भूरा-सा होता है। इसमें गहरे-गहरे रंग के धब्बों की पंक्तियां बनी होती हैं। 
पूंछ लंबी और पार्श्वत: सरपीड़ित होती है। पूरे शरीर पर सूक्ष्म कणिकीय शल्क होते हैं। आम बोलचाल की भाषा में इसे गोह भी कहते हैं। सिर चपटा और लंबा होता है। गर्दन उससे अधिक लंबी होती है। इनकी जीभ सांप की तरह आगे से चिरी होती है जो तेजी से अंदर-बाहर आती है। यह बिलों में और पेड़ों पर रहती है यह मांसभक्षी होती है। पूर्वी द्वीपसमूह के कोमोड़ों द्वीप की पैरेनस कोमोडेन्सिस, 12 फुट लंबी होती है। इसका वजन दो मन से भी ऊपर होता है। यह बहुत ही खूंखार और मांसभक्षी छिपकली है।
हीलोडमौ
यह एक मोटी छिपकली है। इसकी एक छोटी एवं मोटी पूंछ होती है। इसकी पूंछ वसा का भंडार होती है। इसकी खाल पर मनके जैसे शल्क होते है और रंग भूरा-सा होता है जिसमें बड़े काले एवं पीले पैच होते है। यह लगभग दो फुट लंबी होती है। टांगें विकसित होती हैं लेकिन यह धीरे-धीरे चलती है। यह एकमात्र विषैली छिपकली है। इसके निचले जबड़े की लेबियल ग्रंथियां रूपांतरित होकर विष गं्रथियां बन जाती है। इसके विष से तंत्रिकाओं पर असर आ जाता है और फालिस आ जाता हैं। यह मैक्सिको तथा ऐरिजोना के शुल्क भागों में पायी जाती है।
ऐंगुइस
इसे मंद कृमि भी कहते हैं। यह यूरोप तथा एशिया में पाई जाती है। यह सांप जैसी छिपकली है। इसमें पैर नहीं पाये जाते लेकिन मेखलाओं और स्टर्नम के अवशेष पाये जाते हैं। इसके शरीर पर चिकने एवं गोल शल्क पाये जाते हैं। यह मिट्टी में बिल बनाकर उसमें रहती है। यह शिशुप्रज होती है। इसकी खाल में रंग परिवर्तन होते हैं। (उर्वशी)