मूर्ख दिवस पर पद्मश्री की मांग

हम सभी लोकल और राष्ट्रीय मूर्ख इस बार एक साथ मिलकर इस आने वाले अप्रैल के महीने में अपने संगठन के महान और उच्च कोटि के धुरंधर मूर्ख महेंद्र जी के लिए हम अन्य विधा के महान व्यक्तियों की तरह ही हम उनके लिए भी ‘मूर्खों के प्रथम पद्मश्री देने की मांग भारत सरकार से करेंगे’... क्योंकि.. ‘महेंद्र जी ने हम सभी मूर्खों के हित में वह कार्य किया है जो कार्य कभी देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी या नेहरू ने किया था... एक सफल और उनके महान मूर्ख होने की लालिमा उनके चेहरे पर स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है।
लेकिन जो लोग सोचते है किए मूर्ख होना आसान है, तो यह उनकी बेवकूफी है क्योंकि मूर्ख होने के लिए मूर्खता का मापदंड फॉलो करना इस देश क्या बल्कि पूरी दुनिया के 90 प्रतिशत लोगों के बस की भी बात नहीं। वैसे तमाम विसंगतियों के बाद भी मेरा दावा है किए हमारी देश में अन्य देशों की अपेक्षा प्रत्येक वर्ष कुछ नए-नए मूर्ख अपनी मूर्खता से चार चांद लगाते रहते है। वैसे भी ‘हमारे यहां तो लोग व्यवहार में भी एक-दूसरे को मूर्ख कह कर अपने मूर्ख ना होने की खानापूर्ति कर लेते हैं।’
हालांकि हमारे मूर्ख जन नायक महेंद्र जी के साथ एक चौबीस कैरेट के मूर्ख होने के लिए जितनी भी दुर्घटनाएं घटित होनी चाहिए वे सारी की सारी महान दुर्घटनाएं इनके साथ घटित हो चुकी है। इस आधार पर महेंद्र जी मूर्ख होने की हमारे देश की सबसे बेहतरीन और जिंदा किताब हैं..‘उन्हें पढ़ना या उनसे बात करना किसी भी स्तरीय मूर्ख की राष्ट्रीय उपलब्धि है। वे हम मूर्खों के आराध्य हैं।
शायद हम मूर्खों के राष्ट्रीय हित में एक दिन वह समय भी आए जब हम मूर्खों के लिए बकायदा देश में एक अप्रैल से लेकर तीस अप्रैल तक अलग से संसद में एक पूरा सत्र ही हम मूर्खो की मांग और उनके राष्ट्रीय हित में चलाया जाएगा और उस सत्र को पूरी दुनिया महामूर्ख सत्र के तौर पर जानेगी। एक नजीर की तरह याद रखेगी। जिसमें हमारी जायज मांग को ध्वनिमत के साथ पूरे सदन को अंगीकार करना होगा क्योंकि हम भली-भांति जानते हैं कि सदन में भी ‘साठ प्रतिशत मूर्ख हमारी सदन में भी बैठे हुए हैं’ लेकिन वे हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र जी की तरह मूर्ख जैसे व्याकरण के शब्द का ऐलान नहीं कर सकते।
ऐसा नहीं किए हम मूर्खो के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र जी के लिए पद्मश्री की मांग कोई गलत या खैरात है और ना ही उनकी मूर्खता पर की गई यह कोई दया है। इस महान् देश में हर तरह हर जाति के लोगों के लिए अगर आरक्षण है, तो फिर हम मूर्खो को यह आरक्षण देने में हर्ज क्या है। जबकि इस बार की जनगणना अगर स्पेशल तौर पर मूर्खो पर कराई जाए तो मूर्खो के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र जी के कथनानुसार ‘यह संख्या पूरे देश में सात करोड़ या उसके ज्यादा के आस-पास होगी।’
इस अप्रैल महीने को मूर्ख दिवस कहने वालो को शायद यह पता नहीं कि .. ‘अप्रैल केवल एक मूर्ख दिवस ही नहीं बल्कि हम जैसे मूर्खो के लिए 15 अगस्त की तरह है।’ आइए! इसे हम आप सभी मूर्ख अपनी जायज मांगों के साथ भारत सरकार तलक पहुंचाए। अर्थात इस बार अप्रैल महीने को हम सभी ग्रामीण,  स्थानीय, ज़िला स्तरीय, राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय मूर्खो के हित के लिए एक जन लोकपाल बिल की मांग भारत सरकार से करे या उसे पारित कराने की मांग के साथ अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र जी के लिए प्रथम मूर्खो के पद्मश्री की मांग करें। 

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