सब को हंसाने वाले राजेन्द्रनाथ की दु:ख भरी कहानी

राजेन्द्रनाथ, जो अपने एक फिल्मी चरित्र पोपट लाल के नाम से अधिक विख्यात हुए, ने अपने 40 वर्ष के फिल्मी करियर में लगभग 300 फिल्मों में लोगों को खूब हंसाया। एक हास्य कलाकार के रूप में जोनी वॉकर व महमूद जैसे स्थापित कॉमेडियनों के दौर में ख़ुद को स्थापित किया, लेकिन उनकी निजी ज़िंदगी इतनी दुखभरी रही कि बड़े भाई ने घर से निकाल दिया, पुराना स्कूटर पास था, लेकिन जब अपना पेट भरने के लिए पैसे न थे तो उसमें पेट्रोल कहां से भरवाते, दस साल तक फिल्मों में प्रभावी भूमिका के लिए संघर्ष करते रहे, बॉलीवुड में जब पैर जमने लगे तो एक्सीडेंट हो गया, काम मिलना बंद हो गया, अपनी पूंजी व कज़र् से एक फिल्म बनानी शुरू की जिसकी दस दिन में ही शूटिंग बंद हो गई, पाई-पाई को मोहताज हो गये, बड़ी मुश्किल से कज़र् उतरा, फिल्मों व लोगों से दूरी बना ली और इसी गुमनामी में एक दिन दिल का दौरा पड़ा और वह हमेशा के लिए हमसे जुदा हो गये।
राजेंद्रनाथ मल्होत्रा का जन्म ब्रिटिश इंडिया की ओरछा रियासत के टीकमगढ में 8 जून 1931 को हुआ था, जोकि वर्तमान में मध्य प्रदेश में है। वह अपने आठ भाई व चार बहनों में तीसरे नंबर के थे और विख्यात चरित्र अभिनेता प्रेमनाथ उनके सबसे बड़े भाई थे। उनकी दो बहनों कृष्णा व उमा की शादी क्त्रमश: राज कपूर व प्रेम चोपड़ा से हुई थी। राज कपूर से रिश्तेदारी का मूल कारण यह बना कि मल्होत्रा परिवार भी कपूर खानदान की तरह करीमपुरा, पेशावर (अब पाकिस्तान में) का रहने वाला था। राजेंद्रनाथ के पिता टीकमगढ में उच्च अधिकारी थे। वह राजेंद्रनाथ को डॉक्टर बनाना चाहते थे, इसलिए उन्हें दरबार कॉलेज, रीवा में प्रवेश दिलाया गया, जहां कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह उनके क्लासमेट थे, लेकिन राजेंद्रनाथ की दिलचस्पी लिखने पढ़ने में नहीं थी। राज कपूर की वजह से प्रेमनाथ के लिए बॉम्बे (अब मुंबई) की फिल्म नगरी में द्वार खुल गये थे। 
वह बॉम्बे में रहने लगे थे। राजेंद्रनाथ भी अपने भाई के पास बॉम्बे में 1949 से रहने लगे, एक कॉलेज के विज्ञान विभाग में प्रवेश भी लिया, लेकिन दिलचस्पी शिक्षा में कम और नाटकों में अधिक थी, इसलिए पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर के कुछ नाटकों जैसे पठान व शकुंतला में गंभीर भूमिकाएं भी अदा कीं। पृथ्वी थिएटर में ही राजेंद्रनाथ की शम्मी कपूर से गहरी दोस्ती हुई। राजेंद्रनाथ को पृथ्वी थिएटर में काम तो मिल रहा था, लेकिन वह अपने काम व करियर को लेकर बहुत लापरवाह थे। यह बात प्रेमनाथ को बिल्कुल पसंद नहीं थी, जो उस समय तक एक्टर बीना राय से शादी करके अपना घर बसा चुके थे। एक दिन गुस्से में आकर प्रेमनाथ ने अपने छोटे भाई राजेंद्रनाथ को उनकी लापरवाह आदत के कारण अपने घर से निकाल दिया। हालांकि प्रेमनाथ ने अपने दूसरे घर में उनके लिए छत का इंतज़ाम तो कर दिया था, लेकिन रोजमर्रा के खर्च की व्यवस्था करना कठिन हो गया था। उस समय करण जौहर के पिता यश जौहर उनके रूममेट हुआ करते थे। उन दिनों को याद करते हुए राजेंद्रनाथ ने एक बार कहा था, ‘मेरे पास एक पुराना स्कूटर हुआ करता था, जिसमें पेट्रोल भरवाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हुआ करते थे। खाने के लिए दोस्तों का सहारा था। लेकिन ऐसा कब तक चलता? हमेशा मेरे मन में यही सवाल रहता था। मुझे अपने करियर के प्रति गंभीर होना ही था। मेरे भाई ने जो कुछ किया था मेरे भले के लिए ही किया था।’
करियर के प्रति गंभीर होने के बावजूद राजेंद्रनाथ को फिल्मों में कोई खास भूमिकाएं नहीं मिल पा रही थीं। एक्स्ट्रा टाइप के छोटे-मोटे रोल मिलते, जिनसे खास पहचान बनाना लगभग असंभव था। भाई की मदद करने के लिए प्रेमनाथ ने अपने पीएन प्रोडक्शन की फिल्मों ‘शगूफा’ (1953) व ‘गोलकुंडा का कैदी’ (1954) में भूमिकाएं तो अवश्य दीं, लेकिन ये दोनों ही फिल्में फ्लॉप रहीं। इसी संघर्ष में दस साल बीत गये। फिर ‘हम सब चोर हैं’ में राजेंद्रनाथ को पहली बार कॉमेडी करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उन्हें हल्का सा नोटिस किया गया। इस फिल्म की बदौलत उन्हें ‘दिल देके देखो’ (1959) में रोल मिला और अपनी ज़बरदस्त कॉमिक टाइमिंग व स्टाइल से उन्होंने फिल्मकारों को प्रभावित कर दिया। इस फिल्म से राजेंद्रनाथ का करियर चल निकला। इसके बाद 1961 में आयी ‘जब प्यार किसी से होता है’ में पोपट लाल की भूमिका निभाकर राजेंद्रनाथ 60 व 70 के दशकों की सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकारों की सूची में शामिल हो गये। 
साल 1972 तक उनका करियर चरम पर रहा। इस दौरान उन्होंने एक फिल्म (हमराही) में खलनायक की भूमिका भी की और उन्होंने पहली नेपाली फिल्म ‘मैतीघर’ में भी काम किया। पोपट लाल के किरदार को राजेंद्रनाथ ने ख़ूब भुनाया, देश विदेश के स्टेज शोज़ में भी और टीवी सीरियल्स में भी। राजेंद्रनाथ का करियर अच्छा चल रहा था, 1969 में गुलशन कृपलानी से शादी करने के बाद निजी जीवन भी सुखी था, लेकिन इसके कुछ समय बाद एक गंभीर कार एक्सीडेंट ने उनकी दीन दुनिया ही उजाड़ दी। चार साल तक खराब सेहत के कारण वह फिल्मों से दूर रहे। इसके बाद करियर को फिर से संवारना शुरू किया, लेकिन असफल रहे। 
रणधीर कपूर व नीतू सिंह को लेकर ‘ग्रेट क्रेशर’ नामक फिल्म बनाने का प्रयास किया, दस दिन की शूटिंग के बाद ही फिल्म डिब्बे में बंद हो गई और राजेंद्रनाथ कज़र् में डूब गये। नब्बे के दशक में प्रेमनाथ ने उन्हें कुछ फिल्में दिलायीं, टीवी में भी काम मिला, लेकिन पहली जैसी बात न बन सकी। फिर प्रेमनाथ व दूसरे भाई नरेंद्रनाथ की मौतों ने उन्हें बिल्कुल अकेला कर दिया। उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी, फिल्मी दुनिया के लोगों से मिलना जुलना बंद कर दिया और 13 फरवरी 2008 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर