पितृ प्रेम का अनोखा उदाहरण है घोंघा मछली

घोंघा मछली एक विलक्षण समुद्री मछली है, जिसे स्नेल फिश कहते हैं। इसके शरीर के नीचे के भाग के पेट के मीनपंख पर एक चूषक होता है, इसलिए इसे लंपसर भी कहते हैं। इस मछली की गणना उनमें होती है, जिनमें माता-पिता अपने बच्चों को पूरी सुरक्षा देते हैं। घोंघा मछली की तरह समुद्र में मुर्गी मछली में भी नर मादा अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। 
घोंघा मछली अटलांटिक महासागर के उत्तरी भाग में दोनों ओर के सागर तटों पर पायी जाती है। इसकी अनेक जातियां हैं, ये सभी सागर तटों पर रहती हैं तथा उथले पानी में रहना पसंद करती हैं। कभी-कभी यह सागर तट के निकट बने चट्टानी कुंडों में भी मिलती है। यह सुस्त और आलसी होती है और अधिकांश समय समुद्र के जलीय पौधों पर लटके हुए व्यतीत करती है। इसकी लंबाई 15 से 30 सेंटीमीटर तक होती है, शरीर जैली जैसा होता है, शरीर पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। सिर भारी और गोल होता है। नर का शरीर मादा से छोटा होता है। दोनों का रंग भी अलग-अलग होता है। 
यह मांसाहारी मछली है जो सागर के छोटे छोटे जीवों को अपना आहार बनाती है। यह उथले पानी में सागर के तल में जाकर भोजन करती है। यह प्रजननकाल में भोजन नहीं करती। ये अप्रैल के आरंभ से भोजन करना छोड़ देती है, इस बीच यह पेट में पानी भर लेती है, जिससे इसका पेट फूल जाता है। यह मछली अपने बच्चों की सुरक्षा और स्नेह करने के लिए विश्वविख्यात है। 
घोंघा मछली में बाह्य समागम और बाह्य निषेचन पाया जाता है। इसका प्रजननकाल मार्च से आरंभ होकर अप्रैल तक चलता है। प्रजननकाल में नर मादा घोंघा मछलियां सागर तट के पास उथले पानी में एकत्रित होकर अंडे देती हैं। नर उन पर अपने शुक्त्राणु छोड़ता है, जिससे इनका निषेचन होता है। यह एक बार में लगभग 36 हजार अंडे देती है। अंडे लगभग 1 मिलीमीटर लंबे होते हैं। रंग गुलाबी होता है। अंडे देने के बाद मादा मछली सागर में लौट जाती है, लेकिन नर अंडों के पास रहता है और अंडों की रक्षा करता है।
सागर तटों पर भाटे के समय घोंघा मछली के अंडे पानी के बाहर आ जाते हैं, उस समय भी नर पास रहकर उनकी देखभाल करता है। ज्वार आने पर नर अपने मीनपंखों से इन पर हवा करता है ताकि अंडों तक ताजी ऑक्सीजन और पानी पहुंचता रहे और इन पर धूल, मिट्टी की परतें न जमने पाएं। नर को अंडों की हमेशा पूरी जानकारी रहती है, इसी के आधार पर यह खराब अंडों को अलग कर देता है। कुछ नर तो इन अंडों को खा जाते हैं। कुछ समय के बाद अंडों से छोटे छोटे लारवे निकलते हैं। अंडों से बाहर निकलते ही यह तैरना शुरु कर देते हैं, इसके लारवे समय समय पर आराम भी करते हैं। इनके शरीर के लारवे में छोटी सी पूंछ होती है। इसी की सहायता से वे जलीय पौधों के बीच में आराम करते हैं। किसी चट्टान के भाग को अपने चूषक से कसकर पकड़ लेते हैं और इसी से इनका तेजी से विकास होता है और ये वयस्क जैसे दिखाई देने लगते हैं। 
इनके अंडे और बच्चों के अनेक शत्रु हैं। हर भाटे के समय इसके अंडे सागर तट के किनारों की चट्टानों पर आ जाते हैं। इसके नवजात बच्चों को भी कई संकटों का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि यह बहुत बड़ी संख्या में मारे जाते हैं। नर पर भी कई आक्रमण होते हैं और इसे अपना शिकार बना लेते हैं। कभी कभी सागर की लहरें नर घोंघा मछली को अंडों से अलग कर देती हैं, जिससे इसकी मृत्यु हो जाती है। खतरों से जूझते हुए नर घोंघा मछली अंडों की रक्षा में सक्त्रिय रहता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नर घोंघा मछली की मूल प्रवृत्ति होती है कि वह हमेशा अंडों के पास रहता है, चाहे इसकी जान ही क्यों न चली जाए। यह पितृ प्रेम का ऐसा उदाहरण है जो अन्य किसी समुद्री जीव में देखने को नहीं मिलता।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर