सबूतों की विश्वसनीयता पर निर्भर केजरीवाल का भविष्य

प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के जमानत पर बाहर आने के जश्न में बाधा डालने में कामयाबी हासिल कर ली है, जबकि न्यायालय के आदेश पर वह अपना हाथ भी नहीं डाल सकता था। फिर उच्च न्यायालय ने कुछ प्रक्रियागत मुद्दों के आधार पर इस पर अस्थायी रोक लगा दी है, लेकिन यह उसकी कोई बड़ी जीत नहीं हो सकती है, क्योंकि यह रोक केवल तब तक लागू रहेगी, जब तक कि ईडी की चुनौती पर सुनवाई नहीं हो जाती और न्यायालय द्वारा अगले 2-3 दिनों में इसका निपटारा नहीं कर दिया जाता। 
जिस तरह से ईडी ने प्राकृतिक न्याय को अवरुद्ध करने की कोशिश की है, उससे जाहिरा तौर पर उसके राजनीतिक आका खुश हैं, जो केजरीवाल और उनकी पार्टी को हमेशा के लिए खत्म होते देखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें पार्टी के बढ़ते प्रभाव से वास्तविक खतरा दिखायी देता है। लेकिन जिस तरह से एजेंसी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की रिहाई में देरी करने के लिए काम किया है, उसकी व्यापक निंदा हुई है। बड़ा सवाल यह है कि प्रक्रियात्मक मुद्दों का सहारा लेकर एजेंसी अपनी विफलताओं को किस हद तक छिपा सकती है और जब अदालत मूल मुद्दों और ईडी की आपत्तियों के गुण-दोष पर विचार करेगी, खासकर उस संदर्भ में जब मूल अदालत ने मामले के बारे में गंभीर संदेह व्यक्त करते हुए जमानत दी थी।
ईडी की केजरीवाल को निचली अदालत द्वारा दी गयी जमानत पर स्थगन प्राप्त करने में सफलता मुख्य रूप से तकनीकी आधार पर थी, न कि केजरीवाल के खिलाफ प्रस्तुत साक्ष्य की गुणवत्ता पर। एजेंसी ने तर्क दिया कि उसे जमानत की सुनवाई के दौरान केजरीवाल के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्कों का खंडन करने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया था। उच्च न्यायालय द्वारा इस तर्क को स्वीकार करना ईडी के लिए एक ठोस जीत के बजाय एक प्रक्रियात्मक जीत का संकेत देता है।इससे केजरीवाल के खिलाफ ईडी के मामले की मज़बूती पर सवाल उठते हैं। प्रारंभिक जमानत कार्यवाही के दौरान सुबूतों के माध्यम से केजरीवाल की संलिप्तता को पुख्ता तौर पर स्थापित करने में ईडी की असमर्थता उनकी जांच या एकत्र किये गये सुबूतों में कमज़ोरियों का संकेत दे सकती है। वास्तव में, राउज़ एवेन्यू कोर्ट के जज द्वारा दिये गये 25-पृष्ठ के आदेश में ईडी के तौर-तरीके की गंभीर आलोचना की गई है, जिसमें अपर्याप्त सुबूत प्रस्तुत करना और कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच में संभावित पक्षपात दिखाना शामिल है जबकि मनी लॉन्ड्रिंग की पुष्टि हो गयी है, एजेंसी केजरीवाल को लेन-देन से जोड़ने में विफल रही है।
कोर्ट ने बिना किसी पुष्ट सुबूत के सह-आरोपी और अनुमोदकों के बयानों पर भरोसा करने के लिए ईडी की भी आलोचना की है। अदालत की टिप्पणी वर्तमान राजनीति की एक दर्दनाक सच्चाई की ओर इशारा करती है, जब उसके आदेश में कहा गया है, ‘अदालत को इस तर्क पर विचार करने के लिए रुकना होगा, जोकि एक स्वीकार्य दलील नहीं है कि जांच एक कला है, क्योंकि अगर ऐसा है, तो किसी भी व्यक्ति को फंसाया जा सकता है और रिकॉर्ड से दोषमुक्ति सामग्री को कलात्मक रूप से हटाने के बाद उसके खिलाफ सामग्री को कलात्मक रूप से हासिल करके सलाखों के पीछे रखा जा सकता है।’ 
जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर जोर देते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि ईडी ने पीएमएलए की धारा 45 के तहत कठोर जमानत शर्तों पर बहुत अधिक भरोसा किया, जो प्रक्रियात्मक तकनीकी की मदद से कानूनी निष्पक्षता और निर्दोषता के अनुमान के सिद्धांतों को प्रभावित करता है। अदालत ने आगे कहा कि केजरीवाल को अदालत ने तलब नहीं किया था, लेकिन ईडी के चल रहे जांच दावे के आधार पर वह अभी भी न्यायिक हिरासत में हैं। प्रक्रियाओं पर यह अनुचित दबाव ईडी के मामले को और कमजोर करता है। राहत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते समय भी एजेंसी के वकील न्यायालय की टिप्पणियों में सामने आये मूल मुद्दों को नहीं उठा रहे थे, बल्कि सुनवाई की प्रक्रियाओं के बारे में बात कर रहे थे। एजेंसी के वकील, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने उच्च न्यायालय से शिकायत की कि उन्हें अपना मामला रखने का ‘पूरा अवसर’ नहीं दिया गया और यहां तक कि उन्होंने न्यायाधीश के आदेश को ‘विकृत’ करार दिया।
केजरीवाल लगातार कहते रहे हैं कि ईडी उनके खिलाफ कोई विश्वसनीय सुबूत पेश करने में विफल रही। न्यायालय की टिप्पणियों के बाद इस बिंदु पर उनका जोर विश्वसनीयता प्राप्त करता है। यदि ईडी के पास वास्तव में पुख्ता सुबूत नहीं हैं, तो यह एजेंसी के मामले पर सवाल उठाता है। हालांकि ईडी ने केजरीवाल की जमानत पर स्थगन प्राप्त करने में कानूनी पैंतरेबाजी की है, लेकिन मामले के मूल पहलू अभी भी अनसुलझे हैं। इन कार्यवाहियों के दौरान न्यायिक जांच और टिप्पणियां भारत में कानूनी प्रक्रिया और राजनीतिक परिदृश्य दोनों के लिए व्यापक निहितार्थों को उजागर करती हैं।
इस मामले का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ईडी द्वारा प्रस्तुत सुबूतों का कैसे मूल्यांकन करता है। अगर अदालत सबूतों की पर्याप्तता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाना जारी रखती है, तो इससे केजरीवाल के पक्ष में अनुकूल परिणाम आ सकता है। इसके विपरीत, अगर फैसला पलटा तो ईडी की स्थिति मज़बूत हो सकती है और केजरीवाल की कानूनी और राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ सकता है। (संवाद)