पहाड़ अब सौंदर्य नहीं, आपदा के प्रतीक बन रहे हैं

गर्मियों से परेशान होकर प्राय: लोग पहाड़ों का रुख करते हैं। पहाड़ों पर जहां कम तापमान के कारण पर्यटकों को गर्मी से निजात मिलती है तथा शरीर व मस्तिष्क को सुकून मिलता है, वहीं हमेशा से ही पहाड़ों का प्राकृतिक सौन्दर्य, ऊंची-ऊंची चोटियां, हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं, ग्लेशिय, पहाड़ों के बीच बहने वाले झरने, हरे भरे जंगल, ऑक्सीजन से परिपूर्ण ताज़ी आबो-हवा, गर्मी में भी सर्दी का एहसास दिलाने वाला वातावरण पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। लेकिन अब पहाड़ों की हकीकत बदलने लगी है। हिमाचल प्रदेश की शिमला जैसी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ठंडी व खूबसूरत राजधानी भी अब जनसंख्या, पर्यटकों व वाहनों के बढ़ते बोझ के कारण गर्मी का एहसास दिलाने लगी है।   
पिछले दिनों भीषण गर्मी से निजात पाने के लिये पर्वतीय सीमा क्षेत्र सांगला की लगभग 400 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान पहाड़ों की जो स्थिति देखी, वह अत्यंत दुखदायी थी। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं अब हिम रहित हो चुकी हैं। जिन पर्वत श्रृंखलाओं पर करोड़ों वर्षों से बर्फ की मोटी चादर पड़ी कहती थी वह अब अपना हिमावरण उतार चुकी हैं और पत्थरों के पहाड़ साफ नज़र आने लगे हैं। हिम रहित पर्वत श्रृंखलाओं के कारण ग्लेशियर भी लगभग समाप्त हो रहे हैं। इसकी वजह से हिमाचल प्रदेश में लगभग पूरे वर्ष बहने वाले शीतल जल के झरने अब सूख चुके हैं। लगभग चार दशकों से पर्वतीय अंचलों की यात्रा के दौरान विभिन्न पर्वतीय राज्यों में देखा गया है कि जिस जगह झरने/चश्मे प्रवाहित होते थे, वहां पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाती थी। कोई नहाता था कोई अपनी गाड़ियां धोता था, कोई शीतल जल पीकर सुकून हासिल करता था। लोग फोटो खींच कर अपनी पर्वतीय यात्रा के यादगार लम्हों को कैमरों में कैद करते थे, परन्तु अब तो यह बातें कहानी किस्से बनने लगी हैं।
पहाड़ शुष्क हो रहे हैं। पहाड़ों पर गर्मी बढ़ती जा रही है। शुष्क पर्वतों में भूस्खलन तेज़ी से हो रहा है। उस पर विकास के नाम पर सड़कों को खुला करने व विस्तार करने के लिये पर्वतों को काटा जा रहा है जिससे करोड़ों पेड़ धराशायी हो रहे हैं।  पहाड़ों पर तेज़ बहाव से बहने वाली अनेक नदियां अब नालों का रूप ले चुकी हैं। विद्युत उत्पादन के लिए जगह-जगह इन नदियों की धारा को रोककर जल विद्युत उत्पादन संयंत्र भी लगाए गए हैं। 
पहाड़ों में विस्फोट करके सुरंगे और बांध बनाए जा रहै हैं। धमाकों से पहाड़ कमज़ोर हो रहे हैं। तेज़ बारिश होने पर भू-स्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं जिस कारण जन व आर्थिक हानि हो रही है। पहाड़ों पर बसे गांव धंस रहे हैं। उधर पर्यटकों की संख्या भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से वाहनों की आधिक आवाजाही लगी रहती है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण बढ़ने का यह भी एक अहम कारण है। ज़ाहिर है कि इस विश्वस्तरीय आपदा का ज़िम्मेदार और कोई नहीं बल्कि मानवीव गतिविधियां ही हैं जिस कारण स्वर्ग रूपी सुन्दर पृथ्वी दिन प्रतिदिन नर्क बनती जा रही है। लिहाज़ा यह कहना गलत नहीं होगा कि चित्त को चैन व आंखों को सुकून देने वाले पहाड़ अब सौंदर्य नहीं बल्कि आपदा के प्रतीक बनते जा रहे हैं।