मणिपुर को लेकर केन्द्र की लापरवाही बरकरार

मणिपुर को हिंसा के आगोश में गए 14 महीने पूरे हो चुके हैं। केंद्र सरकार की उपेक्षा और राज्य सरकार के एकतरफा नज़रिए से मणिपुर दुर्दशा के किस गर्त में जा चुका है, उसका अंदाज़ा वैसे तो रोज़मर्रा की खबरों से भी लगता है, परन्तु अब मणिपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणियों से भी ध्यान उस तरफ गया है। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने अपनी बात कहने के लिए एक राष्ट्रीय अखबार को इंटरव्यू देने की ज़रूरत महसूस की, यही तथ्य मणिपुर में जारी हालात की एक झलक है। इंटरव्यू में जस्टिस मृदुल ने राज्य सरकार के रवैये पर घोर असंतोष जताया। राज्य में हिंसा की स्थिति को अभूतपूर्व बताते हुए उन्होंने उन चुनौतियों का ज़िक्र किया जिनका सामना न्यायिक व्यवस्था को करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि आज मणिपुर में मैतेई समुदाय के व्यक्तियों की पोस्टिंग कुकी समुदाय वाले इलाकों में करना नामुमकिन हो गया है। इस कारण न्यायपालिका के लिए सामान्य ढंग से काम करने की स्थिति नहीं रह गई है। स्पष्ट है कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था बिगड़ चुकी है। मगर केंद्र की भाजपा सरकार खुद दलगत नज़रिए का शिकार रही है। संकट के पूरे दौर में वह राज्य सरकार की संरक्षक की भूमिका में नज़र आई। मुख्यमंत्री एन. वीरेन सिंह ने हाल में कहा कि अब हालात सुधर सकते हैं, क्योंकि केंद्र मणिपुर को प्राथमिकता दे रहा है। यह बयान खुद इस बात की तस्दीक है कि अब तक मणिपुर उसकी प्राथमिकता नहीं रहा है। तो क्या उन हालात के लिए मुख्य रूप से केंद्र ही ज़िम्मेदार नहीं है, जिनका विवरण जस्टिस मृदुल ने दिया है?
विपक्ष के साथ टकराव  
लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के नतीजों से कोई सबक नहीं लिया है और अपने तीसरे कार्यकाल में भी वह विपक्ष को अपमानित करते हुए उसके साथ टकराव का रास्ता ही अख्तियार करेंगे। इस बात के संकेत उन्होंने 18वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में दे दिए हैं। स्थापित और मान्य संसदीय परम्परा है कि लोकसभा की चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसके नव-निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए एक अस्थायी अध्यक्ष (प्रो-टेम स्पीकर) की नियुक्ति होती है। परम्परा के मुताबिक नए सदन के लिए चुने गए सबसे वरिष्ठ सदस्य को यह ज़िम्मेदारी दी जाती है। 
प्रो-टेम स्पीकर का कार्यकाल बमुश्किल दो दिन का होता है और इस दौरान शपथ दिलाने के अलावा उनके पास कोई अन्य कार्य नहीं होता है। इसलिए इस पद पर नियुक्ति को लेकर कोई विवाद हो, यह कल्पना से भी परे है। लेकिन शायद मौजूदा सत्ताधारी नेतृत्व अपने दायरे से बाहर किसी व्यक्ति, दल या वर्ग को देश का हिस्सा ही नहीं मानता, इसीलिए उसने परम्परा की अनदेखी करते हुए अपनी पार्टी के सबसे वरिष्ठ निर्वाचित सदस्य भर्तृहरि महताब को प्रो-टेम स्पीकर बनाया। ऐसा करते हुए उसने वरिष्ठतम सदस्य कांग्रेस के के. सुरेश की उपेक्षा कर दी। 
इस तरह अनपेक्षित टकराव की जड़ें पड़ गईं और इस प्रकरण से उचित ही यह संदेश मिला है कि वर्तमान लोकसभा की कहानी भी पिछली दो लोकसभाओं के जैसी ही होगी। दूसरी बार स्पीकर चुने गए ओम बिरला ने भी विपक्षी सदस्यों के साथ अहंकारी लहज़े में अपमानजनक व्यवहार से इस आशंका की पुष्टि की है। 
 चार राज्यों के चुनाव
चुनाव आयोग ने चार राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। आयोग की ओर से 20 अगस्त तक फाइनल मतदाता सूची जारी करने की घोषणा कर दी गई है। एक-एक महीने के अंतराल पर चार महीने में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक 2029 से लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। सवाल है कि क्या उससे पहले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं हो सकते? गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 30 सितम्बर तक विधानसभा चुनाव करवाने को कहा है। अत: 30 सितम्बर से पहले जम्मू-कश्मीर में चुनाव होगा। सितम्बर में दूसरे किसी राज्य में चुनाव नहीं हो पाएगा क्योंकि उस समय उत्तर और पश्चिमी भारत में मानसून लौटा नहीं होता है यानी बारिश और बाढ़ की संभावना रहती है। अक्तूबर में हर हाल में महाराष्ट्र का चुनाव करवाना होगा क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 5 नवम्बर को खत्म हो रहा है। हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 25 नवम्बर को खत्म होने वाला है। अगर चुनाव आयोग चाहे तो इसका चुनाव भी महाराष्ट्र के साथ हो सकता है। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी, 2025 तक है। इसीलिए वहां दिसम्बर में मतदान होता है। चुनाव आयोग अक्तूबर में महाराष्ट्र के साथ वहां भी चुनाव करा सकता है। लेकिन कम से कम अभी तक ऐसा नहीं लग रहा है कि चुनाव आयोग इन सभी राज्यों में एक साथ चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है। 
अकेले चुनाव लड़ सकती है भाजपा
महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव भाजपा अकेले लड़ सकती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उसे सहयोगी पार्टियों की उपयोगिता समझ में नहीं आ रही है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने सात सीटें ज़रूर जीतीं, लेकिन उसका फायदा भाजपा को नहीं मिला। इसी तरह अजित पवार की एनसीपी ने चार सीटों पर चुनाव लडा था और वह एक सीट ही जीत पाई। इसीलिए भाजपा को शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी से तालमेल करने में कोई फायदा नहीं दिख रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर ये दोनों पार्टियां भाजपा के साथ गठबंधन में बनी रहती हैं तो भाजपा को करीब 150 सीटें ही लड़ने के लिए मिल पाएंगी और तब मौजूदा हालात में वह 100 सीट का आंकड़ा नहीं पार कर पाएगी। पिछले दो चुनावों में भाजपा ने 100 से ज्यादा सीटें जीती हैं। इसीलिए भाजपा के नेता अकेले लड़ने में फायदा देख रहे हैं। उन्हें दो फायदे दिख रहे हैं। पहला फायदा तो यह है कि अकेले सभी 288 सीटों पर लड़ेंगे। दूसरा फायदा यह है कि शिव सेना का शिंदे गुट अकेले लड़ेगा तो वह उद्धव ठाकरे का वोट काटेगा और अजित पवार अकेले लड़ कर शरद पवार का वोट काटेंगे। इस तरह चुनाव को चारकोणीय बना देने में भाजपा को फायदा दिख रहा है। आमने-सामने के चुनाव में लोकसभा जैसे नतीजे आने की पूरी संभावना है। भाजपा को एक तीसरा फायदा यह भी दिख रहा है कि अकेले लड़ने पर चुनाव बाद के गठबंधन का रास्ता खुला रहेगा।
नायडू का मकसद
आंध्र प्रदेश में युवजन श्रमिक रायथू (वाईएसआर) कांग्रेस पार्टी के नेता जगन मोहन रेड्डी जब मुख्यमंत्री थे तब पिछले साल तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू को उन्होंने गिरफ्तार कराया था। सुबह छह बजे नायडू की पार्टी की एक यात्रा के कैम्प ऑफिस से चंद्रबाबू नायडू को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद नायडू काफी समय जेल में रहे और उनका परिवार परेशान रहा। अब पासा पलट गया है। अब नायडू की सरकार बनते ही बदले की कार्रवाई तेज़ हो गई है। 24 जून को गुंटूर में जगन मोहन की पार्टी के कार्यालय पर बुलडोज़र चल गया। माना जा रहा है कि सुबह छह बजे की गिरफ्तारी का बदला सुबह साढ़े पांच बजे बुलडोज़र चला कर लिया गया। इससे पहले जगन मोहन रेड्डी के आवास के बाहर हुआ कथित अवैध निर्माण तोड़ दिया गया था। कहा जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू की इस बार की सरकार का एकमात्र लक्ष्य जगन मोहन रेड्डी से बदला लेने का है। आमतौर पर आंध्र प्रदेश में इस तरह की राजनीति नहीं होती थी लेकिन जगन ने शुरुआत कर दी है तो नायडू उसे आगे बढ़ा रहे हैं। जगन की गिरफ्तारी की संभावना भी जताई जा रही है। इसीलिए जगन ने केंद्र सरकार और भाजपा को यह संदेश दिया कि उनके पास राज्यसभा में 11 और लोकसभा में चार सांसद हैं। उन्होंने कहा कि नायडू के पास कुल 16 सांसद लोकसभा में हैं और जगन के पास दोनों सदनों में 15 सदस्य हैं। अब देखना है कि केंद्र सरकार उनकी रक्षा कर पाती है या नहीं।